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Paddy Crop: फतेहाबाद में किसान ने इस तरीके से लगाई धान की फसल, जल संरक्षण के साथ किया जाएगा पराली समाधान

फतेहाबाद के रिछपाल सिंह तरड़ ने बताया कि धान की खेती अधिक पक्की खेती है लेकिन इससे जमीन की उर्वरा शक्ति बड़ी प्रभावित हुई। जल स्तर 60 मीटर गहरा चला गया। अब इसके विकल्प के तौर पर तुलसी की खेती शुरू की है।

By Naveen DalalEdited By: Published: Wed, 06 Oct 2021 06:04 PM (IST)Updated: Wed, 06 Oct 2021 06:04 PM (IST)
Paddy Crop: फतेहाबाद में किसान ने इस तरीके से लगाई धान की फसल, जल संरक्षण के साथ किया जाएगा पराली समाधान
फतेहाबाद में किसान नए तरीके से की खेती।

फतेहाबाद, जागरण संवाददाता। फतेहाबाद में नहीं प्रदेश में धान की खेती करते हुए किसान अत्याधिक भू जल दोहन करते है। इतना ही नहीं, प्रति एकड़ हजारों रुपये की फसल लेकर किसान अवशेष जला रहे है। अवशेष से बढ़ते हुए प्रदूषण से आमजन बड़ा परेशान है। किसान के खुद की जमीन की उर्वरा शक्ति घट रही है। ऐसे में भविष्य बड़ा खतरनाक बन गया है।

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इसी संभावित खतरे को देखते हुए गांव छतरिया के किसान रिछपाल सिंह तरड़ ने खेती करने का पेटर्न बदल दिया। लंबे समय से परंपरागत धान की खेती में जल की अधिक खपत होने के साथ उत्पादन भी कम हो गया। पिछले दो वर्षों से बीमारी का प्रकोप बढ़ गया था। इसी को देखते हुए किसान रिछपाल सिंह ने इस बार अपने खेत में धान कूल यानी मेड बनाकर लगाए तो पानी की खपत आधी रह गई। इसका बड़ा फायदा मिला। किसान रिछपाल सिंह बताते हैं कि गत वर्ष उन्होंने ट्रायल के तौर पर दो एकड़ में कुल बनाकर धान की खेती की। दोनों एकड़ में 60 क्विंटल उत्पादन हुआ, बाकि खेत में 20 क्विंटल से कम की औसत आई, जबकि उसमें पानी की खपत के साथ लागत अधिक आई। इसी से प्रेरणा लेकर इस बार 15 एकड़ से अधिक जमीन में धान कूल बनाकर लगाए।

जमीन की उर्वरा शक्ति नहीं होती प्रभावित, आसानी से मिल जाते है अवशेष

रिछपाल तरड़ ने बताया कि कूल बनाकर धान लगाने से जमीन की उर्वरा शक्ति ज्यादा नष्ट नहीं होती। पानी की खपत आधी ही रह जाती है। अब पराली प्रबंधन में भी परेशानी नहीं आएगी। कंबाइन में लगे एसएमएस से धान निकालते हुए अवशेष आसानी से जमीन में मिल जाएंगे। ऐसे में कई फायदे होते है।

पानी बचाने के लिए शुरू की तुलसी की खेती, अब तेल बेचेंगे 

रिछपाल सिंह तरड़ ने बताया कि उनके पास पुश्तैनी 27 एकड़ जमीन है। धान की खेती अधिक पक्की खेती है, लेकिन इससे जमीन की उर्वरा शक्ति बड़ी प्रभावित हुई। जल स्तर 60 मीटर गहरा चला गया। अब इसके विकल्प के तौर पर तुलसी की खेती शुरू की है। करीब 60 दिनों की खेती धान के मुकाबले की आय हो जाती है। इसका तेल निकाल कर आसानी से बेचा जा सकता है। इस बार एक एकड़ में तुलसी की खेती की है। गत वर्ष सर्दियों में गेहूं की बजाए एक एकड़ जापानी पोदीना की खेती की। उसका तेल निकालकर बेचा जो 70 हजार रुपये से अधिक रुपये हुआ। औषधीय पौधों की खेती पर बागवानी विभाग भी विशेष अनुदान देता है।

किसान को पाजीटिव सोच के साथ करनी होगी खेती : श्योराण

जिला बागवानी अधिकारी कुलदीप श्योराण ने बताया कि किसानों को पाजीटिव सोच के साथ खेती करे। खेती अब भी बचत की खेती है। बागवानी विभाग किसानों को हर प्रकार की मदद कर रहा है। औषधीय पौधों की खेती के अलावा इसका प्रोसेसिंग प्लांट लगाने पर भी सरकार किसानों की खूब मदद कर रही है। किसानों को उन्नत खेती करते हुए इसका फायदा उठाना चाहिए।


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