देसी गायों से ऐसा लगा दिल, खड़ी कर दी गोशाला, अब जैविक खेती कर पेश की मिसाल
मूलरूप से मिलन शर्मा राजस्थान के धौलपुर की रहने वालीं हैं। मध्यप्रदेश के ग्वालियर से बायो केमेस्ट्री में पोस्ट ग्रेजुएशन की। इसके बाद उनकी शादी मथुरा में हो गई मगर परिवार दिल्ली में रहता था। ऐेसे में वह दिल्ली आकर बस गईं।
हिसार, [वैभव शर्मा]। बायो केमेस्ट्री की पढ़ाई और जर्मन भाषा की विशेषज्ञ मिलन आज फरीदाबाद में 200 देसी गायों की पालक हैं। सिर्फ देसी गाय ही नहीं बल्कि उत्तर प्रदेश के मथुरा और फरीदाबाद में जैविक खेती के चर्चे भी इनके बहुत हैं। जैविक खेती से मिलने वाले उत्पाद और गायों के वेस्ट से बनने वाले उत्पादों के जरिए मिलन अच्छी खासी आय कर एक नजीर पेश कर रही हैं। मगर यह सब कुछ देसी गाय से इनके लगाव के चलते सफल हुआ।
दरअसल मूल रूप से मिलन शर्मा राजस्थान के धौलपुर की रहने वालीं हैं। मध्यप्रदेश के ग्वालियर से बायो केमेस्ट्री में पोस्ट ग्रेजुएशन की। इसके बाद उनकी शादी मथुरा में हो गई मगर परिवार दिल्ली में रहता था। ऐेसे में वह दिल्ली आकर बस गईं। यहां से जिंदगी ने मोड लिया और वह जर्मन भाषा सीखने लगीं। जर्मन भाषा में पारंगत होने के बाद वह सीबीएसई में जर्मन भाषा की कमेटी में रहीं। इसके बाद जर्मन सरकार के प्रोजेक्ट में बतौर भारत में प्रोजेक्ट मैनेजर के रूप में कार्य करने लगीं।
2017 में हुआ ससुर का देहांत
सब कुछ ठीक चल रहा था कि तभी जनवरी 2017 में उनके ससुर स्व. रिटा. मेजर बीपी शर्मा का देहांत हो गया। उन्हें गाेवंशी से काफी लगाव था। इसीलिए फरीदाबाद स्थित अपने फार्म पर वह चार गाय रखा करते थे। मगर उनकी मृत्यु के बाद गायों की देखभाल के लिए जब कोई तैयार नहीं हुआ तो उन्होंने इस काम का बीडा उठाया ताकि अपने ससुर की मत्वाकांक्षा बरकरार रहे। इस काम को किया तो उनका देसी गाय के प्रति प्रेम और गायों की संख्या बढ़ती गई। आज उनके पास 200 गोवंशी हैं। यहां तक कि गायों के प्रबंधन के लिए उन्होंने हिसार के लाला लाजपत राय पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान विश्वविद्यालय (लुवास) और करनाल के नेशनल डेयरी रिसर्च इंस्टीट्यूट (एनडीआरआई) से प्रशिक्षण लेकर यह काम किया।
जैविक खेती अपनाकर पहली साल में ली अच्छी उपज
मिलन बताती हैं कि उनके पास फरीदाबाद में 15 एकड़ जमीन है। जिस पर वह गोशाला और जैविक खेती कर रही हैं। वहीं 25 एकड़ भूमि उत्तर प्रदेश के मथुरा में तो यहां पर पूरे परिवार को जैविक खेती में लगा दिया। जैविक खेती करने का तरीका उन्होंने सुभाष पालेकर की पुस्तक और कुरुक्षेत्र में आचार्य देवव्रत के फार्म पर जाकर सीखा। अब वह गेहूं, जौ, बाजरा, तीन प्रकार की दालें आदि फसलों को करती हैं। अपनी गोशाला पर तैयार खाद और गाेमूत्र से तैयार जीवामृत का प्रयोग अपने खेतों में करती हैं। उन्होंने बताया कि लोग कहते हैं कि पहली बार में जैविक खेती में अधिक फायदा नहीं होता मगर उन्होंने हर काम समय पर किया तो उन्हें अच्छी उपज मिली।
तैयार कर रहीं आर्गेनिक प्रोडक्ट
गोशाला में देसी गाय के गोबर व गो मूत्र से मिलन जैविक उत्पाद तैयार कर रही हैं। जैविक खाद और गोबर गैस के लिए सिल्ट भी बेचकर आय करती हैं। इसके साथ ही खेती के उत्पाद भी उनके फार्म से ही बिक जाते हैं। अब वह दूसरे लोगों को भी प्रेरित कर रही हैं। वह बताती हैं कि जब इस पेशे में नई थीं तो फार्म पर काम करने वाले श्रमिक कहते थे कि ज्यादा पैसा है खर्च हो जाएंगा चली जाएंगी, मगर यह काम इतना सफल हुआ कि अब वह अधिकांश समय गाय व खेती को देती हैं। इसके साथ ही अपनी गायों का उपचार औषधीयों से करती हैं। जिसमें पारंपरिक रूप से प्रयोग होने वाला एलोवेरा, शीशम, मेथी के बीज, अश्वगंधा की जड़, पत्ते आदि से उपचार करती हैं।