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ये ऐसे द्रोणाचार्य जो खुद नहीं जानते धनुर्विद्या फिर भी बना डाले कई अर्जुन और एकलव्‍य

तीर धनुष लेकर घूमने वाले कोच मनजीत को कोई कहता था मदारी तो कोई शिकारी, अब शिष्‍य नेशनल और अंतरराष्‍ट्रीय मेडलों की झड़ी लगा रहे हैं।

By manoj kumarEdited By: Published: Mon, 22 Oct 2018 01:10 PM (IST)Updated: Mon, 22 Oct 2018 01:28 PM (IST)
ये ऐसे द्रोणाचार्य जो खुद नहीं जानते धनुर्विद्या फिर भी बना डाले कई अर्जुन और एकलव्‍य
ये ऐसे द्रोणाचार्य जो खुद नहीं जानते धनुर्विद्या फिर भी बना डाले कई अर्जुन और एकलव्‍य

हिसार [मनप्रीत सिंह] इंसान जब स्‍वयं किसी विधा में महारत हासिल कर लेता है तो ही वो दूसरों को उस विधा का प्रशिक्षण दे पाता है। आमतौर पर इसी धारणा को माना जाता है। मगर हरियाणा हिसार के उमरा गांव में एक शख्‍स मनजीत मलिक ऐसे भी हैं जिन्‍होंने इस धारणा को ही बदल दिया है। दरअसल वो खुद तीरंदाजी नहीं जानते थे मगर उन्‍होंने गांव में राष्ट्रीय स्तर के लगभग 150 और अंतरराष्ट्रीय स्तर के 20 तीरंदाज गढ़ दिए।एक बार उन्होंने एक जगह तीरंदाजी की प्रतियोगिता देखी तो हरियाणा में धनुर्धर तैयार करने का मन बना लिया।
मगर ये सफर इतना आसान न था। उन्‍होंने धनुष तीर खरीदे और हमेशा साथ रखते। पेड़ों के पत्तों पर निशाना लगाते। उन्हें ऐसा करते देख कोई शिकारी कहकर उपहास उड़ाता तो कोई मदारी कहकर। मगर वह लोगों की बातों पर ध्यान नहीं देते और कारवां जारी रखा।

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अकादमी पर ही खर्च हो जाता था पत्‍नी का वेतन

मनजीत ने तीरंदाजी की कोचिंग देने वाली अपनी छोटी मोटी अकादमी खोल ली। पत्‍नी शिक्षिका है और शुरुआत में पत्नी के वेतन का बड़ा हिस्सा अकादमी पर ही खर्च हो जाता। लोग तीरंदाजी सिखाने के लिए अपने बच्चों को भेजने को तैयार ही नहीं थे। जिससे भी कहते वह बच्चों को भेजना तो दूर अकादमी खोलने पर ही एतराज जताने लगता। यह भी कहते कि तुमने कौन से कोच की ट्रेनिंग ली है जो हमारे बच्चों को नेशनल-इंटरनेशनल तीरंदाज बनाने की बात कर रहे हो। मनजीत के परिवार वाले भी इसे फिजूल का काम कहते। मगर मनजीत अपने संकल्प पर अटल रहे।

यूथ ओलंपिक में पहली बार मेडल जीतने वाले आकाश उनके शिष्‍य

उनकी अकादमी में कुछ दिन बाद कुछ लड़कों ने आना शुरू किया। उनमें से कुछ प्रदेश स्तर पर खेलने लगे। इसके बाद लोग लड़कियों को भी भेजने लगे। अब तो स्थिति यह है कि 150 से ज्यादा लड़के और 40 लड़कियां तीरंदाजी का प्रशिक्षण ले रही हैं। उनका शिष्य आकाश मलिक यूथ ओलंपिक में रजत जीतकर स्टार बन चुका है। यूथ ओलंपिक में तीरंदाजी में रजत जीतने वाले आकाश पहले भारतीय हैं। भारतीय टीम में मनजीत की अकादमी की हिमानी भी शामिल थी।

तीन बार रह चुके भारतीय टीम के कोच

मनजीत ने भले ही कभी तीरंदाजी के कोच की औपचारिक ट्रेनिंग नहीं ली, लेकिन वह तीन बार भारतीय टीम के कोच रह चुके हैं। मनजीत से प्रशिक्षण प्राप्त बच्चे यूथ वर्ल्‍ड चैंपियनशिप, एशिया कप, तीरंदाजी वर्ल्‍ड कप, साउथ एशिया चैंपियनशिप, वर्ल्‍ड यूनिवर्सिटी तीरंदाजी प्रतियोगिता में शिरकत करते हैं। मनजीत की चाहत हैं कि हमारे बच्चे देश के लिए ओलंपिक में सोना जीतें।

गुलेल से लगाते थे निशाना, मिला गुरु का साथ

मनजीत मलिक के शिष्‍य रॉबिन ने बताया कि वो बचपन में गुलेल से निशाना लगाता था, पेड़ से फल तोड़ना और मटकी फोड़ना आम बात थी, मेरे साथ और भी साथी थे। घर पर बार-बार शिकायत आती थी और इस बात का कोच मनजीत को पता चला। उन्‍होंने गुलेल से लगाए जाने वाले निशाने की तारीफ करते हुए हमें टीम में शामिल किया और इसके बाद नेशनल मेडलों की झड़ी लग गई। उन्‍होंने कहा अगर हमें इनका साथ न मिला होता तो कुछ भी नहीं कर पाते।

निशुल्‍क प्रशिक्षण ले बेटियां बढ़ रही आगे

तीरंदाजी खेल में खर्च ज्‍यादा हो जाता है, इस बात से हर कोई वाकिफ है, ऐसे में गांव में बहुत से ऐसे परिवार थे जो अपने बच्‍चों को प्रशिक्षण नहीं दिला पाते। मगर मंजीत मलिक ने गांव और खुद के सहयोग से सभी के लिए तीर कमान का इंतजाम किया। ग्रामीणों ने जगह दी और इसके बाद सुबह और शाम एकेडमी में अभ्‍यास का काम शुरू हो गया। अब लड़कों की जितनी लड़कियां निशुल्‍क प्रशिक्षण लेकर अपना और देश का नाम चमकाने में लगी है।

सीएम से लेकर कई दिग्‍गज कर चुके सम्‍मानित

गांव में और बाहर कोच मनजीत की लोकप्रियता इतनी है कि कोई उनके एक बार कहने पर उनके सा‍मने हाजिर रहता है। किसी भी तरह के खेल आयोजनों पर सीएम से लेकर वित्‍तमंत्री तक शिरकत करते हैं। इसके अलावा सीएम मनोहर लाल और पूर्व सरीएम भी उन्‍हें सम्‍मानित भी कर चुके हैं।

मिले मेडलों से खिलाड़ी नहीं संतुष्‍ट

अभ्‍यास करने के लिए जो भी प्‍लयेर आते हैं भले ही उन्‍होंने मेडल जीते हैं, मगर वो संतुष्‍ट नहीं है। उनका कहना है कि जब तक उनकी अकादमी की ओर से देश के लिए ओलंपिक में मेडल नहीं आता तब तक वो चैन से नहीं बैठेंगे। उनकी अकादमी में भी ओलंपिक के सिंबल के रिंग लगे रहते हैं, जिनके नीचे लिख दिया है कि असंभव कुछ भी नहीं।


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