Kisan Andolan: गांव में कोरोना संक्रमण के विस्तार का कारण बन रहे हैं आंदोलनकारी किसान
ऐसे में एक सवाल जरूर खड़ा होता है कि आखिर गांवों में फैले इस कोरोना की बड़ी वजह क्या है। राजनीतिक लोग इसे सरकार की लापरवाही बता रहे हैं। प्रभावित ग्रामीण सामान्य बुखार और टायफाइड कहकर कोरोना की चपेट में आने की सच्चाई स्वीकार करने को राजी नहीं हैं।
हिसार, अनुराग अग्रवाल। हरियाणा में करीब 60 लाख परिवार रहते हैं। इनमें से 40 लाख परिवार गांवों में रहते हैं। पिछले साल जब महामारी का असर सामने आया था, तब शहरों में बसने वाले काफी लोगों ने अपनी जान-पहचान के लोगों के यहां गांवों में जाकर शुद्ध आबोहवा का फायदा उठाया था। ऐसे तमाम लोग जो किसी रोजगार, नौकरी या कामधंधे की वजह से शहरों में आकर बस गए थे, वे भी अपने गांव लौट गए थे। सोच यही थी कि कोरोना का असर शहरों में ज्यादा है और गांव इससे बचे हुए हैं। लिहाजा वहां अच्छा खानपान मिलेगा, शुद्ध हवा-पानी का इंतजाम होगा और हर तरह के प्रदूषण तथा बीमारियों से भी बचे रहेंगे।
लेकिन इस बार की महामारी ने ठीक उल्टे हालात पैदा कर दिए हैं। कोरोना का सबसे ज्यादा असर कहीं है तो वह गांवों में है। परिवार के परिवार बीमार पड़े हैं। लोगों को समुचित इलाज नहीं मिल पा रहा है। सरकार उन्हें इलाज देना चाहती है, मगर वह लेना नहीं चाहते। कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो टेस्टिंग कराने से कतरा रहे हैं। डर है कि कहीं रिपोर्ट में कोरोना न आ जाए। भला हो सरकार का, जिसने गांवों में फैल रहे कोरोना के असर को गंभीरता से लिया है। करीब आठ हजार टीमों का गठन कर प्रत्येक को 500-500 परिवारों की चौखट पर दस्तक देने की जिम्मेदारी सौंपी गई है। पीड़ित लोगों के हर तरह के टेस्ट, दवाइयां और समुचित इलाज के साथ-साथ निगरानी की व्यवस्था की जा रही है।
ऐसे में एक सवाल जरूर खड़ा होता है कि आखिर गांवों में फैले इस कोरोना की बड़ी वजह क्या है। राजनीतिक लोग इसे सरकार की लापरवाही बता रहे हैं। प्रभावित ग्रामीण सामान्य बुखार और टायफाइड कहकर कोरोना की चपेट में आने की सच्चाई स्वीकार करने को राजी नहीं हैं। सरकार का सर्वे कहता है कि टीकरी व सिंघु बार्डर पर लंबे समय से चल रहे धरने हरियाणा-पंजाब-दिल्ली समेत आसपास के राज्यों में इस महामारी के फैलने का बड़ा कारण बने हैं। टीकरी और सिंघु बार्डर वह इलाके हैं, जहां पंजाब के लोग हरियाणा के विभिन्न जिलों से होते हुए लगातार यहां धरना देने के लिए पहुंचते रहे हैं। हरियाणा के कम से एक एक दर्जन जिलों के लोगों की भी इन धरना स्थलों पर निरंतर आवाजाही रही है। इनमें रोहतक, भिवानी, करनाल, हिसार, झज्जर, पानीपत, जींद, गुरुग्राम, फरीदाबाद और रेवाड़ी जिले शामिल हैं।
आश्चर्यजनक सत्य यह है कि इन जिलों के ग्रामीण इलाकों में सबसे अधिक कोरोना पीड़ित लोग मिल रहे हैं। हिसार के सिसाय गांव और मैयड टोल प्लाजा से सटे इलाकों के लोगों की आंदोलन में सक्रिय भागीदारी किसी से छिपी नहीं है। प्रदेश सरकार ने इन आंदोलनकारियों से बार-बार आग्रह किया कि उनकी सेहत पहले है, आंदोलन तो बाद में भी किया जा सकता है, लेकिन सरकार की हर अपील को नजरअंदाज करते हुए न केवल ग्रामीण कोरोना का टेस्ट कराने से बचते रहे, बल्कि खुद को मौत के मुंह में धकेलने का कोई अवसर हाथ से नहीं जाने दे रहे हैं। प्रदेश सरकार यदि जिद पर नहीं अड़ती और गांवों में स्वास्थ्य विभाग की टीमें भेजकर पीड़ितों का इलाज शुरू न कराती तो राज्य में भयंकर हालात पैदा हो सकते थे। ग्रामीणों की जिद ने पूरे क्षेत्र को मौत के मुहाने पर ला खड़ा कर दिया है। इसके लिए जितने जिम्मेदार किसान संगठनों के नेता हैं, उससे कहीं अधिक जवाबदेही हरियाणा व पंजाब के लोगों की भी बनती है।
पंजाब से जितने भी आंदोलनकारी टीकरी व सिंघु बार्डर पर पहुंचते हैं, वह हरियाणा के रास्ते वहां जाते हैं। उनकी हरियाणा में रिश्तेदारियां भी हैं। सरकार को इस संबंध में मिली एक हालिया रिपोर्ट के मुताबिक जीटी रोड बेल्ट के साथ ही हिसार, झज्जर और रोहतक जिलों में उन्हीं क्षेत्रों में संक्रमण ज्यादा है, जहां से होते हुए पंजाब के आंदोलनकारी किसान टीकरी और सिंघु बार्डर पर पहुंच रहे हैं। विभिन्न स्थानों पर सड़क किनारे लगे तंबुओं में जमा लोग और टोल पर धरना दे रहे लोगों में अधिकतर ने कोरोना टेस्ट नहीं कराया है। पिछले दिनों बंगाल की जिस युवती के साथ धरना स्थल पर कुछ लोगों द्वारा दुष्कर्म करने की बात सामने आ रही है, उसकी मौत भी कोरोना पाजिटिव होने तथा समुचित इलाज के अभाव में हुई है। यदि लड़की को समय से इलाज मिल जाता या धरना स्थल पर बैठे लोग उसे अपने आंदोलन के हथियार के रूप में इस्तेमाल न करते तो आज जान बच सकती थी।
[स्टेट ब्यूरो प्रमुख, हरियाणा]