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ईद-उल-अजहा पर मस्जिदों में मुस्लिम तो मंदिरों में उमड़े हिंदू, जानें क्‍यों मनाते हैं बकरीद

इस्लामिक कैलेंडर को हिजरी कैलेंडर के नाम से जाना जाता है। इसके अनुसार ईद साल में दो बार आती है। मगर दोनों ईद में क्‍या अंतर है। ईद-उल-अजहा पर बलि क्‍यों जाती है पढ़ें पूरी खबर

By manoj kumarEdited By: Published: Mon, 12 Aug 2019 02:55 PM (IST)Updated: Mon, 12 Aug 2019 02:55 PM (IST)
ईद-उल-अजहा पर मस्जिदों में मुस्लिम तो मंदिरों में उमड़े हिंदू, जानें क्‍यों मनाते हैं बकरीद
ईद-उल-अजहा पर मस्जिदों में मुस्लिम तो मंदिरों में उमड़े हिंदू, जानें क्‍यों मनाते हैं बकरीद

हिसार, जेएनएन। संयोग से आज सावन महीने का आखिरी सोमवार भी है तो वहीं ईद-उल-अजहा भी है। मंदिरों में लोग शिवलिंग का अभिषेक करने के लिए हिंदुओं की भीड़ उमड़ी हुई है तो वहीं मुस्लिम समाज के लोग नमाज पढ़ रहे हैं। छोटे बच्‍चे से लेकर बूढ़े लोग अपने-अपने धर्म के अनुसार रीति रिवाज को निभा रहे हैं। शायद भारत के धर्म निरपेक्ष होने के चलते ही हर कोई अपनी आस्‍था जाहिर करने में स्‍वतंत्र है। मुस्लिम समाज के लोगों के सिर अलहा की इबादत में झुके हैं तो हिंदुओं के भगवान शिव की अराधना में। शिवरात्रि की तरह ही ईद भी साल में दो बार मनाई जाती है, आइए आपको बताते हैं कि साल में दो बार क्‍यों आती है ईद, क्‍यों है दोनों के अंतर......... पढ़ें पूरी खबर

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ईद-उल-फितर (मीठी ईद) में रखे जाते हैं रोजे, इसलिए मनाते हैं

इस्लामिक कैलेंडर को हिजरी कैलेंडर के नाम से जाना जाता है। इसमें साल का एक महीना रमजान का होता है, जिसे पवित्र माना जाता है, जो पूरे 30 दिन का होता है। इस माह में लोग रोजा रखते हैं। इस पाक महीने के अंतिम दिन का रोजा चांद को देखकर ही खत्म किया जाता है। चांद दिखने के अगले दिन ईद का त्योहार मनाया जाता है। पैगम्बर हजरत मुहम्मद साहब ने बद्र के युद्ध में फतह हासिल की थी। इस युद्ध में फतह मिलने की खुशी में लोगों ने ईद का त्योहार मनाना शुरू किया। ईद-उल-फितर या मीठी ईद कहा जाता है। क्‍योंकि रोजे खत्‍म होने के बाद सबसे पहले मीठी चीज खाने का रिवाज होता है। इसमें गरीब व जरुरतमंद परिवारों के लिए रकम भी निकाल कर रखी जाती है। रोजा खत्‍म होने के बाद परिवार के लोग ईदी देते हैं। तीस दिनों तक रोजा रखने वालों को ईनाम के तौर पर इसे देने का प्रचलन शुरू हुआ था। रोजे खत्‍म होने के बाद परिवार के लोग एक दूसरे को खाने की वस्‍तुएं देते हैं। जो की सभी मीठी होती हैं। इसमें शीर खुर्मा, सेवइयां आदि खाने का रिवाज है।

ईद-उल-अजहा होती है बकरीद, ये है मनाने का कारण

हिजरी कैलेण्डर के अनुसार साल में दो बार ईद का त्योहार मनाया जाता है। ईद-उल-फितर के 70 दिन बाद यानि ढाई महीने के बाद ईद-उल-अजहा मनाई जाती है। इसे बकरीद भी कहा जाता है। इस बार यह 12 अगस्‍त को मनाई जा रही है। इस ईद पर कुर्बानी दी जाती है। इस कुर्बानी को सुन्‍नत ए इब्राहिम भी कहा जाता है। इस त्‍योहार की शुरुआत भी हजरत इब्राहिम से हुई थी। मान्‍यता के अनुसार हजरत इब्राहिम के सपने में आकर सबसे प्‍यारी चीज की कुर्बानी देने की बात कही। जब इब्राहिम ने अपने बेटी की बलि देने का फैसला किया। पर ऐसा करने पर कहीं उसके हाथ रुक न जाएं, इसलिए उन्‍होंने अपने आंखों पर पट्टी बांध ली। जब उन्‍होंने बलि देने के बाद पट्टी खोली तो देखा कि उनका बेटा तो उनके सामने जिंदा खड़ा था और जिस की बलि दी गई थी वो बकरी, मेमना, भेड़ की तरह दिखने वाला जानवर था। तभी से यह माना गया कि बलि देने से अलहा खुश होते हैं और इस दिन को त्‍योहार के रूप में मनाया जाने लगा और इसे बकरीद कहा जाने लगा।

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