Kisan Andolan: दिखाई देने लगे हैं किसान आंदोलन के दूरगामी दुष्परिणाम, समाज के बीच गहरी हो रही खाई
Kisan Andolan निश्चित रूप से स्थिति ऐसे ही रही तो आने वाले दिनों में समाज में केवल दो वर्ग बचेंगे एक आंदोलन के समर्थक और दूसरे आंदोलन के विरोधी सीधी सपाट भाषा में कहे तो जाट और गैर जाट।
जगदीश त्रिपाठी, हिसार। तीनों कृषि सुधार कानूनों के विरोध कर रहे आंदोलनकारी जो व्यवहार कर रहे हैं, उसके दूरगामी दुष्परिणाम दृष्टिगोचर होने लगे हैं। समाज में खाई गहरी होती जा रही है। रोहतक की एक घटना से क्षुब्ध वहां के सांसद और भारतीय जनता पार्टी के नेता डाक्टर अरविंद शर्मा ने प्रदेश के पूर्व सहकारिता राज्य मंत्री मनीष ग्रोवर की तरफ उठने वाली आंख को निकाल लेने तक की धमकी दे दी। ग्रोवर की तरफ उठने वाले हाथ को काट लेने की भी बात कही।
चौथी बार लोकसभा पहुंचे वरिष्ठ सांसद शर्मा को निश्चित रूप से वाणी पर संयम रखना चाहिए था। शब्दों का चयन सोचसमझ कर करना चाहिए था। उनके इस कथन का समर्थन कदापि नहीं किया जा सकता। किसी ने किया भी नहीं। वैसे भी अपने कार्यकर्ता का मनोबल बढ़ाने के लिए नेताओं में इस तरह का बयान देने की परंपरा रही है। लेकिन शर्मा सिर्फ सांसद ही नहीं, वह चिकित्सक भी हैं। चिकित्सा स्नातक हैं। उनका यह कथन अनुचित था। यद्यपि बाद में शर्मा ने स्पष्ट किया कि उनकी चेतावनी किसी जाति या समुदाय के लिए नहीं थी।
लेकिन रोहतक बार एसोसिएशन के सचिव दीपक हुड्डा ने इसके विरोध में बार एसोसिएशन के कार्य से विरत रहने और मनीष ग्रोवर व अरविंद शर्मा का पुतला फूंकने की घोषणा कर दी। इसका परिणाम यह हुआ कि बार एसोसिएशन भी दो गुटों में बंट गई। एक गुट ने कहा कि कार्य से विरत रहने का फैसला बार का नहीं है। बहुत से वकीलों ने रूटीन की तरह मुकदमे भी देखे, लेकिन एक वर्ग ने काम नहीं किया। सामान्य तौर पर तो यह कोई बहुत बड़ी घटना नहीं, लेकिन गंभीरता से विचार करें तो आंदोलन के कारण जो भाईचारा टूट रहा है, वह रेखांकित हो रहा है।
तीनों कृषि सुधार कानून विरोधी आंदोलन में हरियाणा के जाट समुदाय की अग्रणी और प्रमुख भूमिका है। अन्य समुदायों ने इससे दूरी बना रखी है। आंदोलनकारियों द्वारा भारतीय जनता पार्टी और सत्ता में उसकी सह भागीदार है। दोनों दलों के नेता कहीं भी आते जाते हैं तो मध्य हरियाणा में उनका घेराव होता है। वे किसा कार्यक्रम में सम्मलित होने में संकोच करते हैं। ऐलनाबाद उपचुनाव में तो भाजपा प्रत्याशी गोबिंद कांडा को गुरुद्वारे प्रवेश ही नहीं करने दिया गया। त्रास देने वाली बात तो यह है कि हरियाणा की खाप पंचायतें भी इसके विरोध में कुछ नहीं कहतीं। बहिष्कार का अर्थ संबंधित व्यक्ति से किसी तरह का संबंध न रखना होता है। उसका सामाजिक-आर्थिक बहिष्कार होता है, उसके लोकतांत्रिक अधिकारों का बलात अपहरण नहीं। आंदोलनकारियों के इस तरह के कृत्यों का सामान्य जन विरोध भले न कर रहा हो, लेकिन आंदोलनकारी जनता की सहानुभूति खो चुके हैं।
मनीष ग्रोवर-अरविंद शर्मा प्रकरण पर रोहतक बार में कार्य से विरत रहने की घोषणा के बाद यह भी रेखांकित होने लगा है कि यह खाई सुशिक्षित लोगों के बीच भी पैदा हो रही है। अरविंद शर्मा ने जिस घटना के विरोध में धमकाने वाले अंदाज में बयान दिया था, वह वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी केदारनाथ में पूजा अर्चना करने वाली दिन की थी।
रोहतक के गांव किलोई में स्थिति प्राचीन शिव मंदिर में लगभग डेढ़ सौ कार्यकर्ताओं के साथ कुछ प्रमुख नेता प्रधानमंत्री के सजीव प्रसारण को देख रहे थे, लेकिन तब उनके होश उड़ गए, जब पता चला कि मंदिर को हजार के लगभग लोगों ने घेर लिया है। घेराव करने वाले तीनों कृषि सुधार कानूनों के विरोधी आंदोलनकारी थे। घेराव करने वालों का कहना था कि प्रदेश के पूर्व सहकारिता राज्य मंत्री मनीष ग्रोवर माफी मांगे। मनीष रोहतक नगर से विधायक रहे मनीष का कहना था कि माफी किसलिए मांगे। घेराव करने वाले कह रहे थे कि जब हमने भारतीय जनता पार्टी के नेताओं का बहिष्कार कर रखा है तो वे क्यों कार्यक्रम कर रहे हैं।
खैर, शाम सात बजे के लगभग मनीष ग्रोवर भाजपा नेताओं के साथ मंदिर की बालकनी में आए। हाथ जोड़े और घेराव करने वाले लौट गए। उसी दिन की हिसार में एक और घटना हुई। भारतीय जनता पार्टी के राज्यसभा सदस्य रामचंद्र जांगड़ा नारनौल कस्बे में जांगिड़ धर्मशाला की आधारशिला रखने पहुंचे थे। वहां भी आंदोलनकारियों ने बड़ी संख्या में पहुंचकर उनके कार्यक्रम में विघ्न डाला और उनकी गाड़ी तोड़ दी। अब आंदोलनकारी सांसद, उनके ड्राइवर और गनर पर मुकदमा दर्ज करने की मांग कर रहे हैं तो जांगिड़ समुदाय के लोग आंदोलनकारियों की निंदा भर्त्सना करते हुए उनके विरुद्ध कार्रवाई को लेकर आंदोलित हैं।