Sanskarshala: हिसार के सेंट मैरी स्कूल की प्रिंसिपल शैली मेहता बोलीं- इंटरनेट-मीडिया पर निजी जीवन का अनावश्यक दिखावा
हिसार के सेंट मैरी स्कूल की प्रिंसिपल शैली मेहता बोलीं बड़ी विडंबना के साथ कहना पड़ रहा है कि जो वास्तव में सामाजिकता थी उसे हमने तिलांजलि दे दी है और जो सामाजिक है ही नहीं उसे सामाजिक होने का सर्वश्रेष्ठ पुरस्कार देकर हम फूले नहीं समा रहे हैं।
जागरण संवाददाता, हिसार। सेंट मैरी स्कूल की प्रिंसिपल शैली मेहता ने कहा कि अंग्रेजों ने भारत में चाय को अमृत-पेय के रूप में स्थापित करने के लिए इसे प्रसाद स्वरूप बांटा, जिसका परिणाम आज हम सब जानते हैं। इसी के समानांतर जब मैं इंटरनेट-मीडिया की बात करती हूं तो ठीक ऐसा ही निशुल्क वितरण इंटरनेट का किया गया। इसका भी परिणाम आज हम सब भोग रहे हैं। बड़ी विडंबना के साथ कहना पड़ रहा है कि जो वास्तव में सामाजिकता थी, उसे हमने तिलांजलि दे दी है और जो सामाजिक है ही नहीं, उसे सामाजिक होने का सर्वश्रेष्ठ पुरस्कार देकर हम फूले नहीं समा रहे हैं।
मैं बात कर रही हूँ सोशल-मीडिया की, जिसने भारतीय सभ्यता, संस्कृति व सामाजिक ताने-बाने का परिद्श्य बदलने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। जन्म-दिवस से लेकर पुंसवन संस्कार तक और कहा जाए तो अंतिम संस्कार तक भी इंटरनेट हर आम और खास के लिए एक अवांछित व अनिवार्य माध्यम बन गया है। इंटरनेट मीडिया ने मध्यमवर्गीय परिवारों और कहा जाए तो निम्नवर्गीय परिवारों की जेब पर डाका डाला हैं। आज हर व्यक्ति अच्छा दिखने के लिए अनावश्यक वस्तुओं व सुविधाओं पर अवांछित खर्च कर रहा है ताकि मोबाइल स्टेटस पर उसका स्टेटस सराहा जाए।
झूठी सराहना पाने के लिए व झूठी आत्म संतुष्टि के लिए आज समाज का हर व्यक्ति अपने मोबाइल की स्क्रीन पर ताकता रहता है। यह हमारे समाज का कटु सत्य है कि जिस मोबाइल व इंटरनेट को मनुष्य ने अपने सदुपयोग के लिए बनाया था, आज वही हमें कठपुतली की तरह नचा रहा है ....... और हम नाच रहे हैं।
आज व्यक्तिगत जैसा कुछ नहीं रहा। जीवन के अंतरंग पहलुओं को भी समाज के समक्ष इस प्रकार परोसा जा रहा है जिसे देखकर हमारा नौजवान पथभ्रष्ट हो रहा है।
स्वामी विवेकानंद द्वारा कहा गया वक्तव्य मुझे याद आ रहा है-
‘‘उठो! जगो! और लक्ष्य की प्राप्ति तक मत रूको!’’
विद्यालयों में जाने वाले छात्रों से लेकर महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में अध्ययन करने वाले नौजवानों के जीवन की दिशा और दशा दोनों ही इंटरनेट मीडिया ने बदलकर रख दी है। सभ्यता-संस्कृति के जो सोपान और लक्ष्य हमारे ऋषि-मुनियों और महापुरूषों ने स्थापित किए थे, मोबाइल व इंटरनेट मीडिया के प्रचलन से धूमिल होते जा रहे हैं। अपने पद और प्रतिष्ठा का परिचय अपने कार्यक्षेत्र में न देकर इंटरनेट मीडिया पर प्रस्तुत किया जा रहा है।
जो होता है, वह दिखता नहीं और जो दिखता है, वह होता नहीं। मुझे लगता है, आज के सामाजिक परिदृश्य में इंटरनेट-मीडिया के द्वारा हम सब एक ऐसी अंधी दौड़ का हिस्सा बनते जा रहे हैं जिसका कोई लक्ष्य नहीं है।
बाबा कबीरदास ने कहा है-
जाति न पूछो साध की, पूछ लीजिए ज्ञान।
मोल करो तलवार का, पड़ा रहन दो म्यान।।
म्यान पर चाहे कितने ही हीरे-मोती जड़े हों, रणक्षेत्र में तलवार का ही महत्त्व होता है।
इंटरनेट-मीडिया का प्रयास, अनावश्यक दिखावे के लिए न करके मानव जाति के कल्याण हेतु किया जाना चाहिए। आविष्कार, अभिशाप न बनें, आइए हम सब मिलकर इसके लिए कृतसंकल्प हों!
एक बार फिर से कहना चाहूंगी!
हो गई पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए।
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए।।