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दादा-दादी की लोरी और दुलार से महरूम मासूमों में पनप रही ये समस्या, जानकर होगी हैरानी

एकल परिवारों और कामकाजी मां-बाप के बच्चों को बोलने में खासी समस्या आ रही है। मोबाइल, सोशल मीडिया जैसी चीजों के कारण भी मां-बाप बच्चों को पर्याप्त समय नहीं दे पा रहे हैं।

By Edited By: Published: Sun, 02 Sep 2018 01:12 PM (IST)Updated: Sun, 02 Sep 2018 05:40 PM (IST)
दादा-दादी की लोरी और दुलार से महरूम मासूमों में पनप रही ये समस्या, जानकर होगी हैरानी
दादा-दादी की लोरी और दुलार से महरूम मासूमों में पनप रही ये समस्या, जानकर होगी हैरानी

रोहतक [बृजेश कुमार मिश्र]। संयुक्त परिवार को पीछे छोड़ एकल परिवार की ओर बढ़ते समाज को अब इसका एक और खामियाजा भुगतना पड़ रहा है। एकल परिवारों और कामकाजी मां-बाप के बच्चों को बोलने में खासी समस्या आ रही है। मोबाइल-सोशल मीडिया जैसी चीजों के कारण भी मां-बाप बच्चों को पर्याप्त समय नहीं दे पा रहे हैं। सूनेपन के बीच पलते बच्चे हीन भावना का शिकार हो खामोश हो चले हैं।

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रोहतक, हरियाणा स्थित डिस्ट्रिक्ट अर्ली इंटरवेंशन सेंटर में ऐसे मामले तेजी से आ रहे हैं। परंपरागत संयुक्त परिवारों में दादा-दादी की खास भूमिका की अहमियत अब समझी जा सकती है। उनसे मिलने वाले भरपूर प्यार दुलार के कारण बच्चे एक-डेढ़ साल की उम्र में ही फर्राटे से बोलने लगते थे, लेकिन एकल परिवार के बच्चे तीन-चार साल की उम्र में भी नहीं बोल पा रहे हैं। जिस उम्र में बच्चे कविताएं सुनाने लग जाते थे, अब उस उम्र में उन्हें मामा, पापा जैसे बोलचाल के प्राथमिक शब्द तक बोलने में परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।

तेजी से बढ़ रही समस्या

आलम यह है कि उम्र के मुताबिक बच्चे की बोलने की क्षमता विकसित नहीं होने के कारण अभिभावकों को थैरेपी का सहारा लेना पड़ रहा है। रोहतक के डिस्ट्रिक्ट अर्ली इंटरवेंशन सेंटर (डीईआइसी) की ही बात करें तो यहां गत तीन माह में ऐसे 187 मामले आ चुके हैं।

मोबाइल की भी है भूमिका

डीईआइसी में आने वाले बच्चों के माता-पिता से जब बात की गई तो उसमें सामने आया कि वह बच्चों को पर्याप्त समय नहीं दे पा रहे हैं। डे केयर में बच्चों को अपनत्व नहीं मिल पाता। इसके अलावा जब बच्चा माता-पिता के साथ होता है तो तब भी उससे बात करने के बजाय माता-पिता उसे मोबाइल थमा दे रहे हैं कि बच्चा मोबाइल में व्यस्त रहेगा और वह अपना काम कर सकेंगे। इसके अलावा मां-बाप खुद भी सोशल मीडिया आदि में अपना शेष समय खपा देते हैं।

वाणी एवं श्रवण चिकित्सक डॉ. शबनम का कहना है कि डीईआइसी में हम ऐसे बच्चों का उपचार थैरेपी के माध्यम से करते हैं। अगर बच्चे में बोलने में देरी होगी तो भविष्य में उसमें आत्मविश्वास की कमी आएगी और हीन भावना पनपने लगेगी, इसलिए जरूरी है कि समय रहते ही उपचार कराएं और सावधानी बरतें।

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