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निगम चुनाव में कांग्रेस के दो बड़े राजनीतिक घराने मिलकर भी नहीं खींच पाए जीत की रेखा

भजनलाल व जिंदल परिवार ने 25 साल बाद एक साथ कदमताल की लेकिन भाजपा के खिलाफ टिक नहीं पाए और नगर निगम चुनाव में कांग्रेस समर्थित मेयर सटी प्रत्‍याशी रेखा ऐरन गौतम सरदाना से हार गई।

By manoj kumarEdited By: Published: Thu, 20 Dec 2018 03:07 PM (IST)Updated: Fri, 21 Dec 2018 03:39 PM (IST)
निगम चुनाव में कांग्रेस के दो बड़े राजनीतिक घराने मिलकर भी नहीं खींच पाए जीत की रेखा
निगम चुनाव में कांग्रेस के दो बड़े राजनीतिक घराने मिलकर भी नहीं खींच पाए जीत की रेखा

हिसार [राकेश क्रांति] चार साल पहले विधानसभा चुनाव में भाजपा ने हिसार शहर में जिंदल हाउस के वर्चस्व को तोड़ा था। अब नगर निकाय चुनाव में भाजपा ने जिंदल हाउस से मेयर की कुर्सी भी छीनकर अपनी बढ़ती ताकत का फिर से अहसास कराया है। मेयर चुनाव में गौतम सरदाना की जीत से भाजपा पहली बार निगम हाउस पर काबिज हुई है। यह जीत कई मायनों में बड़ी है।

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भाजपा प्रत्याशी गौतम को हराने के लिए हिसार के दो बड़े राजनीतिक घरानों ने 25 साल बाद हाथ मिलाया था। भजनलाल परिवार और जिंदल परिवार में राजनीतिक दूरियां जगजाहिर थीं मगर अपने वजूद को बचाने के लिए दोनों एक मंच पर आ गए। इतना ही नहीं, जिंदल परिवार ने अपने भरोसेमंद राजलीवाला परिवार की टिकट काटकर भाजपा से बगावत करके आए हनुमान ऐरन की पत्नी रेखा ऐरन को थमा दी।

फिर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं हरियाणा जनहित कांग्रेस (हजकां) के प्रमुख रहे कुलदीप बिश्नोई ने भी जिंदल परिवार के प्रस्ताव पर अपनी मुहर लगा दी। रेखा के जरिए दोनों घराने हिसार की राजनीति में अपनी ताकत की लंबी रेखा खींचना चाहते थे। तभी दोनों परिवारों ने अपनी एकजुटता दिखाने के लिए रेखा ऐरन के नाम का ऐलान भजन आवास पर संयुक्त रूप से किया।

यह घटनाक्रम राजनीतिक गलियारों में जबरदस्त चर्चा का विषय रहा क्योंकि राजनीति में आने के बाद सावित्री जिंदल ने पहली बार भजन आवास में कदम रखे थे। भले ही कुलदीप बिश्नोई ने रेखा ऐरन के समर्थन में प्रचार करने से दूरी बनाए रखी मगर उनकी पत्नी विधायक रेणुका बिश्नोई ने प्रचार में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। सावित्री जिंदल ने चुनावी मैदान में ऐसे सक्रिय नजर आईं, जैसे खुद ही चुनाव लड़ रही हों। सावित्री, रेणुका और रेखा की तिकड़ी ने शहर के हर कोने में दस्तक दी। इसके बावजूद भाजपा की रणनीति विरोधी खेमे पर भारी पड़ी।

असल मेंं भाजपा ने निकाय चुनावी की बिसात कुछ महीने पहले बिछानी शुरू कर दी थी। पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा प्रत्याशी डा. कमल गुप्ता के मुकाबले में हजकां से गौतम सरदाना और इनेलो से निगम के डिप्टी मेयर भीम महाजन ने चुनाव लड़ा था। पंजाबी बाहुल्य हिसार शहर में अपना वोट बैंक बढ़ाने के लिए भाजपा ने इन दोनों पंजाबी नेताओं को अपने खेमे में मिला लिया।

चूंकि हिसार में वैश्य समाज का भी प्रभावशाली वोट बैंक है और इस समाज से डा. गुप्ता शहर में पार्टी के विधायक हैंं तो भाजपा ने पंजाबी-वैश्य समाज के वोट बैंक को साधते हुए गौतम सरदाना को मैदान में उतारा। इसके लिए भाजपा को अपने चार साल पुराने साथी हनुमान ऐरन की नाराजगी भी झेलनी पड़ी। हनुमान अपनी पत्नी रेखा के लिए टिकट मांग रहे थे। वैश्य समाज से संबंध रखने वाले ऐरन दंपती को भाजपा ने जातीय समीकरण को ध्यान में रखकर टिकट नहीं दी थी।

इससे ऐरन दंपती इतना खफा हुआ कि जिंदल हाउस जा पहुंचा। गौतम को प्रत्याशी बनाने पर केवल ऐरन दंपती ही नहीं, भाजपा के पुराने कार्यकर्ताओं में भी हलचल थी। इसकी रिपोर्ट मिलने पर मुख्यमंत्री मनोहरलाल ने खुद मोर्चा संभाला और पार्टी कार्यकर्ताओं को एकजुटता का पाठ पढ़ाकर मैदान में उतार दिया। बाकायदा मुख्यमंत्री ने चुनाव प्रचार थमने से पहले गौतम के लिए जनसभा भी की।

जिंदल और कुलदीप बिश्नोई के एक साथ आने के बाद जहां रेखा ऐरन को सबसे मजबूत माना जा रहा था, वहीं आखिरी तीन से चार दिन में भाजपा ने अपने मंत्रियों, विधायकों और वरिष्ठ नेताओं की फौज उतार कर डैमेज कंट्रोल कर लिया। इसका असर चुनावी नतीजे पर साफ देखने को मिला। गौतम को 48 फीसद वोट मिले जबकि रेखा ऐरन 28 फीसद पर सिमट गईं। रेखा ऐरन के अलावा पूर्व मंत्री हरि सिंह सैनी की पुत्र वधु रेखा सैनी ही 10 हजार का आंकड़ा छूू पाईं। बाकी सब प्रत्याशी 5 हजार वोटों से नीचे रह गए।

चार विधानसभा क्षेत्र के हिस्सों को समेटे हिसार नगर निगम में गौतम ने चारों तरफ अच्छे वोट हासिल किए हैं। भाजपा को गौतम की छवि का भी फायदा मिला है। भले ही चार साल तक गौतम सरदाना विरोधी खेमे में होने के कारण प्रदेश सरकार की नीतियों पर सवाल उठाते रहे हो मगर उनकी छवि शहरवासियों के लिए संघर्ष की रही है। अब मेयर बनने के बाद गौतम के लिए वह सभी मुद्दे चुनौती के तौर पर सामने होंगे, जिनके लिए वह सड़कों पर उतरते रहे हैं।


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