स्वार्थ ऐसा अनुभव जो मनुष्य को कभी जीतने नहीं देता
भीड़ में ऐसे लोगों की पहचाना जरूरी है क्योंकि ऐसे लोगों का साथ हमें जीवन भर परेशान करता है। प्रेम एक ऐसा अनुभव है जो मनुष्य को कभी हारने नहीं देता। स्वार्थ एक ऐसा अनुभव है जो मनुष्य को कभी जीतने नहीं देता। प्यार और स्वार्थ में यही फर्क है कि प्यार हमें मजबूत बनता है और स्वार्थ मजबूर।
हमें स्वार्थ से दूर रहना चाहिए। यह सब कहने सुनने में अच्छा लगता है, पर व्यवहारिक नहीं है। हर इंसान एक हद तक स्वार्थी होता है और होना भी चाहिए, पर जब वो स्वार्थ किसी का अहित करने लगे तो उस स्वार्थ का त्याग करना ही बुद्धिमता है। उदाहरण के तौर पर कुछ लोग हमेशा दूसरों को यह विश्वास दिलाने की कोशिश करते रहते हैं कि उनका हर कार्य उनसे बेहतर है। वो घंटों तक अपने बारे में बात करते रहते हैं और दूसरों को कमतर महसूस करवाने की कोशिश करते हैं। ऐसे लोगों से हमें हमेशा दूरी बनाकर रखनी चाहिए।
भीड़ में ऐसे लोगों की पहचाना जरूरी है, क्योंकि ऐसे लोगों का साथ हमें जीवन भर परेशान करता है। प्रेम एक ऐसा अनुभव है, जो मनुष्य को कभी हारने नहीं देता। स्वार्थ एक ऐसा अनुभव है, जो मनुष्य को कभी जीतने नहीं देता। प्यार और स्वार्थ में यही फर्क है कि प्यार हमें मजबूत बनता है और स्वार्थ मजबूर। प्रकृति भी हमें सिखाती है कि कैसे नि:स्वार्थ भाव से हमें अपना काम करते रहना चाहिए। कुदरत से हमें जो भी मिलता है तो बिना किसी भेदभाव के सभी की झोली में भरपूर होता है। रहीम के दोहे में लिखा है.
तरुवर फल नहीं खाता है, सरोवर पियहि न पानी।
कहि रहीम पर काज हित, संपत्ति सचहि सुजान।।
वही मनुष्य सच्चा और समर्थ है जो परोपकार के लिए जीवन समर्पित कर देता है। दूसरों के प्रति नि:स्वार्थ सेवा भाव रखना ही जीवन की कामयाबी का मूल मंत्र है। जब हम कोई कार्य शुरू करते हैं तो उसमें परोपकार की भावना निहित होना चाहिए। फिर वह कार्य स्वार्थ से उठ कर परमार्थ बन जाता है। ईश्वर ने हमें यह जीवन आपस में मिलकर भाईचारे से व्यतीत करने के लिए दिया है। हमारी संस्कृति भी इसी ओर इंगित करती है-
सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामया:
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु,मां कश्चिद दु:ख भागभवेत:
जब हम इस मंगलकामना के साथ कार्य करेंगे तो सफलता निश्चित मिलेगी। अपनी कार्य सिद्धि करना जरूरी है, पर साथ में अन्य जीवों का ख्याल रखना ही मानवता है। लोग उसी को याद रखते हैं जिसने समाज के लिए कुछ किया वरना सिर्फ अपने लिए तो कीट पतंगे भी जीते हैं। अगर हम सिर्फ अपना सोचेंगे तो एक बहुत ही संकुचित जीवन जीएंगे। परमार्थ की सोच रखकर आगे बढ़ेंगे तो जीवन का विस्तार होता चला जाएगा।
- शालिनी चौधरी, प्रिसिपल, इंडस पब्लिक स्कूल