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अब लौह तत्व व जिक से भरपूर होगा बाजरा, टाइप टू मधुमेह को करेगा कम

- एचएयू ने विकसित की बाजरे की बायोफोर्टिफाइड किस्म एचएचबी 311 जागरण संवाददाता हिसार मोट

By JagranEdited By: Published: Fri, 27 Nov 2020 06:53 AM (IST)Updated: Fri, 27 Nov 2020 06:53 AM (IST)
अब लौह तत्व व जिक से भरपूर होगा बाजरा, टाइप टू मधुमेह को करेगा कम
अब लौह तत्व व जिक से भरपूर होगा बाजरा, टाइप टू मधुमेह को करेगा कम

- एचएयू ने विकसित की बाजरे की बायोफोर्टिफाइड किस्म एचएचबी 311

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जागरण संवाददाता, हिसार: मोटे अनाज के रूप में प्रसिद्ध बाजरा अब लौह तत्व व जिक से भरपूर होगा। अनाज व सूखे चारे की भी अधिक मात्रा मिलेगी। इसके लिए चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने एचएचबी 311 नाम से बाजरे की नई बायोफोर्टीफाइड किस्म विकसित की है। इस किस्म को कृषि महाविद्यालय के आनुवांशिकी एवं पौध प्रजनन विभाग के बाजरा अनुभाग के विज्ञानियों ने विकसित किया है। विश्वविद्यालय द्वारा विकसित इस किस्म को भारत सरकार के कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के कृषि एवं सहयोग विभाग की फसल मानक, अधिसूचना एवं अनुमोदन केंद्रीय उप-समिति द्वारा नई दिल्ली में आयोजित बैठक में अधिसूचित व जारी कर दिया गया है। विज्ञानी बताते हैं बाजरा का सेवन टाइप टू मधुमेह को कम करने का काम करता है।

इस किस्म को विकसित करने वाली टीम में डा. रमेश कुमार, डा. देव व्रत, डा. विरेंद्र मलिक, डा. एमएस दलाल, डा. केडी सहरावत, डा. योगेन्द्र कुमार और डा. एसके पाहुजा शामिल रहे। इनके साथ डा. अनिल कुमार, डा. एलके चुघ, डा. नरेंद्र सिंह, डा. कुशल राज व डा. एम. गोविदराज व डा. आनंद कनाति (हैदराबाद) का भी विशेष सहयोग रहा है।

ये पाए जाते हैं तत्व

इस किस्म में अन्य किस्मों के मुकाबले लौह तत्व एवं जिक 83 व 42 मिलीग्राम प्रति किलोग्राम पाया जाता है। सामान्य किस्मों में इनकी मात्रा 45-55 व 20-25 मिलीग्राम प्रति किलोग्राम होती है। अच्छा रखरखाव करने पर एचएचबी. 311 किस्म 18.0 क्विटल प्रति एकड़ तक पैदावार देने की क्षमता रखती है। यह किस्म जोगिया रोगरोधी है व अन्य किस्मों की तुलना में सूखा चारा व उपज अधिक देने की क्षमता है। यह किस्म 75 से 80 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। इसके अलावा विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने एचएचबी. 223, एचएचबी 197, एचएचबी 67 (संशोधित), एचएचबी 226, एचएचबी 234, एचएचबी 272 किस्में भी विकसित की हैं।

इन क्षेत्रों के लिए की गई सिफारिश

अनुसंधान निदेशक डा. एसके सहरावत ने बताया कि इनकी उच्च अनाज और उपजाऊ क्षमता व लौह तत्व की मात्रा और रोग प्रतिरोधिकता को ध्यान में रखते हुए एचएचबी 311 को राष्ट्रीय स्तर पर खेती के लिए इसकी सिफारिश की गई है। इसके तहत जोन-ए जिसमें राजस्थान, गुजरात, हरियाणा, मध्य प्रदेश, पंजाब और दिल्ली और जोन बी में महाराष्ट्र और तमिलनाडु के लिए खरीफ सीजन के लिए इसकी सिफारिश की गई है।

जिन्हें गेहूं की एलर्जी उनके लिए बहुत फायदेमंद

बाजरा हरियाणा एवं पूरे भारत में गेहूं, धान, मक्का एवं ज्वार के बाद उगाई जाने वाली एक मुख्य खादान्न फसल है। इस किस्म के दानों में ग्लूटेन लगभग न के बराबर होता है जबकि गेहूं में यह मुख्य प्रोटीन होता है जो कि सिलिअक, स्व.प्रतिरक्षित रोग, एथेरोस्क्लेरोसिस, एलर्जी और आंतों की पारगम्यता बीमारी का मुख्य कारण है। इसलिए उक्त बीमारी वाले लोगों को चिकित्सक द्वारा बाजरा खाने की सलाह दी जाती है। बाजरे का सेवन टाइप-2 डायबिटीज को रोकने में सहायक है। इनकी इन्हीं विशेषताओं के कारण इसे न्यूट्री सीरियल नाम दिया गया है।

ये होते हैं बाजरे में मुख्य तत्व

बाजरे में मुख्य रूप से 12.8 प्रतिशत प्रोटीन, 4.8 ग्राम वसा, 2.3 ग्राम रेशे, 67 ग्राम कार्बोहाइड्रेट एवं खनिज तत्व जैसे कैल्शियम-16 मिली ग्राम, लौह-6 मिली ग्राम, मैग्नीशियम -228 मिली ग्राम, फॉस्फोरस-570 मिली ग्राम, सोडियम-10 मिली ग्राम, जिक 3.4 मिली ग्राम, पोटेशियम 390 मिली ग्राम व कॉपर-1.5 मिली ग्राम पाया जाता है। इसमें गेहूं एवं चावल से अधिक आवश्यक एमिनो अम्ल पाए जाते हैं। बाजरे के दानों का सेवन सूजन रोधी, उच्च रक्तचाप रोधी, कैंसर रोधी होता है एवं इसमें पाए जाने वाले एंटीऑक्सीडेंट यौगिक हृदयाघात के जोखिम एवं आंत्र के सूजन को कम करने में मदद करते हैं।

हर प्रकार की भूमि में ले सकते हैं उत्पादन

बाजरे में गेहूं, धान, मक्का एवं ज्वार की तुलना में शुष्क एवं निम्न उपजाऊ क्षमता, उच्च लवण युक्त भूमि एवं उच्च तापमान के प्रति अधिक प्रतिरोधक क्षमता पाई जाती है। अत: इस फसल का उत्पादन ऐसी भूमि में भी किया जा सकता है जहां पर अन्य फसल लेना संभव न हो। उन्नत किस्मों, अच्छी सस्य क्रियाओं व रोग रोधी किस्मों के विकसित होने से बाजरा की पैदावार व उत्पादकता बढ़ रही है।

विश्वविद्यालय का गौरव बढ़ाया : प्रो समर सिंह

विश्वविद्यालय के लिए यह बहुत ही गौरव की बात है कि वैज्ञानिक अपनी कड़ी मेहनत व लगन से विश्वविद्यालय का नाम रोशन कर रहे हैं। बाजरे की नई किस्में विकसित करने वाली पूरी टीम बधाई की पात्र है। भविष्य में भी इस प्रकार के शोध कार्य चलते रहेंगे और विश्वविद्यालय का नाम यूं ही चमकता रहेगा। इसके अलावा प्रदेश सरकार के फसल विविधिकरण को लेकर किए जा रहे प्रयासों में बाजरा अहम भूमिका निभा सकता है।


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