हरियाणा में यहां 15 अगस्त के साथ 23 फरवरी को भी मनाते आजादी का जश्न, बेहद अलग है वजह
पूरा देश जहां 15 अगस्त को आजादी का पर्व मनाता है वहीं लोहारू 15 अगस्त के अलावा 23 फरवरी को भी आजादी का जश्न मनाता है। इसकी वजह भी बेहद अलग है।
ढिगावा मंडी [मदन श्योराण] देश को 15 अगस्त 1947 को आजादी मिली लेकिन भिवानी के लोहारू को 23 फरवरी 1948 को नवाबी रियासत से आजादी मिली। ऐसे में पूरा देश जहां 15 अगस्त को आजादी का पर्व मनाता है वहीं लोहारू 15 अगस्त के अलावा 23 फरवरी को आजादी का जश्न मनाता है। इसकी वजह भी बेहद अलग है।
1947 में देश आजाद होने के समय लोहारू रियासत के तत्कालीन नवाब ने इस रियासत को बीकानेर रियासत में मिला दिया था जबकि यहां के लोग पूर्वी पंजाब में शामिल होने की इच्छा थी। पूर्व विधायक स्व. चन्द्रभान ओबरा कृत लोहारू बावनी का इतिहास नामक पुस्तक में उल्लेख मिलता है कि लोहारू रियासत 1803 ई. में अपनी स्थापना से लेकर 23 फरवरी 1948 तक कथित रूप से नवाबी शासन अत्याचारों से त्रस्त रही तथा यहां के लोगों ने जोर जुल्म का हमेशा डट कर विरोध किया।
भीषण अकाल के बाद भी टैक्स लेते थे नवाब तो किसान का बलिदान रंग लाया
1877 के भीषण अकाल के बाद मंढोली कलां गांव के एक बहादुर किसान बद्दा जाट द्वारा किया गया संघर्ष भी नवाब द्वारा उसे फांसी पर लटकाने के आदेश के बाद धूमिल हो गया। बद्दा जाट का बलिदान रंग लाया और रियासत के लोगों में विद्रोह की ज्वाला धधकने लगी। 6 अगस्त 1935 के दिन चैहड़कलां गांव में एकजुट हुए किंतु नवाब की मिलीभगत से अंग्रेजी सेना ने धावा बोलकर 50 से भी अधिक लोगों को गिरफ्तार कर उन्हे कैद में डाल दिया। इस घटना के दो दिन बाद 8 अगस्त को आक्रोशित हजारों लोग रियासत के सिंघाणी गांव में एकत्रित हुए। शांतिपूर्वक सभा कर रहे लोगों पर गोलियों की बौछार करवा दी थी जिसमें तीन दर्जन से अधिक लोग काल के ग्रास बन गए थे।
1 अप्रैल को 1940 को लोहारू मे आर्य समाज की नींव रखी
पुस्तक के अनुसार एक अप्रैल 1940 को स्वामी स्वतंत्रानंद के प्रयासों से लोहारू में आर्य समाज की नींव रखी गई तथा आर्य समाज से जुडऩे वाले लोग नवाबी शासन से मुक्ति के लिए एकजुट होने लगे। 29 मार्च 1941 में आर्य समाज के पहले वार्षिकोत्सव में जब स्वामी स्वतंत्रानंद और सैकड़ों आर्य समाजी सायंकाल को नगर कीर्तन कर रहे थे तब नवाब की सेना ने इन पर हमला बोल दिया। जिसमें स्वामी सहित काफी लोग घायल हुए । 20 सितंबर 1946 को प्रजा-मंडल के गठन से आंदोलन में काफी तेजी आई।
15 अगस्त 1947 के बाद भी लोहारू में था नवाबी शासन
अनेक देशभक्तों के बलिदानों के दम पर देश ने 15 अगस्त 1947 को आजादी पाई तथा केंद्र में जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व में सरकार बन गई। लोहारू में अभी भी रियासत की जनता नवाबी शासन से आजादी की लड़ाई लड़ रही थी। जींद जिले के खोरड़ गांव में हुए प्रजामंडल के खुले अधिवेशन में एक प्रस्ताव पास करके बीकानेर के महाराजा को यह कहा गया कि लोहारू राज्य को बीकानेर राज्य में यहां के नवाब ने प्रजा की बिना राय लिए मिलाया है तथा वे किसी शर्त पर आपकी रियासत में मिलना नहीं चाहते। आपको चाहिए कि प्रजा की इच्छाओं का आदर करते हुए लोहारू राज्य का शासन प्रबंध भारत सरकार को सौंप दें। आपने इस प्रस्ताव पर कोई ध्यान नहीं दिया तो हमें बाध्य होकर अस्थायी सरकार बनाकर आजादी के लिए संघर्ष करना पड़ेगा।
आजादी के लिए गांव-गांव घर-घर जाकर हस्ताक्षर अभियान चलाया था
लोहारू के प्रथम विधायक भक्त बूजाराम, पूर्व विधायक चंद्रभान ओबरा सहित प्रजा मंडल के प्रतिनिधि रियासती प्रजामंडल के अध्यक्ष डा. पट्टाभि सितारमैया से दिल्ली में मिला तथा प्रजा की इच्छा से उन्हे अवगत करवाया। नवाब ने उनके समक्ष अपना पक्ष रखा। पूरी स्थिति से अवगत होने के पश्चात डा. सितारमैया ने प्रजामंडल प्रतिनिधियों को सौराष्ट्र के मुख्यमन्त्री यूएन देबर के पास भेजा। देबर के अनुसार बीकानेर रियासत के साथ विलय के बाद उत्पन्न वैधानिक स्थिति को देखते हुए आप लोग अपनी रियासत के गांव-गांव जाकर पंजाब में मिलाने के पक्ष में लोगों के हस्ताक्षर करवा कर लाएं।
सभी गांवों से शपथ पत्र पर हस्ताक्षर करवाकर आजादी के दीवाने लोहारू के लोगों ने देबर की सलाह पर राजस्थान के मुख्यमन्त्री मोहनलाल सुखाडिय़ा तथा अकाली नेता तारासिंह से लिखित अनापत्ति प्राप्त की लोहारू को पंजाब के साथ मिलाने पर उन्हे कोई एतराज नही है। इसके पश्चात सांसद लाला अचितराम ने सिंघानी की जनसभा में स्वयं जाकर जनता की राय पूछी। सभी ने एक स्वर में पंजाब के साथ विलय की बात कही। अन्तत: लोहारू की जनता, प्रजामंडल और आर्य समाज के प्रयास रंग लाए तथा लोहारू 23 फरवरी 1948 को तत्कालीन पंजाब रियासत का अंग बन गया।
छह महीने करना पड़ा था इंतजार : पूर्व विधायक
पूर्व विधायक चौधरी सोमवीर सिंह ने बताया कि वैसे तो भारत 15 अगस्त 1947 को आजाद हो गया था, लेकिन लोहारू क्षेत्र के बावनी के हमारे पूर्व जनों ने 6 महीने ज्यादा संघर्ष करना पड़ा और उसके बाद आजादी मिली, हम हमारे पूर्व जनों का बलिदान कभी भूल नहीं सकते आज भी हम उनका संघर्ष के किस्से पढ़ते सुनते आ रहे हैं। बावनी के हमारे पूर्व जनों की नवाब के खिलाफ लंबी लड़ाई के बाद 23 फरवरी 1948 को आजादी मिल गई।