नौकरी छोड़ी, जमापूंजी लगा खोला फ्री एजुकेशन स्कूल, विदेशी तकनीक से करवा रहे पढ़ाई
आईआईटी के रिसर्च स्कोलर एवं हैदराबाद निवासी श्रीकांत रैड्डी को भाया हरियाणा। इजिप्ट लंदन आदि से भी श्री कांत के परिचित गांव में कर चुके दौरा एक स्कूल खोला 28 के लिए तैयारी है।
झज्जर [अमित पोपली] लोगों के लिए सेवाभाव तो आपने बहुत से लोगों में देखा होगा, मगर जब कोई सेवाभाव के लिए अपनी अच्छी भली नौकरी को छोड़कर दूसरों की उन्नति के लिए काम करे तो बात ही कुछ और है। हैदराबाद में रहने वाले श्रीकांत रेड्डी ने भी ऐसा ही किया है। उन्होंने ये पहल भी अपने राज्य नहीं बल्कि दूसरे राज्य यानि हरियाणा के लिए की है। उन्होंने अपनी नौकरी ही नहीं छोड़ी बल्कि अपनी जीवनभर की जमापूंजी खर्च कर यहां के बच्चों को निशुल्क शिक्षा देने का काम शुरू किया है। विदेशी तकनीक से बच्चों को पढ़ाई करवाने में उनके विदेशी दोस्त भी उनका साथ दे रहे हैं।
बता दें कि करीब दो वर्ष पहले यूनाइटेड नेशन और आईआईटी के एक प्रोजेक्ट में अह्म कड़ी के रूप में काम करने के दौरान हरियाणा में महिलाओं की स्थिति पर अध्ययन किया था। आंकड़ों में सामने आई स्थिति और मौके पर मिले बदलाव को देखकर इस रिसर्च स्कॉलर ने हरि की धरा से बच्चों के लिए कुछ खास करने का फैसला लिया।
नवंबर 2018 में उन्होंने अपनी अभी तक की सभी सेविंग का प्रयोग करते हुए पहले झज्जर के भदानी गांव में प्री-प्राइमरी स्कूल की शुरूआत की। आईआईटी के साथी मित्र एवं सात समुंद्र दूर रह रहे साथियों के साथ बच्चों के लिए एक खास कोर्स डिजाइन किया है। जिसमें खेल-खेल में किस तरह से पढ़ाई के अलावा सोच को विकसित किया जाता है, सिखाया जा रहा है। अधिक से अधिक बच्चों को खास कोर्स का फायदा मिलें, इसके लिए प्री-प्राइमरी का विस्तार नए सैशन से देश भर के 28 स्थानों पर होने जा रहा है। बगैर आर्थिक मदद के प्रयोग कैसे सफल हो, इसके लिए आईआईटी के मित्रों की मदद ली गई है।
भदानी गांव में खोले गए प्री-प्राइमरी स्कूल में विद्यार्थियों के साथ संस्थापक श्रीकांत रेड्डी, विदेशी मेहमान एवं ट्रेंड किया गया स्टाफ, फाइल फोटो
इजिप्ट, लंदन आदि से भी श्रीकांत के परिचितों ने किया गांव में दौरा
भदानी गांव में खोले गए स्कूल के सफल होने में गांव की पंचायत एवं ग्रामीणों की सोच का भी बड़ा योगदान है। चूंकि एक अलग सोच को स्वीकार करने के लिए पहले स्वयं को तैयार करना पड़ता है। इधर, श्रीकांत के प्रयोग को आदर्श बनाने के लिए इजिप्ट, लंदन आदि से उसके विदेशी मित्र भी अध्ययन के लिए आ चुके हैं। विदेशों में बच्चों को दी जाने वाली प्रेक्टिकल शिक्षा को कोर्स में विशेष स्थान दिया गया है। ताकि ग्रामीण आंचल में पढऩे वाले बच्चें जब प्राइमरी स्कूल तक पहुंचें तो वे औरों से अलग दिखें।
--किसी भी प्रोजेक्ट में काम करने का दबाव होता है। लेकिन यहां सुकून मिल रहा है। प्रयास है कि अधिक से अधिक बच्चों को फायदा हो। स्कूल अधिक से अधिक खुलेंगे तो गांव के लोगों रोजगार भी मिलेगा।
श्रीकांत रेड्डी