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Online Study Effect: बच्चों को पढ़ाई के लिए दिया मोबाइल बना अभिभावकों की परेशानी, सोच में आए ऐसे बदलाव

मोबाइल के इस्तेमाल से बच्चों में गेम खेलने की लत लगी। बच्चे मोबाइल पर घंटों बैठकर ऐसे गेम्स खेलने लगे जिनमें वर्चुअल फाइट्स देखते हैं। बच्चों में हथियारों के बारे में उत्सुकता बढ़ी है। वे हिंसात्मक दृश्य पसंद करने लगे हैं।

By Naveen DalalEdited By: Published: Thu, 14 Oct 2021 09:29 PM (IST)Updated: Thu, 14 Oct 2021 09:29 PM (IST)
Online Study Effect: बच्चों को पढ़ाई के लिए दिया मोबाइल बना अभिभावकों की परेशानी, सोच में आए ऐसे बदलाव
बच्चों के व्यवहार में ऐसा बदलाव देखकर अभिभावक हैरान परेशान

आनंद भार्गव, सिरसा। लाकडाउन में बच्चों के हाथों में थमाए गए मोबाइलों ने अभिभावकों की परेशानी बढ़ा दी है। मोबाइल के उपयोग से बच्चे छोटी उम्र में ही तनाव का शिकार होने लगे है। जिले में पिछले छह महीनों में सात आठ ऐसे केस आ चुके है, जिनमें सात आठ साल की उम्र के बच्चों में मोबाइल के कारण छोटी उम्र में ही अश्लील कंटेंट देखने से शरीर व दिमाग पर विपरित प्रभाव पड़ा है। उनकी सोच समय से पहले ही विकसित हो गई है और वे व्यस्कों की तरह सोचने और व्यवहार करने लगे है। पढ़ने और खेलने की उम्र में वे शारीरिक संबंध बनाने के बारे में उत्सुकता जागने लगी है। बच्चों के व्यवहार में ऐसा बदलाव देखकर अभिभावक हैरान परेशान है।

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मोबाइल के इस्तेमाल से बच्चों में गेम खेलने की लत लगी। बच्चे मोबाइल पर घंटों बैठकर ऐसे गेम्स खेलने लगे जिनमें वर्चुअल फाइट्स देखते हैं। बच्चों में हथियारों के बारे में उत्सुकता बढ़ी है। वे हिंसात्मक दृश्य पसंद करने लगे हैं। लाकडाउन खुलने व स्कूल खुलने के बाद अब बच्चे मोबाइलों से दूर हो रहे है तो उनके व्यवहार में चिड़चिड़ापन, निरादरपूर्ण भाव आ रहे हैं। 

विशेषज्ञ की सलाह लेना जरूरी

नागरिक अस्पताल के मनोरोग विशेषज्ञ डा. पंकज शर्मा बताते है कि छोटे बच्चों में स्वीयर डिप्रेशन होने के मामले बहुत कम होते है। 15 वर्ष के बच्चों में तनाव को स्वीयर डिप्रेशन की श्रेणी में रखा जाता है। लाकडाउन के समय में मोबाइल के संपर्क में आने से 10 साल से भी कम उम्र के बच्चे भी तनाव का शिकार हो रहे है। छोटी उम्र के बच्चों में काउंसिलंग भी प्रक्रिया भी मुश्किल होती है और उन्हें दवाइयों की मात्रा भी अधिक नहीं दी जा सकती। ऐसे में विशेषज्ञ की सलाह लेना जरूरी है।

व्यवहार में बदलाव है और उनकी शैक्षणिक परफारमेंस प्रभावित

डा. पंकज शर्मा बताया कि लाकडाउन के समय में अभिभावकों ने अपने मोबाइल बिना सुपरविजन के बच्चों को थमा दिये, जिनमें बच्चों ने वो कंटेंट्स भी देखे तो अभिभावक देखते है। ऐसी स्थिति में स्कूल प्रबंधन भी बच्चों के व्यवहार पर नजर रखें। अगर व्यवहार में बदलाव है और उनकी शैक्षणिक परफारमेंस प्रभावित हो रही है तो बच्चे पर विशेष ध्यान दें। मोबाइल में ऐसे केंटेंट पर लाक रखा जाए तो बच्चों के देखने लायक नहीं है। जहां तक हो सके बच्चों को बिना गेजेट्स के पढ़ाई करवाएं। स्कूलों में गलत काम एजुकेशन देने के बारे में भी विचारा किया जाना चाहिए।


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