कभी ब्रश-पेंट तक खरीदने के नहीं थे पैसे, समुद्री बालू से आकृति बनाना शुरू कर दुनिया में छाए सुदर्शन
युवाओं को संदेश देते हुए कि रातों-रात में कोई सुदर्शन नहीं बनता। इनका कहना है कि समुद्री रेत से कलाकृतियों को आकार देने लगे फिर भी कई साल तक आर्थिक तंगी से जूझते रहे। इन्होंने बताया कि पहले ओडिशा में पहचान मिली।
अरुण शर्मा, रोहतक। इसे कहते हैं समुद्री लहरों से लड़ने का साहस। पदमश्री एवं समुद्री बालू के रेत से कलाकृतियों को तैयार करने वाले विख्यात कलाकार सुदर्शन पटनायक। बचपन में घोर गरीबी का सामना किया। भरपेट भोजन तक नसीब नहीं था। मजबूरी में पड़ोस में बाल मजदूर के रूप में काम किया। आर्थिक तंगी ऐसी थी कि 6वीं तक ही पढ़ाई कर सके। चित्रकारी से बचपन से ही लगाव था। मगर अपने सपनों को रंग भरने के लिए उनके पास ब्रश, कागज, कलर तक खरीदने के लिए पैसे नहीं थे। फिर भी हार नहीं मानी।
अपने सपनों को समुद्री रेत में तलाशा और उसी से आकृतियां बनाने लगे। लोगों की भीड़ उमड़ने लगी और उत्साह बढ़ता गया। रोहतक के ओल्ड आइटीआइ ग्राउंड में जैन संत सुदर्शन महाराज के जन्म शताब्दी समारोह में 45 वर्षीय कलाकार सुदर्शन पटनायक पहुंचे। इन्होंने यहां जैन संत की विशेष आकृति भी तैयार की है। सुदर्शन पटनायक ने बताया कि घर के आर्थिक हालात खराब थे। पिता पंकज अलग रहते।
मां सरोजिनी के ऊपर तीन बच्चों की जिम्मेदारी आ गई। इसलिए बचपन मजदूरी करके बीता। ओडिशा के पुरी निवासी सुदर्शन भगवान जगन्नाथ का आशीर्वाद बताते हुए कहा कि मैं एक दिन समुद्री तट पर घूम रहा था। उन्हें एक पल लगा कि समुद्री रेत से कुछ आकृतियां बनाई जा सकती हैं। लेकिन जो भी आकृतियां बनाते उन्हें लहरें बार-बार तबाह कर जातीं। कई महीनों की मेहनत और अपनी कला में हर रोज नए शोध किए तो फिर महारथ हासिल होती गई।
नाम मिलने लगे, लेकिन आर्थिक संकट से कई साल तक जूझते रहे
युवाओं को संदेश देते हुए कि रातों-रात में कोई सुदर्शन नहीं बनता। इनका कहना है कि समुद्री रेत से कलाकृतियों को आकार देने लगे फिर भी कई साल तक आर्थिक तंगी से जूझते रहे। इन्होंने बताया कि पहले ओडिशा में पहचान मिली। साल 2005 में बालू के रेत से कलाकृतियां बनाने के लिए जर्मनी में वल्र्ड चैंपियनशिप का आयोजन हुआ। वहां विजेता बने तो देश-दुनिया में नाम मिला। आर्थिक तंगी भी दूर होने लगी। अब इन्हें याद नहीं आज तक कितनी विशेष आकृतियां रेत से तैयार कीं। 2014 में पदमश्री पाने वाले सुदर्शन गरीबों के लिए स्कूल भी संचालित करते हैं।