यहां शहीदों के साथ ही उपेक्षा, परिवार पालने में कर्जदार हो रहे परिजन, बोले...
सैनिकों के परिवार भी न्याय की मांग कर रहे हैं जिनके लाडलों ने देश सीमा के साथ दुर्गम क्षेत्र में अपने कर्तव्य का पालन करते हुए जान कुर्बान की थी लेकिन उन्हें मान-सम्मान नहीं मिलता
[राजेश भादू] फतेहाबाद। पुलवामा की घटना के बाद पूरे देश में आक्रोश का माहौल है। देश के लिए जान देने वाले वीर सैनिकों के लिए कैंडल मार्च निकाले जा रहे हैं। देश के लोग मांग कर रहे है कि आतंकी घटना का बदला लिया जाए। इस घटना से उठे देशभक्ति के भाव में उन सैनिकों के परिवार भी न्याय की मांग कर रहे हैं जिनके लाडलों ने देश सीमा के साथ दुर्गम क्षेत्र में अपने कर्तव्य का पालन करते हुए जान कुर्बान की थी लेकिन उन्हें मान-सम्मान नहीं मिलता। कई सैनिक तो ऐसे हैं जिन्हें पेंशन तक सही से नसीब नहीं हो रही है। परिजनों का कहना है कि हरियाणा के फतेहाबाद जिले से ही अब तक 17 से ज्यादा जवान शहीद हो चुके हैं। इनमें से कई उपेक्षा के शिकार हैं। सोचिए देशभर में शहीदों का आंकड़ा क्या होगा और उपेक्षा होने पर उनके दिल पर क्या गुजरती होगी। आइए जानते हैं इन शहीदों के बलिदान और परिवारों के संघर्ष की कहानी....
चार साल से नहीं मिला शहीद का दर्जा
गांव झलनिया के विक्रमजीत सिंह की 3 अप्रैल 2015 को कश्मीर में ड्यूटी के दौरान हृदयघात होने से मौत हो गई। 4 अप्रैल को विक्रमजीत का अंतिम संस्कार किया गया। विक्रमजीत की पत्नी सुनीता कहती है कि शहीद का दर्जा तो दूर, जो अन्य सुविधाएं नियमानुसार मिलनी चाहिए थीं उनसे भी अब तक उनका परिवार वंचित है। उनका कहना है कि उसके पति विक्रमजीत का निधन 36 वर्ष की आयु में हुआ था। उनकी सेवा के चार साल और बचे हुए थे। नियमानुसार उनके निधन के बाद 4 साल का पूरा वेतन मिलना था, लेकिन उसका लाभ नहीं मिला। ऐसे में उसके बेटे बलविंद्र व बेटी गुरमीत कौर की पढ़ाई पर बहुत अधिक खर्चा आ रहा है। जिसके चलते परिवार चलाने में मुसीबत आ रही है। वे अपने पति की प्रतिमा लगाना चाहती है, लेकिन अब उसके सामने दो लाख रुपये नहीं है।
शहीद विक्रमजीत की पत्नी अपने दोनों बच्चों के साथ
दो आतंकवादियों को मारने वाले खेतरपाल के परिवार की उपेक्षा
गांव मेहूवाला के खेतरपाल सिहं आतंकवादियों से मुकाबला करते हुए कश्मीर में जनवरी 2005 में शहीद हो गए। उन्होंने शहीद होने से पहले दो आतंकवादियों को मार गिराए। उसी दौरान एक माइन फटने के चलते वह शहीद हो गए। उनके बाद देश के लिए जान देने वाले सैनिक परिवार को जो सरकार द्वारा मदद मिलती है वह अभी तक नहीं मिली। शहीद खेतरपाल की पत्नी वीरबाला का कहना है कि बेशक उसके पति देश के लिए 2005 में शहीद हुए, लेकिन शहादत के बदले अब उनके परिवार को हर जगह दुत्कार ही मिली है। पति के शहीद होने पर सास ने भी गांव से निकाल दिया। अब वह भट्टू में रहती है। वहीं रहकर परिवार का पालन पोषण कर रही है। पेंशन भी बहुत कम मिल रही है। जिससे बच्चों की पढ़ाई नहीं करवा पा रही। उनकी मांग है कि उसके पास एएनएम का कोर्स किया हुआ है, उसे एएनएम की नौकरी तो दी जाए। जब खेतरपाल शहीद हुए थे तो उस दौरान सरकार ने कई घोषणा की थी, लेकिन उनमें से एक भी पूरी नहीं हुई।
शहीद खेतरपाल की पत्नी वीरबाला
20 साल बाद भी नहीं बना स्टेडियम
गांव मेहुवाला के शहीद नरेंद्र जाखड़ के पिता जय का कहना है कि जब उसका बेटा कारगिल युद्ध में शहीद हुआ था तो उसके तुरंत बाद हरियाणा के तत्कालीन मुख्यमंत्री ओपी चौटाला ने गांव के स्कूल का नामकरण नरेंद्र के नाम पर करने के साथ गांव में बड़ा खेल स्टेडियम भी उनके नाम पर बनाने की घोषणा की थी, लेकिन 20 सालों बाद गांव में स्टेडियम ही नहीं बना।
दो साल बाद भी नहीं जारी हुआ प्रतिमा के रुपये
गांव बहबलपुर के 21 वर्षीय होशियार सिंह 23 जुलाई 2016 को भारत-चीन सीमा पर ड्यूटी देते हुए अपनी जान कुर्बान कर दी। दो दिन बाद उनका गांव में अंतिम संस्कार कर दिया गया। इस दौरान मौके पर पहुंचे अधिकारियों व राजनेताओं ने उनके नाम पर गांव में प्रतिमा लगाने की घोषणा की। होशियार सिंह के पिता चरणजीत सिंह का कहना है कि घोषणा के आधार पर उन्होंने मोगा पंजाब से प्रतिमा बनाकर लगा दी। प्रतिमा का अनावरण करने के लिए कई नेता व अधिकारी गांव गए थे, लेकिन दो साल बाद भी सवा लाख रुपये की ग्रांट जारी नहीं हुई। अब भी कारीगर उनके पास रुपयों के लिए आ रहे हैं, लेकिन अधिकारी घोषणा के अनुसार रुपये नहीं दे रहे। शहीद के दर्जे का सर्टिफिकेट लेने के लिए उन्हें बड़ी परेशानी आई।
शहीद होशियार के पिता चरणजीत सिंह
जिले के ये सैनिक हो चुके हैं देश के लिए शहीद
नाम गांव का नाम आपरेशन वर्ष
ताराचंद किरढ़ान कैक्टस लीली 1971
बलवीर सिंह ढिंगसरा कैक्टस लीली 1971
श्रीचंद धौलू कैक्टस लीली 1971
मेहर सिंह सनियाना आपरेशन मेघदूत 1988
बलवंत राय जांडलीखुर्द आपरेशन रक्षक 1991
बलबीर सिंह लोहखेड़ा ---------
मनीराम बैजलपुर आपरेशन रक्षक 1998
कृष्ण कुमार ढाणी डूल्ट आपरेशन रक्षक 2000
देवेंद्र सिंह रतिया आपरेशन रक्षक 2001
नरेंद्र सिंह पारता आपरेशन रक्षक 2002
खेतपाल सिंह मेहूवाला आपरेशन रक्षक 2005
राजबीर सिंह किरढ़ान आपरेशन मेघदूत 1986
मनोहर लाल ढाणी डूल्ट आपरेशन विजय 1999
नरेंद्र सिंह मेहूवाला आपरेशन विजय 1999
राजेश कुमार गोरखपुर आपरेशन रक्षक 2001
भीम सिंह डाबी -----
अभयराम टोहाना कैक्टस लीली 1971