रोहिंग्या मुसलमानों ने हरियाणा के शहर में जमाए पैर, आधार कार्ड भी बनवा चुके
जांच का विषय है कि आखिर ये रोहिंग्या मुसलमान कौन से रास्ते से हरियाणा व भिवानी आ रहे हैं और इन लोगों ने भिवानी में ठिकाना बना लिया है।
भिवानी/हिसार [बलवान शर्मा] इन दिनों असम या दूसरे देशों से मुसलमान आकर हरियाणा के भिवानी व आस-पास के गांवों में डेरा डाल रहे हैं। धीरे-धीरे इनकी संख्या भी बढ़ती जा रही है। सरकारी भूमि पर डेरा डालकर यहां पर रहना शुरू कर दिया है। पुलिस पड़ताल होती है तो ये खुद को आसाम के नागरिक बताते हैं। लेकिन दैनिक जागरण ने इनकी असल पड़ताल करने के लिए असमिया भाषा के जानकार व्यक्ति की मदद ली तो माजरा कुछ और ही निकला। बात-बात में मान लिया कि वे बांग्लादेशी भाषा बोलते हैं और रोहिंग्या मुसलमान हैं। अब सवाल उठता है कि आखिर ये लोग अवैध तरीके से कैसे घुसपैठ कर आ रहे हैं।
यहां एक सवाल इनके आधार कार्ड पर भी उठता है कि वोट की राजनीति में कई बार कुछ नेता बाहरी व्यक्तियों के आधार व राशन कार्ड बनवा देते हैं और खामियाजा देश को सुरक्षा व्यवस्था के रूप में उठाना पड़ जाता है। इसी गंभीर मुद्दे को लेकर दैनिक जागरण के प्रतिनिधि ने शहर के विभिन्न क्षेत्रों का दौरा कर जायजा लिया और उक्त लोगों से बातचीत के लिए असमिया भाषा के जानकार वीएचपी जिला मंत्री कृष्ण कुमार शर्मा की मदद ली।
कृष्ण कुमार ने इन लोगों से असमिया भाषा में सवाल पूछे तो वे फंसते चले गए और उन्होंने कबूल किया कि वे रोहिंग्या मुसलमान हैं।
यह जांच का विषय है कि आखिर ये रोहिंग्या मुसलमान कौन से रास्ते से हरियाणा व भिवानी आ रहे हैं और इन लोगों ने भिवानी में ठिकाना बना लिया है। पिपली वाली जोहड़ी एरिया में करीब 400-500 मुसलमान रह रहे हैं। इनके अलावा उक्त लोगों ने श्मशान घाट के पास रेलवे लाइन के पीछे, पालुवास, पिपली वाली जोहड़ी एरिया, तोशाम बाईपास पर भी ठिकाना बनाया हुआ है।
थोड़ी और पड़ताल की गई तो पता चला है कि ढिगावा, देवराला जैसे गांवों में भी उक्त लोगों ने झुग्गी झोपडिय़ां बनाकर रहना शुरू कर दिया है। कोई भीख मांगता है तो कोई कागज चुनते हैं और महिलाएं लोगों के घरों में काम करती हैं। कहने को तो इनके पास असम के आधार कार्ड हैं, लेकिन जब उनका सामना असमिया भाषा बोलने वाले कृष्ण शर्मा से हुआ तो उनकी पोल खुल गई।
ये पूछे सवाल
कृष्ण शर्मा ने एक महिला से सवाल किया कि तुम्हार बाड़ी कौन खाने आछी। (तुम्हारा घर कहा हैं)
जवाब - हमार बाड़ी बरपेटा आछी।
सवाल-ऐठा जो काज करतैया छै। बरपेटा बोत काजा छै। (जो काम यहां कर रहे हो, वह तो बरपेटा में भी बहुत है। )
जवाब : ऐठा हमार बोत मानुष आछै। जै ठेके हाम काज करनौ आए छै।( हमारे यहां पर बहुत से आदमी काम कर रहे हैं। इसलिए हम यहां पर आए हैं।)
सवाल - होराब अली नाम के व्यक्ति से सवाल पूछा कि तुम्ही रोहिंग्या मुसलमान आछी नां।
जवाब-ना! थोड़ा झिझकते हुए हां रोहिंग्या मुसलमान आछी। ( एक बार ना करने के बाद दोबारा से कबूल कर लिया कि वह रोहिंग्या मुसलमान है।)
असम में हैं दो प्रकार के मुसलमान
कृष्ण शर्मा बताते हैं कि वे कई वर्ष तक असम में रहे हैं और असमिया भाषा के पूरी तरह से जानकार हैं। वहां पर दो प्रकार के मुसलमान हैं। इनमें गोरिया मुसलमान (जो खुद को मोहम्मद गोरी की संतान बताते हैं और वे आसाम के स्थायी नागरिक बताते हैं। दूसरे बांग्लादेशी घुसपैठिये जो मैमनङ्क्षसह जिला बांग्लादेश से आए हुए हैं। बरपेटा में गोरिया मुसलमान जो स्थायी तौर पर रहते हैं। कृष्ण शर्मा का कहना है कि जो लोग भिवानी आए हुए हैं, उनकी भाषा असमिया नहीं है। वे खुद भी बांग्ला भाषी होने व रोङ्क्षहग्या होने की बात भी कबूल कर रहे हैं।
--इन लोगों की जांच करवाई जा रही है। हालांकि उक्त लोग खुद को असम के रहने वाले बताते हैं। लेकिन भाषा और रोहिंग्या होने की बात अभी तक सामने नहीं आई है।
गंगाराम पूनिया, एसपी भिवानी