यहां शहर को स्वच्छ बनाने की शुरु हुई कवायद में पार्षद बन गए कर्जदार
पार्षदों ने किसी को निशुल्क तो किसी से 30 रुपये जोड़े के हिसाब से पैसा लेकर डस्टबिन बांटे, लेकिन जैसे ही पार्षदों का कार्यकाल खत्म हुआ, निगम अधिकारियों ने पार्षदों को डस्टबिन के पैसे जमा करवाने को लेकर फोन करना शुरू कर दिए।
जेएनएन, हिसार :
स्वच्छ भारत अभियान के नाम पर शहर के पार्षदों को नगर निगम ने निशुल्क कह कर डस्टबिन थमाए थे। पार्षदों ने किसी को निशुल्क तो किसी से 30 रुपये जोड़े के हिसाब से पैसा लेकर डस्टबिन बांटे, लेकिन जैसे ही पार्षदों का कार्यकाल खत्म हुआ, निगम अधिकारियों ने पार्षदों को डस्टबिन के पैसे जमा करवाने को लेकर फोन करना शुरू कर दिए। पार्षदों का तमगा हटने के साथ ही अब वह निगम के कर्जदार बन गए हैं। हैरानी की बात यह है कि कभी मुफ्त, कभी 30 रुपये प्रति जोड़ा देने की बात कहने वाले अधिकारी अब 60 रुपये प्रति जोड़े के हिसाब से पैसा वसूलने में लगे हुए हैं। क्योंकि नगर निगम ने चार लाख रुपये की राशि डस्टबिन खरीद के दौरान खर्च की थी। यह राशि स्वच्छ भारत मिशन के तहत सरकार से मिली थी।
यह पहली घटना नहीं है जब नगर निगम की सफाई को लेकर बनाई योजनाओं पर सवाल खड़े हुए हैं। सूत्रों के अनुसार नगर निगम में मौजूदा समय में खरीदी गई ई रिक्शा भी एक आलाधिकारी के रिश्तेदार की एजेंसी से आई है। ई रिक्शा को लेकर कर्मचारियों के विरोध होने के बावजूद पिछले एक माह से 20 ई रिक्शा नगर निगम परिसर में धूल फांक रही हैं। इतना ही नहीं जेसीबी खरीद मामले को लेकर भी सवाल निगम की कार्यप्रणाली पर कर्मचारियों ने खड़े किए थे। लेकिन बाद में सभी चुप्पी साध गए। इससे जाहिर होता है कि सफाई शाखा में होने वाली खरीद की स्पेशल जांच करवाने की जरूरत है। स्वच्छता की कमान संभालने वाले अधिकारी बैकफुट पर
नगर निगम की सफाई शाखा के डस्टबिन विवाद से आलाधिकारी पल्ला झाड़ने लगे हैं। पूर्व में स्व'छता की कमान संभालने वाले एसई रामजीलाल ने भी इस मामले से हाथ पीछे खींच लिए हैं। उनका कहना है कि इस मामले में उन्हें कोई जानकारी नहीं है। सफाई शाखा के अधिकारी ही पार्षदों और उनके बीच डस्टबिनों को लेकर चल रहे विवाद के बारे में बता सकते हैं। पार्षदों से हुआ था भेदभाव
नगर निगम ने पार्षदों को डस्टबिन बांटते समय भी भेदभाव पूर्ण रवैया अपनाया था। उस दौरान कई पार्षदों ने डस्टबिन समानांतर नहीं बांटने की बात कहीं थी। इतना ही नहीं बचे हुए निगम के स्टोर में बचे हुए डस्टबिन एक माह पहले भी पार्षदों को बांटे जा रहे थे। जबकि बड़े वार्ड वाले पार्षदों को डस्टबिन खत्म होने की बात कहीं गई थी। तीन माह पहले 100 और 150 जोड़े डस्टबिन पार्षदों को दिए गए थे। डस्टबिन पर निशुल्क के टैग लगे थे। बाद में अधिकारियों ने 30 रुपये प्रति जोड़ा, उसके बाद 60 रुपये प्रति जोड़ा कर दिया। इतना ही नहीं कई पार्षदों को 200 या उससे अधिकारी जोड़े डस्टबिन भी दे दिए हैं, जिसको लेकर कई पार्षदों ने आपत्ति जताई थी। पार्षदों को बकाया राशि जमा करवाने को लेकर फोन कर दिए गए हैं। एक दो दिन में बकाया राशि पार्षद जमा करवा देंगे। यह कोई बड़ा मामला नहीं है।
सुभाष सैनी, सीएसआइ