नेशनल हॉकी प्लयेर बनीं मजदूर बेटियां, मगर स्कॉलरशिप से घर का राशन खरीदने को मजबूर
मजदूरी करने वाली फतेहाबाद की बेटियां राष्ट्रीय हॉकी प्लयेर बन चुकी हैं। मगर अफसोस की बात है कि खेल की बदौलत मिलने वाली स्कॉलरशिप से गरीबी के कारण घर का राशन खरीदना पड़ रहा है।
हिसार, जेएनएन। दिक्कतें कितनी ही क्यों न हो कुछ लोग अपनी मंजिल खुद चुनते हैं। फतेहाबाद के गांव धारणीयां गांव में भी मजदूरी करने वाली बेटियों ने भी इसी उदाहरण को सच कर दिखाया है और ये लड़कियां राष्ट्रीय हॉकी प्लयेर बन चुकी हैं। मगर अफसोस की बात है कि अच्छे खेल की बदौलत मिलने वाली जिस स्कॉलरशिप को खर्च कर वो खेल को और ज्यादा बेहतर बना सकती थी, गरीबी के कारण उस धनराशि से घर का राशन खरीदना पड़ रहा है।
सीजन में दूसरों के खेतों में मेहनत मजदूरी करने वाली इन लड़कियों ने हाथों में हॉकी स्टिक थामी थी ताकि वो कुछ बन सकें। एक परिवार की पांच तो दूसरे परिवार की चार बेटियों ने ऐसा खेल दिखाया कि ब्लॉक से आगे बढ़ते हुए राज्यस्तरीय और कुछ राष्ट्रीय खिलाड़ी बन गई। एक परिवार की चार और दूसरे की दो लड़कियों को शानदार खेल की बदौलत स्कॉलरशिप मिलने लगी। मगर इसका आधा हिस्सा भी खेल पर खर्च नहीं हो पाता है। हिसार के हॉकी एस्ट्रोटर्फ मैदान पर खेलने पहुंची राज्य स्तरीय हॉकी प्रतियोगिता में खिलाडि़यों ने अपना दर्द साझा किया। इनकी कोच राजबाला ने बताया कि ये लड़कियां एससी वर्ग से हैं, इसलिए बेहतर खेलने पर सरकार की तरफ से उन्हें 30 हजार रुपये प्रतिवर्ष स्कॉलरशिप मिलती है।
स्कॉलरशिप मिली तो घर आया पशुओं का चारा
12वीं में पढ़ रही सीनियर खिलाड़ी पूनम बताती हैं कि उनके पिता कृष्ण कुमार मजदूरी करते हैं, जबकि मां लक्ष्मी देवी गृहिणी हैं। सात भाई-बहनों में दो भाई हैं और पांच बहनें। सबसे बड़ा भाई पवन रेवाड़ी की किसी कंपनी में काम करता है, जबकि बाकी हॉकी खेलते हैं। उससे छोटी अलका सीनियर में, अंशु जूनियर में, गायत्री और परमजीत सब जूनियर में और भाई भीमसेन अंडर 14 में खेलता है। अंशु, अलका, गायत्री और परमजीत को स्कॉलरशिप मिलती है। पूनम ने बताया कि परिवार की आर्थिक स्थति ऐसी है कि हाल ही में पशुओं के लिए तूड़ी (सूखा चारा) का प्रबंध भी उनकी स्कॉलरशिप से हुआ। घर का राशन भी उन्हीं के पैसे से आता है और कुछ पैसा माता-पिता भविष्य के लिए जमा कर लेते हैं।
सीजन में गेहूं की फसल भी कटवाती हैं ये खिलाड़ी
बीए द्वितीय वर्ष की पढ़ाई कर रही ऊषा ने बताया कि वे छह भाई-बहन हैं। उसकी सबसे बड़ी बहन निशा बीए फाइनल ईयर में है। पिता मानसिंह और मां राजबाला मजूदरी करने जाते हैं तो घर भी वही संभालती हैं। उसके सहित पांचों भाई-बहन पढ़ाई के साथ हॉकी खेलते हैं। ऊषा ने बताया कि वह सीनियर वर्ग में, उससे छोटी बहन मनीषा जूनियर में, संतोष सब-जूनियर में व वर्षा अंडर 14 की चंडीगढ़ की टीम में खेलती है। वहीं भाई अनिल कुमार फतेहाबाद की अंडर 17 की टीम में खेलता है। इनमें से उसे और मनीषा को स्कॉलरशिप मिलती है। ऊषा ने बताया कि गेहूं के सीजन में वे परिवार के साथ मजदूरी पर जाती हैं और गेहूं कटवाती थी, उसके बाद शाम को खेलने जाती थी।
30 खिलाडिय़ों की स्कॉलरशिप से बच्चे से लाते हैं सामान
गांव धारणीयां स्थित राजीव गांधी खेल परिसर में खिलाडिय़ों के लिए सरकार खेल का सामान भी मुहैया नहीं करवा पा रही है। खिलाडिय़ों के अनुसार तीन साल से हॉकी का कोई सामान नहीं आया। मैदान में खिलाडिय़ों के लिए न पानी है और न ही बिजली का प्रबंध। यहां खेलने वाले करीब 30 खिलाडिय़ों को स्कॉलरशिप मिलती है। अपनी स्कॉलरशिप में से लगभग 33 फीसद पैसा ये खिलाड़ी इकट्ठा करते हैं। इसके बाद मैदान में आने वाले सभी 150 खिलाडिय़ों के लिए खेल के सामान की पूर्ति हो पाती है।
घर-घर जाकर कोच ने किया प्रोत्साहित
गांव धारणीयां के राजीव गांधी खेल परिसर में करीब सात साल पहले महिला कोच राजबाला की नियुक्ति हुई। हॉकी खेलने के लिए लड़कियां नहीं मिली तो उन्होंने स्कूलों और घरों में जाकर बेटियों को प्रोत्साहित किया। धीरे-धीरे लड़कियों में दिलचस्पी बढ़ी और उन्होंने हॉकी की स्टिक थामी। जैसे जैसे बेटियां प्रतियोगिताओं में जीत कर आने लगी तो गांव की अन्य लड़कियों में भी खेलने को दिलचस्पी पैदा हुई। यहां से शुरू हुई थी पूनम और उषा के खेल परिवार की कहानी। पहले पूनम ने हॉकी खेलना शुरू किया, उसके बाद उसकी चार अन्य बहनों और एक भाई भी हॉकी खेलने लग गया। दूसरी तरफ उषा के अलावा उसकी तीन बहनों और एक भाई ने भी स्टिक थाम ली।