कभी हॉकी से लगता था डर, फिर काबू पा कबड्डी छोड़ थामी स्टिक, एक साल में खेली नेशनल
हिमाचल प्रदेश की टीम में सेंटर फारवर्ड खिलाड़ी शिवानी जब आठवीं में थी तो कबड्डी में जोर आजमाइश करती थी लेकिन स्कूल के पीटीआइ रमन और मीरा ने उसकी प्रतिभा को पहचाना, फिर तस्वीर बदल गई
हिसार [संजय ढांडा] एक तरफ जहां अपनी रुचि के क्षेत्र में मुकाम पाने के लिए लोग जद्दोजहद करते हुए मंजिल पर पहुंचने से पहले ही हार मान लेते हैं, वहीं इसके विपरीत अल्प समय में ही सफलता के झंडे गाड़ते हुए शिवानी ने प्रेरणा की मिसाल कायम की है।
हिसार में चल रहे 64वें राष्ट्रीय स्कूली खेलों में दम दिखाने आई हिमाचल प्रदेश की टीम में सेंटर फारवर्ड खिलाड़ी शिवानी जब आठवीं में थी तो कबड्डी में जोर आजमाइश करती थी लेकिन स्कूल के पीटीआइ रमन और मीरा ने उसकी प्रतिभा को पहचाना और हॉकी खेलने के लिए प्रेरित किया। इसके बाद उसने कबड्डी को छोड़ हॉकी की स्टिक थामी और परिणाम यह रहा कि महज एक साल बाद ही वह राष्ट्रीय स्तर की खिलाड़ी बन गई। शिवानी आज टीम की ओर से सेंटर फारवर्ड खेलती है।
हिमाचल प्रदेश के शिमला के गांव सारकर निवासी हॉकी खिलाड़ी शिवानी ने अब तक की कामयाबी के पीछे शिक्षकों का सबसे ज्यादा योगदान बताया है। शिवानी गवर्नमेंट सीनियर सेकेंडरी स्कूल सोलन में पढ़ाई कर रही हैं। शिवानी ने कहा जिस टीचर ने हाथ पकड़कर हॉकी खेलना सिखाया और नेशनल गेम तक पहुंचाने के काबिल बनाया। इस बार न सही अगली बार इंटरनेशनल तक खेलकर सबका सीना गर्व से चौड़ा कर दूंगी। बस यही कहूंगी मेरे टीचर ही मेरे रोल मॉडल हैं।
कभी हॉकी से लगता था डर
शिवानी को गु्रप में खेलना अच्छा लगता है। वह कबड्डी टीम का हिस्सा थी। एक दिन पीटीआइ मीरा और रमन ने हॉकी खेलने को लेकर पूछा तो उस समय शिवानी का जवाब ना में था। लेकिन टीचर्स ने हौसला बढ़ाया और सिखाने की बात कही। शिवानी कहती हैं कि शुरू में तो ठीक से हॉकी भी नहीं संभालनी आती थी लेकिन टीचर्स ने हाथ पकड़कर खेलना सिखाया। परिणाम यह हुआ कि कुछ ही दिन में उसने हॉकी को अपनी रगों में बसा लिया।
नेशनल स्कूली गेम्स में सीखे गुर
शिवानी ने कहा कि मेरे पिता खेतीबाड़ी करते हैं। मैंने मेरे पिता को इतना खुश पहले कभी नहीं देखा जितनी हॉकी टीम में मेरे चयन के बाद उनके चेहरे पर दिखी। उसने कहा कि हिसार में चल रहे नेशनल स्कूली गेम्स में काफी कुछ सीखने को मिला है। बहुत सी नई तकनीकों के बारे में दूसरे खिलाडिय़ों से सीखा है।
विपरीत परिस्थितियों में राजमिस्त्री की बेटी ने बनाई नेशनल टीम में जगह
हिमाचल के पांवटा साहिब के गांव निहालगढ़ निवासी राजमिस्त्री की बेटी ने प्रतिभा के दम पर नेशनल टीम में जगह बनाई है। आठवीं कक्षा में पढ़ाई कर रही शीतल ने कहा कि सबसे पहला लक्ष्य खेलकर रोजगार हासिल करना और साथ ही खेल को मजबूत करना है। वहीं कोच अरुण भारद्वाज व संध्या ने भी खिलाडिय़ों को बेहतर करने के लिए प्रेरित किया।
बड़ी बहन से प्रेरित होकर शुरू किया था हॉकी खेलना
हिमाचल प्रदेश की नेशनल टीम में खेलने आई काजल ने अपने बड़ी बहन से प्रेरित होकर हॉकी खेलना शुरू किया था। उन्हीं को देखकर उनकी छोटी बहन भी हॉकी ही खेल रही है। पिता गांव में करियाने की दुकान चलाते हैं। काजल फिलहाल रैत के गवर्नमेंट सीनियर सेकेंडरी स्कूल में नौवीं कक्षा में पढ़ाई कर रही हैं।