अब बीमारियों से मुक्त होंगे पशु, भारत और अमेरिका के वैज्ञानिक इस विधि का कर रहे प्रयोग
अमेरिका सहित देश के 42 वैज्ञानिकों प्रोफेसर व पीएचडी स्कॉलर्स ने सीआइआरबी की लैब में शुरू की रिसर्च। क्रिस्पर विधि से जीन में परिवर्तन के लिए हो रही रिसर्च
हिसार [पवन सिरोवा] भारत के पालतु पशुओं के जीन में ऐसा परिवर्तन किया जा रहा है, जिससे उनमें टीबी, मुंहपका और खुरपका जैसे रोग हमेशा के लिए खत्म हो जाएंगे। ये रोग कभी उनमें पैदा ही नहीं होंगे। पशुओं के जीन में परिवर्तन के साथ ही ऐसे सुधार के लिए रिसर्च का कदम केंद्रीय भैंस अनुसंधान संस्थान (सीआइआरबी) ने उठाया है। क्रिस्पर विधि के तहत कोशिका व भ्रूण में जीन एडिटिंग की जाएगी। यह रिसर्च प्रोग्राम इंडो-अमेरिका के तहत जीनोम एडिटिंग टेक्नोलॉजी इनिशिएटिव की ओर से किया जा रहा है।
अमेरिका, चाइना और यूके में सफल हो चुकी रिसर्च
सीआइआरबी के सीनियर वैज्ञानिक नरेश सेलोकर, प्रधान वैज्ञानिक डा. पीएस यादव और सीनियर वैज्ञानिक डा. धर्मेंद्र कुमार ने बताया कि यह रिसर्च अमेरिका, चाइना और यूके में उनके पशुओं पर सफल हो चुकी है। भारत में मुख्यत: भैंस पर टेङ्क्षस्टग शुरू हुई है। भारतीय भैंस पर यह रिसर्च कितनी सफल रहती है। उनके जीन में भी क्या यह संभव हो पाएगा कि उन्हें जन्म से ही बीमारी से ग्रस्त होने की संभावना से ही छुटकारा मिल जाए। वे हमेशा स्वस्थ रहें। इसी सोच के साथ वैज्ञानिकों ने यह रिसर्च प्रोग्राम शुरू किया है, जो 4 से 9 नवंबर 2019 तक संस्थान में चलेगा।
लैब में जीन पर टेस्टिंग के साथ शुरू की रिसर्च
अमेरिका की टेक्सास यूनिवर्सिटी के प्रो. चार्ल्स आर. लॉन्ग इस रिसर्च को कर चुके हैं। उनके सानिध्य में देश के अलग-अलग राज्यों की यूनिवर्सिटी के 42 वैज्ञानिक, प्रोफेसर व पीएचडी स्कॉलर ने सीआइआरबी की लैब में कोशिका व भ्रूण पर टेस्टिंग शुरू की। उन्होंने प्रो. लॉन्ग व सीआइआरबी के वैज्ञानिकों से समझा कि जीन पर कैसे रिसर्च की शुरुआत करेंं, किन-किन मुख्य बिंदुओं पर सावधानी बरती जाए। बुधवार को वहां मौजूद एक्सपर्ट ने जीन से जुड़ी रिसर्च के बारे में तथ्य जुटाकर रिसर्च को आगे बढ़ाया।
समझें : कैसे भविष्य में भैंस बीमारियों से होंगी मुक्त
भैंस में आमतौर पर टीबी, मुंहपका और खुरपका जैसे रोग पाए जाते हैं। समय पर उपचार न मिले तो पशुओं के लिए ये खतरनाक होते हैं। रिसर्च में पशुओं में बीमारी के जिम्मेदार जीन को बाहर कर दिया जाएगा या उनमें ऐसे जीन डाल दिय जाएंगे, जिनसे बीमारी पैदा होने वाले जीन समाप्त हो जाएंगे। जब जीन में बीमारी ही नहीं होगी, जिससे उनका भविष्य सुरक्षित होगा।
-----सीआइआरबी के वैज्ञानिक इस रिसर्च पर सराहनीय कार्य कर रहे हैं। जो भी रिसर्च उपकरण की जररूत है। उन्हें मुहैया करवाया जा रहा है। वर्तमान इन में रिसर्च का पशुओं को बहुत लाभ होगा।
- डा. सतबीर सिंह दहिया, निदेशक, सीआइआरबी, हिसार।