अब धुंध में GPS की मदद से मानव रहित फाटकों पर हादसे रोकेगा रेलवे, जानें खास तकनीक
इंटरनेट से ट्रेन के चालक को स्टेशन की दूरी पता चलेगी। ट्रेन का जीपीएस एरिया के अंतर्गत आते ही फाटक पर लगे सेंसर आवाज करेंगे और फाटक पार करने वाले लोगों को ट्रेन आने का पता लग जाएगा
हिसार [अजय सिंह बिष्ट] सर्दियों में अक्सर धुंध के कारण मानव रहित फाटकों पर हादसे होते हैं। वहीं आए दिन कोई न कोई ट्रेन देर से अपने गंतव्य पर पहुंचती है। यात्रियों के समय और जानमाल की सुरक्षा को रेलवे कई जरूरी कदम उठा रहा है। धुंध ज्यादा होने के कारण ट्रेन के ड्राइवर को ट्रैक पर ज्यादा दूर तक दिखाई नहीं देता, जिस कारण ट्रैक पर आने वाले इंसान और पशु रेल हादसों का शिकार बनते हैं। ऐसे में रेलवे प्रशासन की तरफ से अभी से धुंध के कारण होने वाले हादसों से निपटने के लिए तैयारियां शुरु कर दी है। इसके लिए विभाग ने तरह-तरह की तकनीक अपनाई हैं।
ऑटोमैटिक ट्रेन प्रोटेक्शन और जीपीएस तकनीक से पता लगेगी ट्रेन की स्थिति
धुंध के कारण होते रेल हादसों को रोकने और लोको पायलट द्वारा प्लेटफॉर्म की पोजीशन जानने के लिए रेलवे द्वारा एक विशेष जीपीएस तकनीक का इस्तेमाल किया जाएगा। इसके द्वारा इंटरनेट की मदद से ट्रेन के चालक को स्टेशन की दूरी सुनिश्चित की जाएगी जिससे चालक ट्रेन को स्थिति के हिसाब से कंट्रोल कर सकेगा। इस तकनीक में रेलवे फाटक जो मानव रहित होते हैं, उन पर भी जीपीएस सिग्नल और सेंसर लगाए जाएंगे। ट्रेन का जीपीएस एरिया के अंतर्गत आते ही फाटक पर लगे सेंसर आवाज करेंगे और फाटक पार करने वाले लोगों को ट्रेन के आने का पता लग जाएगा।
इंजन में लगेंगी फॉग लाइट
इसके अतिरिक्त ट्रेन को ज्यादा देरी होने से रोकने पर इंजन में आम लाइट के साथ फॉग लाइट का भी उपयोग होगा। इसके उपयोग से दृश्यता में इजाफा होगा और ट्रेन को समय पर अपने गंतव्य पर पहुंचने पर आसानी होगी। ऑटोमेटिक ट्रेन प्रोटेक्शन सिस्टम को और भी बेहतर किया गया है जिसके द्वारा चालक को संकेतों की स्थिति जानने के लिए सहायता मिलेगी जो धुंध के कारण जानने में परेशानी होती है। वायरलैस नेटवर्क के माध्यम से ट्रेन की सुनिश्चित जानकारी आने वाले स्टेशन को प्राप्त होगी और निरंतर अपडेट से बेहतर गति और लाइन क्षमता सुनिश्चित होगी। रेलवे द्वारा देश के धुंध से प्रभावित इलाकों में लगभग 6940 कोहरे के सुरक्षित उपकरणों को चालू किया गया है।
पहले बजते थे पटाखे और लाइटमैन दिखाते थे ड्राइवर को रास्ता
सर्दियों के समय धुंध में स्टेशन पर जब भी ट्रेन आती थी तब रेलवे कर्मचारियों द्वारा ट्रैक पर डेटोनेटर लगाए जाते थे, जिससे ट्रेन के उनके ऊपर से गुजरने पर जोरदार आवाज होने के कारण लोगों को पता चलता था कि ट्रेन आ चुकी है। इसके अलावा धुंध में उपयोग होने वाली स्पेशल लाइटों के सिग्नल्स भी उपयोग में लाए जाते थे। ट्रेन के स्टेशन से चलते समय लाइट्मैन द्वारा ट्रैक पर इंजन के आगे चलकर चालक को रास्ता दिखाया जाता था।
विशेष तकनीक त्रि-नेत्र का भी लिया जा रहा ट्रायल
इसके अलावा भारतीय रेल द्वारा धुंध के कारण होने वाले हादसों के निपटारे के लिए एक विशेष तकनीक त्रि-नेत्र का भी ट्रायल लिया जा रहा है। इसमें इंफ्रारेड, ऑप्टिकल कैमरा और रडार सिस्टम शामिल हैं। जो ट्रेन के चालक के लिए तीन आंखो का कार्य करेगा। धुंध कि स्थिति में इस तकनीक के जरिए पटरी पर बाधा की पहचान करेगा। इस तकनीक में अल्ट्रासोनिक तरंगों के जरिए कार्य किया जाएगा। सभी मानदंडो पर जांच होने के बाद ही इस तकनीक को रेलवे द्वारा उपयोग में लाया जाएगा।
---रेलवे की तरफ से धुंध से निपटने के लिए अच्छे-खासे प्रयास किए जा रहे हैं। जल्द ही और भी अच्छी तकनीकों को उपयोग में लाया जाएगा जिससे धुंध के कारण ट्रेन लेट न हों और यात्रियों को भी परेशानी न हो।
- राममेहर शर्मा, उप स्टेशन अधीक्षक, हिसार।