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आम आदमी से लेकर रुपहले पर्दे तक जुड़ी लोहड़ी व मकर संक्रांति पर्व की परंपरा

बदलते दौर में हरियाणा की लोक संस्कृति पर हावी होता रहा पंजाबी लोक-आस्था का पर्व लोहड़ी। लोहड़ी के अगले दिन मकर संक्रांति पर नई दुल्हन द्वारा जेठ व ससुर-सास को मनाने की अनूठी परंपरा

By manoj kumarEdited By: Published: Thu, 10 Jan 2019 05:16 PM (IST)Updated: Thu, 10 Jan 2019 05:16 PM (IST)
आम आदमी से लेकर रुपहले पर्दे तक जुड़ी लोहड़ी व मकर संक्रांति पर्व की परंपरा
आम आदमी से लेकर रुपहले पर्दे तक जुड़ी लोहड़ी व मकर संक्रांति पर्व की परंपरा

फतेहाबाद [मणिकांत मयंक] पवित्र अग्नि ...। इससे निकलता ताप ...। ऊपर खुला आसमान ...। और नीचे नाचते-गाते-झूमते लोग ...। कहीं ढोलक की थाप पर गिद्दा तो कहीं मस्ती भरा भांगड़ा ...।

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लोक-आस्था आसमान की ऊंचाइयों पर ...। लोहड़ी से कुछ दिन पहले से ही आंखों के आगे यह मनभावन नजारा सायास-अनायास उपस्थित होने लगता है। हो भी क्यों नहीं? लोहड़ी का सबसे सुखद पक्ष भी तो यही है। मस्ती मिश्रित पंजाब की लोक-आस्था से जुड़ा यह त्योहार शहरों या गांव की गलियों से निकलकर रुपहले पर्दों तक जा

पहुंचा है। लेकिन, पंजाबी संस्कृति में रचा-बसा यह त्योहार की व्यापकता हरियाणा के लिए लोक-आस्था के तौर पर ही मान्य है।

यहां लोहड़ी के एक दिन बाद मकर संक्रांति सनातनी है। तात्पर्य यह कि संक्रांति ही सर्वमान्य है। विभिन्न विधाओं व क्षेत्रों के बुद्धिजीवी और आमजन भी यही मानते हैं। सनातनी संक्रांति अनूठी लोक-परंपरा लिये हुए है। सर्वप्रथम तो सूर्य आराधना और दान। फिर यहां मकर संक्रांति के दिन नई-नवेली दुल्हन अपनी ससुराल में रूसे अर्थात रूठ गए बड़ों को स्वेटर, कंबल आदि जैसे गर्म वस्त्र, मिठाई व अन्य उपहार देकर मनाती हैं।

गांव धांगड़ की भागमती को आज भी याद है संक्रांति का वह दिन जब उनके जेठ व ससुर घर की छत पर लिहाफ ओढ़कर सो गए थे। सो क्या गए थे, ऐसा जता रहे थे। रूठने का जतन कर रहे थे। सास भी कहीं चली गई थीं। भागमती ने अपनी मां से बात की। उसे बताया गया कि आज मकर संक्रांति है। इसलिए उसकी ससुराल के लोग रूठने का नाटक कर रहे हैं। वे रूठे नहीं हैं। थोड़ी ही देर में भागमती के मायके से गर्म कपड़े व मिठाइयां आईं। उसने अपने जेठ, ससुर और सास को मायके से आया शगुन का उपहार दिया। हंसते हुए बड़ों ने भागमती के सिर पर स्नेहाशीष का हाथ रखा। मकर संक्रांति के दिन ऐसा दृश्य अकेली भागमती के समक्ष ही उपस्थित नहीं होता है।

यह कहना अधिक मुनासिब होगा कि रूठे बड़ों को उपहार देकर मनाने की सदियों पुरानी परंपरा इस दिवस विशेष पर जीवंत हो उठती है। ऐसा अनेक बुजुर्ग व बुद्धिजीवी भी बताते हैं। उनका स्पष्ट मानना है कि हरियाणा की लोक-संस्कृति में सनातन काल से संक्रांति की ही महत्ता रही है। खासकर, ग्रामीण अंचल की धरा से यह सनातनी संक्रांति आसमान की ऊंचाइयां छू रहा होता है। लोहड़ी तो बदलते दौर में लोक-आस्था का त्योहार बन गया।

हालांकि आस्था का त्योहार लोहड़ी की हरियाणवी समाज में गहराती पैठ को नकारा भी नहीं जा सकता है। पंजाब से अलग हुए इस प्रदेश के अधिकतम क्षेत्र में लोहड़ी के जलवे दिखाई देते हैं। बेशक, इसके कुछ अहम कारण हैं। अव्वल तो लोहड़ी के दौरान फसलें पकने लग जाती हैं। कृषि प्रधान हरियाणा इस अवसर विशेष पर पकती फसलों को देख मस्ती में झूम उठे तो अस्वाभाविक भी नहीं। लोहड़ी की खुशी और उसके एक दिन बाद मकर संक्रांति का उल्लास उनकी मस्ती को दोगुना कर जाते हैं।

देखादेखी ही सही, लोहड़ी की लोक-आस्था हरियाणा के हर आयुवर्ग के लोगों को आनंदातिरेक में ले जाती है। लोक-आस्था से जुड़ी लोक-गाथाएं उनके उमंग के आवेग को

सुखद अनुभूति के चरम पर पहुंचाती हैं। खासकर उस वक्त जब अग्नि के आसपास ढोल की थाप पर गिद्दा या भांगड़ा के साथ उनके पैर थिरकने को मजबूर हो जाते हैं।दुल्ला-भट्टी की बहादुरी व समझदारी पर आधारित लोक-गाथा की काव्य-रचना-सुंदरिये-मुंदरिये हां, तेरा कौन बिचारा हो ... लोहड़ी की लोक-आस्था को नया क्षितिज देती है तो मकर संक्रांति पर सूर्य आराधना व बड़ों को सादर मनाना सनातनी संस्कार को नई ऊंचाई ...।

बड़े व छोटे रुपहले पर्दों तक लोहड़ी की अनुगूंज

बॉलीवुड के बादशाह शाह रूख खान व प्रीति जिंटा अभिनीत फिल्म वीर-जारा सबके जेहन में होगा। इन दोनों पर फिल्माया गया गाना-"लो आ गई लोहड़ी वे' सबको पसंद

आया था। आज भी यह गाना लोहड़ी की पार्टी की शान बढ़ाता है। छोटे पर्दों अर्थात टीवी सीरियलों में तो कहने ही क्या? शायद ही कोई सीरियल इसे रूपायित नहीं करता हो।

बड़े गायकों के गाए लोक गीतों में लोहड़ी

लोहड़ी के मौके पर दुल्ला-भट्टी गीत तो पहले ही काफी प्रचलित है। लेकिन दिलेर मेंहदी की आवाज में गाया गया यह गाना लोहड़ी के अवसर पर मनोरंजन के लिए अक्सर लोगों द्वारा बजाया जाता है। यही नहीं, असा नू मान वतन दा ... पंजाबी फिल्म में जसपिंदर नरूला और हरभजन सिंह मान द्वारा गाया लोहड़ी सांग भी पार्टियों की रौनक बढ़ाता है।

इनकी राय में लोहड़ी व संक्रांति

हम गांव से निकलकर आए हैं। गांवों में आज भी मकर संक्रांति की संस्कृति है। लोग अपने त्योहार व पर्व की संस्कृति भूले नहीं हैं। बदलाव जरूर आया है।देखादेखी लोग लोहड़ी भी मनाने लगे हैं। भिवानी, महेंद्रगढ़ व रेवाड़ी जैसे कुछ क्षेत्रों में इससे जुड़े लोकगीत भी गाए जा रहे हैं।

- डॉ. किरण ख्यालिया, लोक-गीत मर्मज्ञ।

परंपराएं संवद्धüित होती रहती हैं। संक्रांति पर सूरज की आराधना के साथ दान देने का भी चलन है। यह चलन काफी पुराना है। लोकगीतों में लोहड़ी भी समाज के दर्पण साहित्य का हिस्सा है। मैं तो साठ साल से लोहड़ी भी मनाते हुए देख रही हूं। सामुदायिक अनुभूति देती है।

- डॉ. शमीम शर्मा, प्रखर साहित्यकार।

हमारे हरियाणा में मकर संक्रांति ज्यादा मनायी जाती है। सांस्कृतिक परंपराएं हमारी अलग हैं। बोली, पहनावा, त्योहार-पर्व सब अलग हैं। संक्राति के दिन अलसुबह उठकर सूर्य की आराधना के साथ चूरमा आदि बनाते थे। अब लोग आरामपरस्त हो गए हैं। मौज-मस्ती भी हावी है।

- उषा शर्मा, प्रख्यात हरियाणवी फिल्म अदाकारा।


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