कोरोना काल में सरकारी स्कूलों में प्राइमरी शिक्षा बेहाल
सरकारी स्कूलों के प्राइमरी सेक्शन के बच्चों को पढ़ाने में सबसे बड़ी बाधा अभिभावकों को तकनीकी ज्ञान ना होना है। इसके अलावा ज्यादातर अभिभावकों के पास स्मार्टफोन व इंटरनेट कनेक्शन का नहीं होना भी शिक्षकों के लिए समस्या है। अध्यापकों का कहना है कि प्राइमरी के बच्चे बेहद नाजुक होते हैं और अगर उन्हें बेहतर एजुकेशन समय पर ना मिले तो उसके सीखने-समझने की प्रक्रिया पर प्रभाव पड़ता है।
मनप्रीत सिंह, हांसी
प्राइमरी कक्षाओं में ही बच्चों के भविष्य की नींव मजबूत होती है, लेकिन कोरोना काल में सरकारी स्कूलों की शिक्षा ही सबसे ज्यादा प्रभावित हो रही है। डिजिटल एजुकेशन के संसाधनों के अभाव में प्राइमरी सेक्शन के बच्चों की शिक्षा चौपट होती जा रही है। प्राइमरी शिक्षा को पटरी पर लाने के लिए शिक्षा विभाग के प्रयास भी कारगर साबित नहीं हो रहे।
हांसी उपमंडल के कई गांवों में ग्राउंड रियलिटी चेक करने पर कुछ प्राइमरी स्कूलों में ही स्टाफ के सदस्य मौजूद मिले। सरकारी स्कूलों के प्राइमरी सेक्शन के बच्चों को पढ़ाने में सबसे बड़ी बाधा अभिभावकों को तकनीकी ज्ञान ना होना है। इसके अलावा ज्यादातर अभिभावकों के पास स्मार्टफोन व इंटरनेट कनेक्शन का नहीं होना भी शिक्षकों के लिए समस्या है। अध्यापकों का कहना है कि प्राइमरी के बच्चे बेहद नाजुक होते हैं और अगर उन्हें बेहतर एजुकेशन समय पर ना मिले तो उसके सीखने-समझने की प्रक्रिया पर प्रभाव पड़ता है।
इधर अभिभावकों का कहना है कि बच्चों की नींव ही अगर कमजोर होगी तो आगे बड़ी कक्षाओं में कैसे बेहतर प्रदर्शन करने में सक्षम होंगे। शिक्षा विभाग द्वारा शिक्षकों, शिक्षा मित्रों, वॉलेंटियर्स को डाटा पैक तक उपलब्ध नहीं करवाया जा रहा है।
सरकार कर रही प्रयास, सब नाकाफी
प्राइमरी एजुकेशन को पटरी पर लाने के लिए शिक्षा विभाग ने पहले शिक्षा मित्र गांवों में बच्चों को पढ़ाने के लिए नियुक्त किए, लेकिन अब शिक्षा मित्र कॉन्सेप्ट से भी बेहतर परिणाम नहीं मिलते दिखे तो प्रत्येक 10 बच्चों पर एक वॉलेंटियर नियुक्त करने की योजना तैयार की है। शिक्षा विभाग द्वारा इसकी तैयारी की जा रही है और ट्रायल के तौर पर कई गांवों में कक्षाएं संचालित भी की जा रही हैं। शिक्षा मित्रों को या गांव के पढ़े-लिखे युवाओं को वॉलेंटियर बनाया जा रहा है जो बगैर वेतन बच्चों को पढ़ाएंगे। पहली क्लास के बच्चों को भाषा का ज्ञान देंगे गांव के बच्चे कैसे पढ़ें..
मेरे दो बच्चे हैं। दोनों की पढ़ाई प्रभावित है। डिजिटल माध्यम शहरों में कामयाब हैं, गांवों में नहीं। तीन-चार दिनों में शिक्षक का फोन आता है, बच्चों की पढ़ाई को लेकर पूछते हैं, लेकिन हम मजदूरी करने वाले घर पर बच्चों को कैसे पढ़ाएं। बच्चों की पढ़ाई को जो नुकसान हुआ है उसका अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता है। सरकार को कुछ बड़े प्रयास करने होंगे।
नानू राम, अभिभावक, ढाणी ठाकरिया शिक्षा अधिकारी चुप
प्राइमरी एजुकेशन की स्थिति के बारे में कोई भी अधिकारी बोलने से बच रहा है। शिक्षा विभाग की तरफ से भी अधिकारियों पर प्राइमरी एजुकेशन को सुधारने का बड़ा दबाव है। हालांकि अधिकारी दबी जुबान में संसाधनों की कमी का रोना जरूर होते दिखे।