परिस्थितियां कैसी भी हों, न खोएं संयम
विश्व के महान पुरुषों की जीवनियों का अध्ययन करने पर यह पता चलता है कि उन्होंने जो भी सफलता महानता श्रेय उन्नति प्राप्त की है उनके कारणों में संयम शीलता की प्रधानता रही है। आत्मसंयम के पथ पर अग्रसर होकर उन्होंने अपने जीवन को महान बनाया है। इसमें कोई भी संदेह नहीं है कि संयम शीलता के पथ पर चल कर ही मनुष्य मानव बनता है देवता बनता है और जन-जन का प्रिय बन जाता है।
आत्मसंयमी होना किसी भी श्रेष्ठ पुरुष का प्रथम लक्षण होता है। आत्मसंयम जीवन का बल है, सफल जीवन की नींव है। संयम उन्नति की पहली शर्त है। आत्मसंयम का अर्थ है- अपने मन और इंद्रियों को वश में रखना। यदि आपमें इसका अभाव है तो आपकी सारी शिक्षा व्यर्थ है। अत: इंद्रियों का संयम, मन का संयम, वाणी और विचारों का संयम करके जीवन को उन्नति के मार्ग पर ले जाया जा सकता है।
विश्व के महान पुरुषों की जीवनियों का अध्ययन करने पर यह पता चलता है कि उन्होंने जो भी सफलता, महानता, श्रेय, उन्नति प्राप्त की है उनके कारणों में संयम शीलता की प्रधानता रही है। आत्मसंयम के पथ पर अग्रसर होकर उन्होंने अपने जीवन को महान बनाया है। इसमें कोई भी संदेह नहीं है कि संयम शीलता के पथ पर चल कर ही मनुष्य मानव बनता है, देवता बनता है और जन-जन का प्रिय बन जाता है। जिसके पीछे चलकर मानव जाति धन्य हो जाती हे। इस संदर्भ में हम महात्मा गांधी और गौतम बुद्ध के उदाहरणों से शिक्षा ले सकते हैं।
हमारी पांच ज्ञानेन्द्रियां होती हैं, जो हमारे शरीर का संपर्क बाहरी दुनिया से करवाती है। ये पांच ज्ञानेन्द्रियां हैं- आंख, नाक, कान, जिह्वा और त्वचा। आंखों की दृष्टि से हम बाहरी दुनिया को देखकर समझते हैं। अब हमें क्या देखना है, कितना देखना है और कैसे देखना है, इन सब पर विचार करना होगा। इसी प्रकार कुछ लोग अपनी जिह्वा के वश में होते हैं। वे अधिक भोजन करते हैं, चटपटा, तला हुआ, मिर्च मसालेदार भोजन उनकी पहली पसंद होता है।
आजकल बच्चे घर के बने खाने की अपेक्षा बाजार से मिलने वाला जंक फूड खाना अधिक पसंद करते हैं। ऐसा भोजन मोटापे और अनेक प्रकार की बीमारियों को दावत देता है। कुछ लोग शराब एवं सिगरेट का अधिक सेवन करते हैं। साथ ही कहते हैं कि क्या करें, छूटती ही नहीं है। ऐसे व्यक्ति अपने इन्द्रियों के गुलाम बन जाते हैं और परिणाम स्वरूप अपने शरीर को नष्ट कर लेते हैं।
एक शिक्षक होने के नाते मैंने अनेकों बार ऐसे माता-पिता को देखा है जो दूसरी-तीसरी कक्षा में पढ़ने वाले अपने बच्चों को लेकर उनकी दसवीं कक्षा तक की चिता करना शुरू कर देते हैं। बच्चों की पढ़ाई को लेकर उन्हें खूब भला-बुरा कहते हैं, जबकि वह नासमझ उन बातों का अर्थ तक नहीं जानता। ये सब उदाहरण उनकी अधीरता और असंयम को दर्शाते हैं। जैसा कि कबीर ने भी कहा है- ''धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होये, माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आए फल होये'' । अर्थात सभी कार्य नियत समय आने पर पूरे हो जाते हैं। हमें किसी भी परिस्थितियों में अपना संयम, अपना धैर्य नहीं खोना चाहिए।
डा. अलका मैनी, प्रिसिपल, सेंट पॉल हाई स्कूल, हिसार