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जीजेयू में फर्जी हस्ताक्षर कर फैलोशिप हड़पने पर रिसर्चर छात्र ने मांगी माफी, फैसले पर विचार जारी

जीजेयू में पीएचडी कर रहे एक छात्र ने 2016 में जेआरएफ के जरिए विश्वविद्यालय में मास कम्यूनिकेशन विभाग में एक प्रोफेसर के अंडर पीएचडी में दाखिला लिया था। उसने फ्रॉड किया है।

By Manoj KumarEdited By: Published: Sat, 08 Feb 2020 01:47 PM (IST)Updated: Sat, 08 Feb 2020 01:47 PM (IST)
जीजेयू में फर्जी हस्ताक्षर कर फैलोशिप हड़पने पर रिसर्चर छात्र ने मांगी माफी, फैसले पर विचार जारी
जीजेयू में फर्जी हस्ताक्षर कर फैलोशिप हड़पने पर रिसर्चर छात्र ने मांगी माफी, फैसले पर विचार जारी

हिसार, जेएनएन। जीजेयू के मास कम्यूनिकेशन विभाग में फर्जी हस्ताक्षर कर फैलोशिप हड़पने का प्रयास करने के मामले के बाद स्टाफ काउंसिल के सामने छात्र ने लिखित में माफी मांगी है। हालांकि स्टाफ काउंसिल उसका पीएचडी रजिस्ट्रेशन रद करने पर विचार कर रही है। छात्र के भविष्य का फैसला अब स्टाफ काउंसिल के फैसले पर निर्भर है। छात्र को अक्टूबर में पीएचडी थिसिस जमा करनी है, लेकिन छात्र को विभाग से सस्पेंड किया जा चुका है।

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जीजेयू में एक पीएचडी छात्र द्वारा आवेदन फार्म पर फर्जी हस्ताक्षर करने पर स्टाफ काउंसिल की बैठक के बाद कड़ी कार्रवाई करते हुए विभाग के चेयरमैन ने छात्र को सस्पेंड कर दिया था। छात्र अब विश्वविद्यालय की शैक्षणिक गतिविधियों में व पीएचडी संबंधी कार्यों में भाग नहीं ले सकता।

यह है मामला

जीजेयू में पीएचडी कर रहे एक छात्र ने 2016 में जेआरएफ के जरिए विश्वविद्यालय में मास कम्यूनिकेशन विभाग में एक प्रोफेसर के अंडर पीएचडी में दाखिला लिया था। लेकिन यह छात्र पहले वर्ष नियमित रूप से पीएचडी की पढ़ाई के लिए विश्वविद्यालय आता रहा और पीएचडी के लिए मिलने वाली फैलोशिप भी नियमित रूप से लेता रहा। इस बार उसने चेयरमैन के फर्जी हस्ताक्षर कर फैलोशिप हड़पने का प्रयास किया था। छात्र ने फैलोशिप पाने के लिए चेयरमैन के हस्ताक्षर को स्कैन किया और आवेदन पर लगा कर अकाउंट ब्रांच में भेज दिया। अकाउंट ब्रांच से आवेदन को सत्यापित करने के लिए जब मास कम्यूनिकेशन विभाग के चेयरमैन को भेजा गया तो चेयरमैन ने कहा कि यह हस्ताक्षर उन्होंने नहीं किए। जिसके बाद इस मामला उजागर हुआ था। चेयरमैन ने इस मामले में विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार और कुलपति को लिखा था।

------छात्र के भविष्य का फैसला स्टाफ काउंसिल के फैसले पर निर्भर है। मामले में विभाग के चेयरमैन को फैसला लेना है। मेरे पास मामला आया था, हमने छात्र के खिलाफ कड़ी कार्रवाई के लिए विभाग को आदेश दिए थे।

- प्रो. टंकेश्वर कुमार, कुलपति, जीजेयू।


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