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Kisan Andolan: किसान संगठनों का कृषि कानून विरोधी आंदोलन एवं राजनीतिक अवसरवाद

वर्तमान किसान आंदोलन की पृष्ठभूमि में यह स्थिति वैचारिक अवसरवाद एवं सत्ता परिवर्तन के साथ बदलते हुए चेहरों को बेपर्दा करने के लिए पर्याप्त है। दुख की बात है कि अधिकांश विरोध वही लोग विचारधाराएं एवं उनकी पार्टियां कर रही हैं जिन्होंने इनका आधार प्रस्तुत किया था। फाइल

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Wed, 07 Apr 2021 10:50 AM (IST)Updated: Wed, 07 Apr 2021 01:47 PM (IST)
Kisan Andolan: किसान संगठनों का कृषि कानून विरोधी आंदोलन एवं राजनीतिक अवसरवाद
कृषि को छोड़कर लगभग सभी आर्थिक क्षेत्रों में इसका प्रभाव महसूस किया गया। फाइल

डॉ. अभय सिंह यादव। भारतीय प्रजातंत्र में किसान राजनीति के केंद्र में रहा है। समय-समय पर किसान अपनी ताकत का प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से आभास भी करवाता रहा है। परंतु विडंबना यह रही है कि राजनीति को बदलने वाला यह वर्ग अपने आप को नहीं बदल पाया। भूमंडलीकरण के दौर में जब दुनिया के लगभग सभी देशों के बाजार एक-दूसरे के लिए खोल दिए गए तो कृषि को छोड़कर लगभग सभी आर्थिक क्षेत्रों में इसका प्रभाव महसूस किया गया। कई क्षेत्रों में अभूतपूर्व वृद्धि दर्ज की गई।

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आर्थिक सुधारों की इस कड़ी में कृषि सुधारों की प्रक्रिया भी वर्तमान सदी के प्रारंभिक वर्षो में ही शुरू हो गई थी। इसके मूल में कृषि को आधुनिक अर्थव्यवस्था में स्थापित करते हुए किसान को अर्थव्यवस्था के विकास में एक सक्रिय सहयोगी बनाना था। इसके लिए कांग्रेस की अगुआई वाली यूपीए-दो की सरकार के कार्यकाल के प्रारंभिक वर्षो में तत्कालीन प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रियों एवं प्रदेश के मुख्यमंत्रियों का एक समूह बनाया गया, जिसका मुख्य उद्देश्य किसान एवं कृषि को यथास्थितिवाद से बाहर निकाल कर विभिन्न सुधारों के माध्यम से उसे अर्थव्यवस्था के एक मजबूत स्तंभ के रूप में स्थापित करना था।

इसी प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए हरियाणा के तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा की अध्यक्षता में एक वìकग ग्रुप बनाया गया, जिसे कृषि उत्पादन को गुणवत्ता के साथ बढ़ाने एवं उसकी बिक्री के लिए आधुनिक बाजार की संभावनाओं का पता लगाना था। इस समूह की संरचना की विशेष बात यह थी कि इसमें विभिन्न क्षेत्रों, पार्टयिों एवं विचारधाराओं का समावेश था। जहां अध्यक्ष के रूप में हरियाणा के कांग्रेस के बड़े नेता एवं किसान पृष्ठभूमि से भूपेंद्र सिंह हुड्डा थे, वहीं सरदार प्रकाश सिंह बादल भी थे, जो स्वयं एक बड़े किसान नेता के साथ-साथ क्षेत्रीय दलों की राजनीति का एक बड़ा चेहरा रहे हैं। इसमें वामपंथी विचारधारा के ध्वजवाहक बुद्धदेव भट्टाचार्य भी थे। इसी तरह बिहार के मुख्यमंत्री भी अपनी विचारधारा के साथ इसमें सम्मिलित थे। मुख्यमंत्रियों के उस समूह ने कृषि विशेषज्ञों एवं आमजन से प्राप्त हुए सुझावों के आधार पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की, जो आगे चलकर वर्तमान तीनों कृषि कानूनों का मुख्य आधार बनी।

पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुछ किसान संगठनों का मुख्य विरोध कृषि कानूनों में निहित प्राइवेट मंडी व्यवस्था, अनुबंध कृषि, कृषि व्यापार को आवश्यक वस्तु सेवा अधिनियम से मुक्त करते हुए भंडारण की सीमा समाप्त करने के विरुद्ध एवं समर्थन मूल्य पर विशेष कानून के लिए है। इस पृष्ठभूमि में मुख्यमंत्रियों के उस समूह द्वारा इन बिंदुओं पर दी गई संस्तुतियां आज की स्थिति में उल्लेखनीय हैं। मुख्यमंत्री समूह की रिपोर्ट के अध्याय-पांच में जहां वर्तमान मंडी व्यवस्था के एकाधिकार को समाप्त करते हुए ई-ट्रेडिंग के साथ खुली मंडी व्यवस्था की सिफारिश की गई है, वहीं निजी मंडियों की व्यवस्था के माध्यम से किसानों को बंधन मुक्त व्यापार के साथ निजी क्षेत्र की पूंजी एवं भंडारण का लाभ प्रदान करवाने की वकालत भी की गई है। इसके साथ ही अनुबंध खेती को कृषि तकनीकी में सुधार के लिए रेखांकित किया गया है।

इस अध्याय के अंतिम पैरा में यह स्पष्ट उल्लेखित है कि आवश्यक वस्तु सेवा अधिनियम का उपयोग केवल आपातकालीन स्थिति में संबंधित प्रदेश की संस्तुति पर ही किया जाए। न्यूनतम समर्थन मूल्य के विषय में स्पष्ट संस्तुति है कि उसे लागत मूल्य में 50 प्रतिशत जोड़कर निर्धारित किया जाए, परंतु इसे आवश्यक रूप से पूरे कृषि उत्पाद पर लागू करने की गारंटी के विषय में कोई उल्लेख नहीं है। वर्तमान कृषि कानूनों में मुख्यमंत्री समूह की उक्त सिफारिशों का व्यापक समावेश है। परंतु हालातों एवं राजनीतिक विवशताओं की विडंबना देखिए इन कानूनों का प्रमुख एवं अधिकांश विरोध वही लोग, विचारधाराएं एवं उनकी पार्टियां कर रही हैं जिन्होंने इन कानूनों का आधार प्रस्तुत किया था।

पंजाब की वामपंथी विचारधारा, बादल साहब का अकाली दल एवं कृषि सुधार की परिकल्पना करने वाले मनमोहन सिंह की कांग्रेस की मदद से जहां पंजाब में किसान आंदोलन चल रहा है, वहीं हरियाणा में भूपेंद्र सिंह हुड्डा की कांग्रेस इस आंदोलन की पोषक, समर्थक एवं संजीवनी बनी हुई है। वर्तमान किसान आंदोलन की पृष्ठभूमि में यह स्थिति वैचारिक अवसरवाद एवं सत्ता परिवर्तन के साथ बदलते हुए चेहरों को बेपर्दा करने के लिए पर्याप्त है।

विधायक, नांगल चौधरी (हरियाणा)


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