हृदय गति रुकने पर कोई भी कर सकेगा बचाव, सिविल अस्पतालों और एंबुलेंसों में लगी ऐसी मशीनें
प्रदेश भर में सिविल अस्पतालों में 85 जगहों पर से मशीनें लगाई गई हैं। साथ ही पूरे प्रदेश में 300 बीएलएस(बेसिक लाइफ सपोर्ट) एंबुलेंस में इन मशीनों को स्थापित किया गया है
हिसार [सुभाष चंद्र] किसी को हार्ट अटैक आने पर हृदय गति रुकने की स्थिति में डाक्टर सहित चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी भी मरीज का बचाव कर सकते हैं। यह सब संभव हुआ है ऑटामेटिक एक्सटर्नल डेफिब्रिलेटर मशीन से। इस मशीन के द्वारा बचाव देकर 10 मिनट में हृदय गति को सामान्य किया जा सकता है। प्रदेश भर में सिविल अस्पतालों में 85 जगहों पर से मशीनें लगाई गई हैं। साथ ही पूरे प्रदेश में 300 बीएलएस(बेसिक लाइफ सपोर्ट) एंबुलेंस में इन मशीनों को स्थापित किया गया है।
इस मशीन की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह मरीज को अपने इस्तेमाल के लिए खुद ही गाइड करेगी। इसमें लगा रेसक्यू कोच अंग्रेजी, फ्रैंच, स्पेनिश, डच आदि कई भाषाओं में गाइड कर सकता है। यह हर स्टेप पर बताती है कि हमें आगे क्या करना है। मशीन में 0 से 8 साल के बच्चे और 8 साल से उपर के आयु के लोगों के लिए अलग-अलग पैड दिए गए हैं। आठ साल के उपर के लोगों के लिए एक पैड को छाती पर दिल के पास और दूसरा पैड पेट के पास लगाया जाता है। वहीं आठ साल से कम उम्र के बच्चों के लिए एक पैड छाती पर और दूसरा पैड पीठ पर लगाया जाता है।
अपने पार्टस का खुद ही करती है चेक
इस मशीन की एक ओर खास बात यह है कि यह अपने पाट््र्स खुद चेक करती है और सभी पाट््र्स ठीक होने पर ग्रीन सिग्नल भी देती है। मशीन में इस तरह की सेङ्क्षटग की गई है कि यह प्रत्येक सुबह तीन बजे अपना चेकअप खुद ही कर लेती है।
कहीं भी ले जा सकते हैं इसे
अस्पताल ही नहीं बल्कि कोई भी दिल का मरीज इस मशीन को खरीदकर घर पर ही प्रयोग कर सकता है। 2.5 किलोग्राम वजन की इस पोर्टेबल मशीन की कीमत एक लाख 51 हजार 200 रुपये है। कम वजन होने के कारण इसे कहीं भी ले जाया जा सकता है। इसकी बैटरी 3 साल तक चलती है तथा इससे तीन साल तक 420 शॉक दिए जा सकते हैं। इसकी इंटरनल मेमोरी 90 मिनट की है।
मशीन को ऐसे इस्तेमाल करें
पहला स्टेप - मशीन पर लगे व्हाइट बटन को दबाएं।
दूसरा स्टेप - खोलने के बाद मशीन में दिए गए पैड निकालें।
तीसरा स्टेप - एक पैड मरीज के दिल के नजदीक और दूसरा पेट के एक तरफ लगाएं।
चौथा स्टेप - अगर शॉक देने की जरूरत हुई तो यह अपने आप शॉक देती है। लेकिन शॉक देने की स्थिति में मरीज के शरीर को नहीं छूना होता। शॉक देने के बाद अगर बेसिक लाइफ सपोर्ट की जरूरत होती है तो मशीन हमें गाइड करेगी कि मरीज की छाती पर कितनी बार दबाव डालें। साथ ही मुंह के जरिये सांस देने के लिए भी हमें निर्देश देगी।
हिसार में लगाई गईं सात मशीनें
हिसार में इस तरह की सात मशीनें लाई गई हैं, जिनमें सिविल अस्पताल में पांच मशीनें और आदमपुर व हांसी में एक-एक मशीनें लगाई गई हैं। मंगलवार को सिविल अस्पताल में सभी चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों को इस मशीन के जरिये हृदय गति रुकने पर बचाव करने की ट्रेङ्क्षनग दी गई। ट्रेनिंग देने वालों में कार्यकारी पीएमओ डा. सपना, डा. अजीत लाठर, डा. विनोद डूडी, डा. आशीष शामिल रहे।