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लाजवाब हैं ये विदेशी मेहमान, इनकी खूबसूरती व उड़ान पर सभी कुर्बान

हरियाणा में झज्‍जर के भिंडावास व सिरसा के ओटू में अलबेले व खूबसूरत विदेशी मेहमानों ने समां बांध दिया है। लोग इनकी उड़ान और चहल पहल पर कुर्बान हैं। आइये, आपका इनसे परिचय करवाते हैं-

By Sunil Kumar JhaEdited By: Published: Thu, 30 Nov 2017 05:55 PM (IST)Updated: Thu, 30 Nov 2017 06:32 PM (IST)
लाजवाब हैं ये विदेशी मेहमान, इनकी खूबसूरती व उड़ान पर सभी कुर्बान
लाजवाब हैं ये विदेशी मेहमान, इनकी खूबसूरती व उड़ान पर सभी कुर्बान

झज्जर/सिरसा, [अमित पोपली/ महेंद्र सिंह मेहरा]। सर्दी का मौसम अाते ही हरियाणा में विदेशी मेहमानों का आगमन शुरू हो गया है। ये खूबसूरत मेहमान हजारों किलोमीटर की दूरी तय कर उड़ान तय कर बसेरे की तलाश में यहां पहुंचे हैं। इन साइबेरियन पक्षियों से झज्जर की भिंडावास झील और सिरसा की ओटू झील गुलजार हो गई है। झील और उसके आसपास का क्षेत्र विदेशी पक्षियों के कलरव गूंज रहा है।

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विदेशी परिंदों से भिंडावास व ओटू झील गुलजार, साइबेरियन मेहमानों के साथ पेरेग्रिन फॉल्कॉन भी पहुंचा

खास बात यह कि इस बार साइबेरियन मेहमान परिंदों के साथ भारी संख्या में सबसे तेज उड़ान भरने वाले पेरेग्रिन फॉल्कन भी पहुंचे हैं, जो न सिर्फ तेज उड़ान वरन तेज चाल और तीव्र बुद्धि के भी माने जाते हैं। जब ये पक्षी झुंड के झुंड भोजन की तलाश में जलाशय या उस के आसपास उतरते हैं, उड़ान भरते हैं या जल विहार करते हैं तो इनकी सुंदरता व चंचलता देखते ही बनती है। इनकी जलक्रीड़ा और अठखेलियों को निहारने के लिए पक्षी प्रेमी भी भिंडावास झील क्षेत्र में पहुंचने लगे हें।

मेहमान परिंदों की अठखेलियों से गुलजार हुई भिंडावास झील

झील का क्षेत्र हर साल सर्दी का मौसम विदेशी परिंदों के आगमन से गुलजार रहता है। उनकी मेजबानी का दशकों से चला आ रहा यह सिलसिला अब भिंडावास झील क्षेत्र से आगे बढ़ते हुए डीघल, मांडौठी सहित यहां के दर्जन भर से अधिक स्थानों पर होने लगा है।

इसलिए यहां आते हैं ये मेहमान परिंदे

साइबेरिया समेत अन्य ठंडे इलाकों से हर साल विदेशों से हजारों किलोमीटर की दूरी तय प्रवासी परिंदे आते हैं। मेहमान के आगमन के पीछे इनके स्वार्थ भी है। इनके देशों में जब चारों तरफ बर्फ जम जाती है, तो इन्हें आहार मिलने में दिक्कत होती है। क्योंकि ये जिन कीड़ों, वनस्पतियों या जीवों को खाते हैं, वे बर्फीले मौसम में समाप्त हो जाते हैं या फिर जमीन में छिपकर शीत निद्रा में चले जाते हैं। इसीलिए ये परिंदे आहार की खोज में भारत जैसे देश में आते हैं। इनके आगमन के समय यहां शरद ऋतु होती है। इस दौरान नदी और जलाशय भरे होते हैं। हर जगह हरियाली होती है, जिसके बीच इन्हें पर्याप्त आहार मिल जाता है।

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लाजवाब है इनका दिशा ज्ञान

सामान्य से दिखने वाले ये पक्षी संवेदनशील, फुर्तीले और तेज दिमाग के होते हैं। इसी कारण हर साल वे अपने उन्हीं निर्धारित स्थानों में आते हैं, जहां बीते वर्ष आकर रह चुके होते हैं। इतने दूर से आने के बावजूद ये भटकते नहीं और अपने अपने स्थानों में आकर रहने लगते हैं। ये करीब छह महीने बाहर बिताते हैं लेकिन जब ये अपने घर लौटते हैं, तब वहीं अंडे देते हैं।

सूर्य और तारों की लेते हैं मदद

विशेषज्ञ सुंदर सांभरिया के मुताबिक, यात्रा के आरंभ में ये सूर्य की दिशा व तारों की स्थिति की मदद लेते हैं। किस दिशा में जाना है, इसके लिए ये परिंदे पर्वत, नदी, वन, झील आदि की भी सहायता लेते हैं। किस वक्त इन्हें यात्रा शुरू करनी है, इसका भी इन्हें पता होता है। इसी कारण अपने देशों में बर्फ जमने से पूर्व ये पर्याप्त वसा को अपने शरीर में जमा कर लेते हैं और फिर उड़ान भरते हैं।

सांभरिया के अनुसार, यह वसा ही इनकी मुख्य ऊर्जा का साधन होता है, जिसे एकत्र कर लेने के बाद इनकी भारत यात्रा प्रारंभ होती है। ताकि, बीच रास्ते में अगर इन्हें पर्याप्त भोजन नहीं मिल पाए तो उन्हें दिक्कत नहीं हो। ऐसा ही दौर एक दफा फिर आता है। जब फरवरी के बाद इन्हें वापसी की उड़ान भरनी होती है।

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सांभरिया का कहना है कि ठीक उस समय भी यह अपने शरीर में पर्याप्त वसा को जमा कर लेते हैं जो कि  हजारों किलोमीटर की उड़ान में उन्हें सहायता करती है। प्रवास के दौरान ये पक्षी उत्तर से दक्षिण दिशा की ओर उड़ान भरते हैं और अपनी ऊर्जा की बचत के लिए अंग्रेजी के 'वी' आकार में उड़ते हैं।

300 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से आहार पर झपटते हैं पेरेग्रिन फॉल्कॉन

विदेशी धरा से यहां पहुंचने वाले पक्षियों की खास विशेषता इनके उडऩे की क्षमता होती है। कुछ पक्षी तेज उड़ान भरते हैं, तो कुछ बिना रुके लगातार लंबी उड़ान भर सकते हैं। ये दो अलग-अलग गुण हैं, जो हर पक्षी में नहीं होते, लेकिन पक्षी 'पेरेग्रीन फॉल्कॉन में ये दोनों ही विशेषताएं होती हैं। आकार में छोटा सा दिखने वाला यह पक्षी कुछ ही हफ्तों में हजारों किलोमीटर की उड़ान भर सकता है। उसे विश्व का सबसे तेज उड़ने वाला पक्षी भी कहा जा सकता है। इसे अपना आहार जुटाने के लिए शिकार पकड़ना होता है तो इसकी रफ्तार लगभग 300 किलोमीटर प्रति घंटे से भी अधिक हो जाती है।



सिरसा की ओटू झील में भी साइबेरियन पक्षियों का मेला

सिरसा के ओटू झील में साइबेरियन पक्षियों की 50 से अधिक प्रजातियां पहुंच चुकी हैं। सिरसा में साइबेरिया, रूस के अलावा हिमाचल व कश्मीर से ग्रेटर कार्मोरेंट पहुंचे हैं। इनमें मार्श रेसिपीपर, आम रेत कीपिंग, ग्रीन रेडपीपर, सामान्य स्कूप्स, सामान्य रेडशैंक, स्पॉटेड रेडशैंक, जल-कपोत ग्रेलेग गुज़, उत्तरी शावलर, फेर्रुजनीस पोचर्ड, टिमिनिक कार्यकाल, छोटा कार्य पिक्चर एवोकेट, मार्श हैरियर आम टीला, व्हाइट आइबिल, पेंटिड स्ट्रॉक, स्कूनबिल, नॉर्दन सोलर, मलाइड, फ्लेमिंगो, पेंटल आदि पक्षी शामिल हैं।



ये भी हैं भारत के कद्रदान

पेलीसिन, रोजी पेलीसन, कॉमन क्रेन, डेमार सेल, बारहेडिड गूज, परपर्ल हॉर्न, नेकस्टॉर्क, पेंटेड स्टॉर्क, ह्वाइट नेक, ग्रे पेल्सिन, पिनटेल डक, शोवलर, डक, कॉमनटील, डेल चिक, मेलर्ड, पोचार्ड, गारगेनी टेल, फ्लेमिंगो सहित कई प्रजाति के पक्षी भारत आते हैं।

स्मॉग के कारण इस बार देर से पहुंचे मेहमान परिंदे

अक्टूबर के अंतिम सप्‍ताह और नवंबर के शुरुआती दिनों में स्मॉग ने इंसान ही नहीं मेहमान परिंदों को भी काफी परेशान किया। पाकिस्तान के लाहौर से पटना तक स्मॉग के कारण पक्षियों का दिशा ज्ञान (नेवीगेशन सिस्टम) प्रभावित हुआ और ये भटक गए। जैसा कि पक्षी वैज्ञानिक अनुमान लगा रहे थे, स्मॉग के छंटते ही ये परिंदे उत्तर भारत और मध्य भारत के अपने निर्धारित आवासों पर पहुंच गए।

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यहां से आते हैं पक्षी

ठंड शुरू होते ही साइबेरिया, ब्रिटेन, मंगोलिया, मध्य एशिया से हजारों की संख्या में विदेशी परिंदे मध्यभारत के मैदानों में आते हैं। वे पंजाब, हरियाणा, मध्यप्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, पंजाब सहित पूरे मध्यभारत के मैदानों में आकर डेरा जमाते हैं।

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हमारे मेहमानों को डरा रहे शिकारी

जिस अनुकूल परिस्थिति के कारण प्रवासी पक्षियों का हरियाणा की धरती से दशकों से जुड़ाव रहा है, शिकार के लालच में कुछ कुछ उसे खराब कर रहे हैं। अगर एक बार उनके मन में भय समा गया तो वे यहां से उनका मोहभंग भी हो सकता है।

कुछ मेहमान परिंदों को भी जानें

कुछ खूबसूरत विदेशी पक्षी- कॉमन सैंड पाइपर, वूड सैंड पाइपर, स्पॉटेड रेड सैंक (बाएं से ऊपर की पंक्ति)।  मार्स सैंडपाइपर, ग्रे लेग गूज और वार हेडेड गूज (बाएं से नीचे की पंक्ति)।

वार हेडेड गूज : यह एक प्रवासी पक्षी है जो हंस की प्रजाति का है। यह साइबेरिया से आता है। इसके पंख ग्रे कलर के होते हैं। गर्दन सफेद और सिर पर काले रंग की लाइन बनी होती है। सिर पर लाइन बने होने के कारण इसे वार हेडेड गूज कहते हैं।

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कॉमन सैंड पाइपर : यह पक्षी आठ से दस इंच का होता है। बहुत तेज भागता है और काफी चंचल होता है। ये जलीय कीड़ों को खाते हैं।

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ग्रे लेग गूज : ये भी हंस की प्रजाति का पक्षी है। इसकी चोंच गुलाबी कलर की होती है। ये बड़े साइज के होते हैं और समूह में ही रहते हैं।

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मार्स सैंडपाइपर : यह कॉमन सैंडपाइपर से आकार में बड़ा होता है। इसकी गर्दन सफेद और टांगें लंबी होती हैं। इसकी टांगों की लंबाई १२ से १५ ईंच तक होती है। ये छोटे कीड़े खाते हैं।

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स्पॉटेड रेड सैंक  : यह भी साइबेरियन पक्षी है। इसकी चोंच बहुत लंबी होती है। पैर थोड़ा लंबा और लाल कलर का होता है। इसके शरीर पर बहुत सारे स्पॉट जैसे दिखते हैं।

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वूड सैंड पाइपर : कॉमन सैंड पाइपर से साइज में बड़ा होता है। चोंच इसकी भी लंबी होती है और शरीर पर छोटे-छोटे दाने होते हैं।


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