इस खिलाड़ी की दर्दभरी कहानी सुन शाहरुख खान हुए भावुक, बोले- चक दे इंडिया
मंजीत अहलावत की एक्सीडेंट में रीढ़ की हड्डी टूटी, बेड पर रहे, लेकिन नहीं मानी हार, अब एशियन गेम्स में देश का करेंगे प्रतिनिधित्व।
रोहतक [अरुण शर्मा]। मुश्किलों का डटकर मुकाबला करने वाले ही हर जंग को जीतते हैं, वही इतिहास रचते हैं। रोहतक स्थित सनसिटी निवासी मंजीत अहलावत की कहानी किसी फिल्म जैसी लगती है। मगर हर किसी को प्रेरित करने वाली है। उनकी दर्द भरी कहानी ने बॉलीवुड सुपरस्टार किंग खान शाहरूख खान को भी भावुक कर दिया। शाहरुख ने मंजीत के दर्द आैर उनके जज्बे के बारे में जाना तो उनके हौसले को सलाम किया और बोले-चक द इंडिया।
अगस्त 2006 में शादी के तीन-चार माह बाद ही अस्थल बोहर के निकट सड़क हादसा हो गया। कई दिन तो अस्पताल में जिंदगी और मौत से जूझते रहे। जान बची और बाद में होश आया तो लगा मानो जिंदगी जीने का मकसद ही खत्म हो गया। वजह थी कि रीढ़ की हड्डी पूरी तरह से डैमेज हो गई थी।
चिकित्सकों ने भी जवाब दे दिया था कि बेड पर ही जिंदगी कटेगी। हुआ भी यही। साल 2011 तक बेड पर रहे। लंदन में रहने वाले बड़े भाई कुलदीप अहलावत को पैरालंपिक खेलों की जानकारी हुई। फिर छोटे भाई मंजीत को खेलों के लिए प्रेरित किया। कठिन काम था। व्हीलचेयर पर बैठने तक की शक्ति नहीं थी, लेकिन मंजीत की दृढ़ इच्छाशक्ति के आगे हर कठिनाई ने घुटने टेक दिए। अब मंजीत पैरालंपिक खेलों में शॉटपुट में देश का पैरालंपिक एशियन गेम्स में प्रतिनिधित्व करेंगे।जकार्ता (इंडोनेशिया) में छह से 13 अक्टूबर तक प्रतियोगिता आयोजित होगी।
शाहरुख खान ने मंजीत से कहा चक दे इंडिया
फिल्म अभिनेता शाहरुख खान ने पैरा एथलीट आफ इंडिया के चयनित खिलाड़ियों को प्रोत्साहित करने के लिए एक कार्यक्रम आयोजित किया था। दिल्ली में आयोजित इस कार्यक्रम में मंजीत ने अपने पिता महेंद्र सिंह के साथ शिरकत की। पिता महेंद्र ने बताया कि अभी बेटा दिल्ली में ही लगे कैंप में है।
शाहरुख खान ने मुलाकात के दौरान ही मंजीत की जिंदगी के बारे में जानकारी ली तो वह भी एक बार भावुक हो गए। हालांकि यह भी कहा आपको हर हाल में मेडल लाना है।
पहले दादा के गर्दन की हड्डी टूटी तो पढ़ाई भी छूटी
महेंद्र के पिता मूल रूप से झज्जर के भंबेरी गांव के रहने वाले हैं। सिंचाई विभाग से रिटायर महेंद्र बताते हैं कि मंजीत जब छोटे थे, उसी दौरान उनके दादा स्वर्गीय सूबेदार मेजर शेर सिंह के गर्दन की हड्डी टूट गई। मजबूरी में दादा की सेवा के लिए मंजीत को गांव में रहना पड़ा। इसलिए 12वीं के बाद पढ़ाई नहीं हो सकी। फिर शादी हो गई तो जिम्मेदारी बढ़ गई, इसलिए पोल्ट्री फॉर्म खोल लिया। एक दिन पोल्ट्री फॉर्म जाते वक्त हादसा हो गया। फिर तो जिंदगी ही पूरी तरह से बदल गई।
अब व्हीलचेयर वाली प्रतियोगिताओं में करेंगे शिरकत
मंजीत को बड़े भाई ने प्रेरित और पत्नी कुसुमलता ने हिम्मत बढ़ाई। करीब चार साल के कड़े अभ्यास के बाद 2016 डिस्कस थ्रो में ब्रांज मेडल जीता। राष्ट्रीय खेल में पहली दफा बेहतर प्रदर्शन किया तो हौसला बढ़ा। इसके बाद मेडल आते रहे। बीते साल जयपुर में राष्ट्रीय पैरालंपिक खेलों में डिस्कस थ्रो व जैवलिन सिल्वर व ब्रांज मेडल जीता। जकार्ता में व्हीलचेयर के ए-53 कैटेगिरी में इनका चयन हुआ है। इसके अलावा भी ढेर सारे मेडल हैं।