जिस बीमारी के बाद 25 फीसद ही बच पाते थे पशु, अब सक्सेस रेट पहुंचा 95 फीसद
पशुओं में पेट और छाती के बीच में एक झिल्ली होती है जो पेट के भीतर की चीजों को ऊपर की तरफ जाने से रोकती है। जब यह झिल्ली फट जाती है तो इससे डाइफ्रामेटिक हार्निया रोग हो जाता है।
हिसार [वैभव शर्मा] पिछले कुछ वर्षों में गाय-भैंसों व अन्य जानवरों में मनुष्यों की तरह ही बीमारियां पैर पसारती गईं, मगर तकनीकी की रफ्तार वेटरनरी के क्षेत्र में काफी धीमी रही। इसी में से एक समस्या डाइफ्रामेटिक हार्निया की है। जिसमें 2003 में पशु चिकित्सक सिर्फ 25 फीसद ही पशुओं को बचा पाते थे बाकी 75 फीसद पशु ऑपरेशन के बाद ही मर जाया करते थे।
मगर नई तकनीकों के आने के बाद से डाइफ्रामेटिक हार्निया के ऑपरेशन में पशु चिकित्सकों को बड़ी कामयाबी मिली है। अब 95 फीसद पशुओं को इस ऑपरेशन के जरिए बचा लिया जाता है। यह दावा है देश-विदेश में हजारों सर्जरी कर पशुओं को डाइफ्रामेटिक हार्निया से निजात दिला चुके डा. डी कृष्णामूर्ति का। कृष्णामूर्ति को गुरुवार को लुवास में इंडियन सोसाइटी फॉर वेटरनरी सर्जरी द्वारा सम्मानित किए गए।
दैनिक जागरण से विशेष बात करते हुए वेटरनरी सर्जरी पर जानकारियां साझा कीं। उन्होंने बताया कि पहले डाइफ्रामेटिक हार्निया के ऑपरेशन होने के बाद पशुओं को दो दिन तक होश ही नहीं आता था। अगर होश आ भी जाए तो पशु के किसी न किसी अंग के काम न करने की आशंका रहती थी। अब हमने यह खतरा बहुत कम कर लिया है। ऑपरेशन के दौरान ये समस्याएं इसलिए आती थीं, क्योंकि हमारे पास सही एनेस्थीसिया नहीं था। अब हम जनरल एनेस्थीसिया का प्रयोग कर रहे हैं।
मुर्राह भैंसों में सबसे अधिक आती है हार्निया की समस्या
डा. डी कृष्णामूर्ति बताते हैं कि डाइफ्रामेटिक हार्निया की समस्या सबसे अधिक मूर्राह नस्ल की भैंसों में आती है। ये भैंसें पंजाब, हरियाणा और उत्तरप्रदेश में अधिक पाई जाती हैं। अधिक दूध देने के कारण इनकी कीमत भी ज्यादा होती है। ऐसे में पहले हार्निया के ऑपरेशन के दौरान पशुओं के मरने पर पशुपालकों को काफी नुकसान होता था। मगर अब जिला स्तर पर ही हमने डाइफ्रामेटिक हार्निया के ऑपरेशन करने शुरू कर दिए हैं। हर दिन एक या दो ऑपरेशन किए जा रहे हैं। इसके साथ ही वेटरनरी क्षेत्र में सर्जरी की पढ़ाई में भी छात्रों का रुझान बढ़ रहा है।
डाइफ्रामेटिक हार्निया रोग के बारे में
पशुओं में पेट और छाती के बीच में एक झिल्ली होती है, जो पेट के भीतर की चीजों को ऊपर की तरफ जाने से रोकती है। जब यह झिल्ली फट जाती है तो पेट की भीतर की चीजें ऊपर की तरफ जाने लगती हैं। इसे ही डाइफ्रामेटिक हार्निया कहते हैं। यह जानलेवा हो जाता है।