Mahashivratri 2020: अज्ञात वास के दौरान पांडवों ने हिसार में की थी शिवलिंग की स्थापना
करीब 5150 साल पहले महाभारत काल में अज्ञातवास के दौरान पांडव सीसवालिय वनों में भी रहे तथा मां कुंती शिव भक्त थी। आज महाशिवरात्रि के अवसर पर देखें भक्तों में कैसा उत्साह रहा।
आदमपुर [डीपी बिश्नोई] आज महाशिवरात्रि है और देशभर में भगवान शिव की पूजा हाे रही है। मगर भारत में बहुत से ऐसे शिवालय हैं जिनकी एक अनोखी गाथा है। इसमें से कुछ हिसार जिले में भी है तो कुछ साथ लगते वाले जिलों में। मगर हिसार के गांव सीसवाल के प्राचीन ऐतिहासिक शिव मंदिर में शिवलिंग की स्थापना पांडवों ने महाभारत काल के दौरान की थी। मंदिर का ऐतिहासिक एवं आध्यात्मिक महत्व इस तथ्य से साफ हो जाता है कि पुरातत्व विभाग के पास इस मंदिर का पिछले 750 सालों का रिकार्ड उपलब्ध है। बताया जाता है कि इससे पूर्व का रिकार्ड स्वतंत्रता आंदोलन में जल गया था। हिसार से उत्तर-पश्चिम दिशा में सिंधु घाटी की सभ्यता व मोहन जोदड़ो-हड़प्पा कालीन सभ्यता की समकालीन प्राचीन सीसवालिय सभ्यता वर्तमान गांव सीसवाल की जगह पनपी। सीसवालिय सभ्यता के कारण इस गांव का नाम सीसवाल पड़ा जो सरस्वती नदी की सहायक नदी दृश्दवती के किनारे बसा हुआ था। भारतीय पुरातत्व विभाग की खुदाई से इस सभ्यता का पता चला।
प्रसिद्ध इतिहासकार डा. केसी यादव के शोध पत्रों में इसका विस्तृत विवरण मिलता है। भिवानी के पास नौरंगाबाद में सैन्धव सभ्यता पनपी। सीसवालिय लोगों की संपन्नता को देखते हुए सैन्धवों ने सीसवालिय लोगों पर आक्रमण कर दिया। हालांकि इस युद्ध में हार-जीत का वर्णन नही मिलता लेकिन इस युद्ध के बाद दोनों सभ्यताएं आत्मसात होकर एक हो गई तथा इसके सीसवालिय-सैन्धव सभ्यता कहा जाने लगा। सीसवाल कुरुक्षेत्र-हस्तिनापुर जितना पुराना है। करीब 5,150 साल पहले महाभारत काल में अज्ञातवास के दौरान पांडव सीसवालिय वनों में भी रहे तथा मां कुंती शिव भक्त थी। अपने कुछ समय के प्रवास के दौरान माता कुंती के आदेश पर पांडवों ने यहां शिवलिंग की स्थापना की जो वर्तमान में शिव मंदिर में मौजूद है।
बताया जाता है कि मंदिर के स्थान पर पहले एक फ्रास का पेड़ हुआ करता था जहां एक संत तपस्या करते थे। तपस्यारत संत को एक बार स्वप्न में पेड़ के नीचे शिवलिंग दबा हुआ दिखाई दिया। संत ने ग्रामीणों को इसकी जानकारी दी। बाद में खुदाई करने पर 9-10 फीट लंबा शिवलिंग मिला जो पांडवों द्वारा स्थापित किया गया था। यही शिवलिंग इस मंदिर की नियति का आधार बना। इसे एक चमत्कार व दैवयोग ही कहा जाएगा कि जब मंदिर निर्माण के लिए सामग्री को लेकर ङ्क्षचता की गई तो आकाशवाणी हुई कि निर्माण कार्य शुरू कर दिया जाए, सामग्री उसी वृक्ष के नीचे से मिल जाएगी। मंदिर का निर्माण वृक्ष के नीचे से मिली तमाम आवश्यक सामग्री के साथ निर्बाध गति से हुआ। शिवालय में अब तक सुरक्षित पड़ी ईट भी उसी वृक्ष के नीचे से निकली हुई बताई जाती है।
750 वर्ष प्राचीन शिव मंदिर का जीर्णोद्धार कार्य शुरू
आदमपुर के गांव सीसवाल स्थित करीब 750 वर्ष प्राचीन ऐतिहासिक शिव मंदिर का जीर्णोद्धार कार्य बुधवार को जोर-शोर से शुरू किया गया। करोड़ों रुपये की लागत से होने वाले जीर्णोद्धार के बाद यह मंदिर देशभर के लिए आस्था का महत्वपूर्ण केंद्र होगा। अयोध्या की तर्ज पर इस शिव मन्दिर का निमार्ण किया जाएगा।
आजादी से भी पहले का है बड़वा का प्राचीन महादेव शिव मंदिर
सुभाष पंवार, सिवानीमंडी : खंड के गांव बड़वा गांव में सेठ परस राम के केसरिया जोहड़ पर बना विशाल महादेव शिव मंदिर भक्तों की श्रद्धा का केन्द्र है। इस मंदिर में जहां शिव भक्त रोजाना पूजा अर्चना करने आते हैं वही शिवरात्रि व महाशिवरात्रि को विशाल पूजा अर्चना, जलाभिषेक किया जाता है, मान्यता है कि इस मंदिर में शिव भक्तों की सभी मन्नतें पूरी होती है। गांव में करीबन 100 साल से अधिक पुराने इस महादेव शिव मंदिर में पूरे सावन शिव भक्तों की अपार भीड़ रहती है वही आम दिन शिव भक्त पूजा करते हैं और सावन मास में तो हर शाम को विशाल शिव आरती होती है जिसमें गांव के सैकड़ों शिव भक्त आरती में शामिल होते है। इस मंदिर में गांव के अलावा आसपास के गांवों लोग भी पूजा अर्चना करने आते हैं। सिवानी क्षेत्र में ये सबसे पुराना शिव मंदिर है।
इतिहास
बताया जाता है कि पुराने समय में धर्म के नाम पर सेठ साहूकार कुएं, बावड़ी, धर्मशाला व मन्दिर का निर्माण करवाते थे। इसी प्रकार से 100 से अधिक साल पहले गांव में सेठ परसराम ने गांव में विशाल केसरिया जोहड़ का निर्माण करवाया था और उसी दौरान जोहड़ के किनारे इस विशाल शिव मन्दिर का निर्माण भी किया गया। शुरू में इस मन्दिर बारू राम शर्मा ने बतौर पुजारी के रूप में पूजा शुरू की उसके बाद उन्हीं की पीढ़ी के लोग पूजा अर्चना करते आ रहे है। वर्तमान में पंकज शर्मा पुजारी है।
मन्दिर कुछ दूरी पर एक छोटा श्री बाला जी महाराज का मन्दिर भी बना है।
सदियों पुराना है किलोई मंदिर का शिवलिंग
रोहतक : जिला के किलोई गांव से एक किलोमीटर दूर बना शिवलिंग सदियों पुराना है। शोध में भी यह सामने आ चुका है कि शिव मंदिर का शिवलिंग गुप्त काल का है। यानी कि यह करीब 1500 साल पहले का शिवलिंग है। इसी कारण शिवलिंग के प्रति आस्था दूर दूर तक फैली हुई है। यहां पर न केवल किलोई बल्कि आसपास के विभिन्न गांवों व शहर के अलावा दिल्ली, कोलकाता आदि से भी भक्त पहुंचते हैं। इसी कारण मंदिर में कुए के पास बड़ी संख्या में लौटे व बाल्टियां रखी गई है।
कपिलमुनि ने की थी तपस्या
प्राचीन शिव मंदिर सेवा समिति के प्रधान सौरभ अत्री का कहना है कि मंदिर के पास प्राचीन तालाब भी है जिसे कोकिला तालाब कहते हैं। बुजुर्गाें से सुना है कि प्राचीन काल में इस तालाब के पास कपिलमुनि ने तपस्या की थी। इसी कारण इसे कपिलेश्वर धाम तालाब भी कहते हैं। महाशिवरात्रि पर यहां मेला लगता है। जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं। मंदिर में सुरक्षा-व्यवस्था बनाए रखने के लिए पुलिस के 150 जवान तैनात रहेंगे। दमकल विभाग की दो गाडिय़ां व दो एंबुलेंस भी मंगाई गई है।