किसानों की दशा व दिशा को ध्यान में रखकर शोध करें विज्ञानी
उन्होंने विश्वविद्यालय के विज्ञानियों की सराहना करते हुए कहा कि यह टीम भावना का ही परिणाम है कि वर्तमान में विश्वविद्यालय दिन दोगुनी रात चोगुनी उन्नति के पथ पर अग्रसर है। आज विश्वविद्यालय के विज्ञानियों द्वारा विकसित विभिन्न फसलों की उन्नत किस्मों व तकनीकों का ही नतीजा है कि प्रदेश का देश के खाद्यान्न भंडारण में अहम योगदान है। कार्यक्रम का आयोजन कुलपति सचिवालय में किया गया।
जागरण संवाददाता, हिसार : किसी भी सामूहिक काम को करने के लिए टीम भावना का होना बहुत ही जरूरी है। टीम भावना से किए गए हर काम में सफलता सुनिश्चित है। यह बातें चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. समर सिंह ने कही। वे विश्वविद्यालय में ज्वार की उन्नत किस्म विकसित करने वाले विज्ञानियों की टीम के सम्मान में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान संबोधित कर रहे थे।
उन्होंने विश्वविद्यालय के विज्ञानियों की सराहना करते हुए कहा कि यह टीम भावना का ही परिणाम है कि वर्तमान में विश्वविद्यालय दिन दोगुनी रात चोगुनी उन्नति के पथ पर अग्रसर है। आज विश्वविद्यालय के विज्ञानियों द्वारा विकसित विभिन्न फसलों की उन्नत किस्मों व तकनीकों का ही नतीजा है कि प्रदेश का देश के खाद्यान्न भंडारण में अहम योगदान है। कार्यक्रम का आयोजन कुलपति सचिवालय में किया गया। इस दौरान उन्नत किस्म विकसित करने वाली विज्ञानियों की टीम को प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया गया। उन्होंने विज्ञानियों से आह्वान किया कि वे किसानों की दशा व दिशा को ध्यान में रखकर ही शोध कार्य करें, ताकि उनकी आर्थिक स्थिति ओर अधिक मजबूत हो सके।
इन विज्ञानियों को किया गया सम्मानित
विश्वविद्यालय के आनुवांशिकी एवं पौध प्रजनन विभाग के विभागाध्यक्ष डा. एके छाबड़ा के अनुसार सीएसवी 44 एफ किस्म को विकसित करने में इस विभाग के चारा अनुभाग के विज्ञानियों डा. पम्मी कुमारी, डा. सत्यवान आर्य, डा. एसके पाहुजा, डा. एनके ठकराल एवं डा. डीएस फौगाट की टीम की मेहनत रंग लाई है। इसके अलावा डा. सतपाल, डा. जयंती टोकस, डा. हरीश कुमार, डा. विनोद मलिक एवं डा. सरिता देवी का भी विशेष सहयोग रहा है। इन्हीं विज्ञानियों के उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए इन्हें सम्मानित किया गया। है। विभागाध्यक्ष ने बताया कि ज्वार की इस किस्म को विश्वविद्यालय के अनुवांशिकी एवं पौध प्रजनन विभाग के चारा अनुभाग द्वारा विकसित किया गया है। एचएयू में विकसित ज्वार की यह किस्म दक्षिणी राज्यों मुख्यत: कर्नाटक, महाराष्ट्र और तमिलनाडु के लिए सिफारिश की गई है।
किस्म की यह है खासियत
सीएसवी 44 एफ किस्म में अन्य किस्मों की तुलना में प्रोटीन व पाचनशीलता अधिक है, जिसकी वजह से पशु के दुग्ध उत्पादन में बढ़ोतरी करती है। इस किस्म में मिठास 10 फीसद से भी अधिक व स्वादिष्ट होने के कारण पशु इसको खाना अधिक पसंद करते हैं। सिफारिश किए गए उचित खाद व सिचाई प्रबंधन के अनुसार यह किस्म अधिक पैदावार देने में सक्षम है। अधिक बारिश व तेज हवा चलने पर भी यह किस्म गिरती नहीं है। ज्वार में प्राकृतिक तौर पर पाया जाने वाला विषैला तत्व धूरिन इस किस्म में बहुत ही कम है। सीएसवी 44 एफ किस्म तनाछेदक कीट के प्रति प्रतिरोधी है व इसमें पत्तों पर लगने वाले रोग भी नहीं लगते।
चारे के लिए उत्तम है यह किस्म
विज्ञानियों की मानें तो चारा उत्पादन, पौष्टिकता एवं रोग प्रतिरोधकता की ²ष्टि से यह एक उत्तम किस्म है। इस किस्म की हरे चारे की औसत पैदावार 407 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। जोकि ज्वार की अन्य बेहतर किस्मों सीएसवी 21 एफ और सीएसवी 30 एफ से क्रमश: 7.5 फीसद व 5.8 फीसद अधिक है।