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आजाद हिंद फौज के सिपाही और स्वतंत्रता सेनानी पंचतत्व में हुए विलीन, 1941 में हुए थे भर्ती

स्वतंत्रता सेनानी स्वर्गीय उमराव सिंह यादव नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की आजाद हिंद फौज में 1941 में भर्ती हुए थे। उनके साथ-साथ कंधे से कंधा मिला कर विश्व युद्ध के दौरान सिंगापुर जापान और बर्मा सहित कई देशों में लड़ाई लड़ी।

By Naveen DalalEdited By: Published: Sun, 16 Jan 2022 07:54 PM (IST)Updated: Sun, 16 Jan 2022 07:54 PM (IST)
आजाद हिंद फौज के सिपाही और स्वतंत्रता सेनानी पंचतत्व में हुए विलीन, 1941 में हुए थे भर्ती
उमराव सिंह यादव का पैतृक गांव निगाना में राजकीय सम्मान के साथ किया गया अंतिम संस्कार।

कलानौर (रोहतक), संवाद सहयोगी। रोहतक के एकमात्र जीवित स्वतंत्रता सेनानी और आजाद हिंद फौज के सिपाही रहे 100 वर्षीय उमराव सिंह यादव का उनके पैतृक गांव निंगाना में राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया। जिला प्रशासन की ओर से रोहतक के उपमंडलाधीश राकेश कुमार इस स्वतंत्रता सेनानी के अंतिम संस्कार में शामिल हुए। स्वतंत्रता सेनानी के पार्थिव शरीर पर पुष्प चक्र भेंट कर श्रद्घांजलि दी। परिजनों को राष्ट्रीय ध्वज सौंपा।

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जिला प्रशासन की ओर से उपमंडलाधीश राकेश कुमार अंतिम संस्कार में हुए शामिल

स्वतंत्रता सेनानी उमराव सिंह यादव के निधन की खबर सुनकर आसपास के गांव में शोक की लहर दौड़ गई तथा उनके अंतिम संस्कार में ग्रामीणों के अलावा विभिन्न धार्मिक व राजनीतिक संस्थाओं के प्रतिनिधियों ने भी उन्हें श्रद्घांजलि दी। भारत छोड़ो आंदोलन की वर्षगांठ के मौके पर अगस्त 2020 में उमराव सिंह यादव को राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द की ओर से सम्मान पत्र व शाल भेजा गया था। उस समय उपमंडलाधीश राकेश कुमार ने खुद निगाना गांव में जाकर स्वतंत्रता सेनानी को सम्मानित किया था और राष्ट्रपति का संदेश दिया था।

कई देशों में लड़ाई लड़ी।

स्वतंत्रता सेनानी स्वर्गीय उमराव सिंह यादव नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की आजाद हिंद फौज में 1941 में भर्ती हुए थे। उनके साथ-साथ कंधे से कंधा मिला कर विश्व युद्ध के दौरान सिंगापुर, जापान और बर्मा सहित कई देशों में लड़ाई लड़ी। गत दिनों उमराव सिंह यादव ने अपने अनुभव सांझा करते हुए बताया था कि अगर अमेरिका अंग्रेजों के साथ मिलकर जापान पर दो दिन और एटम बम से हमला नहीं करता तो भारत को दो साल पहले ही आजादी मिल गई होती। यही नहीं भारत से पाकिस्तान का टुकड़ा भी अलग नहीं होता। आजाद हिंद फौज से अंग्रेज इतने घबराए कि उन्होंने दो साल पहले ही भारत छोडऩे की तैयारी कर दी थी। क्योंकि सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिंद फौज बर्मा के रास्ते से होते हुए असम तक पहुंच गई थी, लेकिन जापान पर गिरे बम की घटना के बाद आजाद हिंद फौज को वापस लौटना पड़ा।


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