Move to Jagran APP

होलिका दहन के लिए रात्रि 8:58 से 10:43 बजे के बीच शुभ मुर्हूत, ऐसे करें पूजन, ये होगा फायदा

सुबह 1044 बजे पूर्णिमा लगेगी और 21 को सुबह 712 बजे तक रहेगी। पंडित बाल कृष्ण शर्मा ने बताया कि भद्रा होने के कारण पूजन का शुभ मुर्हूत सुबह दस से लेकर रात्रि 12 बजे तक रहेगा।

By manoj kumarEdited By: Published: Wed, 20 Mar 2019 12:51 PM (IST)Updated: Wed, 20 Mar 2019 06:11 PM (IST)
होलिका दहन के लिए रात्रि 8:58 से 10:43 बजे के बीच शुभ मुर्हूत, ऐसे करें पूजन, ये होगा फायदा
होलिका दहन के लिए रात्रि 8:58 से 10:43 बजे के बीच शुभ मुर्हूत, ऐसे करें पूजन, ये होगा फायदा

रोहतक, जेएनएन। आपसी भाईचारे और सौहार्द के पर्व होली का अपना ही मजा है। होली के त्योहार पर हर कोई मस्ती और हंसी ठिठोली कर इसे अपने-अपने तरीके से मनाता है। होली को रंगों को त्‍योहार तो कहा ही जाता है। मगर होलिका दहन का भी विशेष महत्‍व है। भगवान की भक्ति की लीन प्रह्ललाद ने जिस तरह से बुराई पर जीत पाई और बुराई का प्रतीक होलिका को जलना पड़ा, वो उदाहरण आज भी मिसाल देने लायक है।

loksabha election banner

इस बार भद्रा के बाद ही होलिका दहन होगा। 20 मार्च को सुबह 10:44 बजे पूर्णिमा लगेगी और 21 को सुबह 7:12 बजे तक रहेगी। पंडित बाल कृष्ण शर्मा ने बताया कि भद्रा होने के कारण पूजन का शुभ मुर्हूत सुबह दस से लेकर रात्रि 12 बजे तक रहेगा। वहीं होलिका दहन रात्रि 8:58 से 10:43 बजे के बीच होलिका दहन किया जाएगा।

उन्होंने बताया कि इस दिन महिलाएं व्रत रखती हैं। इस व्रत का खास महत्व माना जाता है। होली के दिन व्रत रखकर महिलाएं अपने घर में सुख-समृद्धि और पति की दीर्घायु के लिए कामना करती हैं। इसके साथ ही लोटा में जल और कच्चा दूध डालकर होलिका की परिक्रमा लगाकर धागा बांधती हैं। होलिका दहन से ठीक अगले दिन चैत्र कृष्ण प्रतिपदा के दिन दुलहंदी का त्योहार मनाया जाएगा। लोग एक-दूसरे को गुलाल-अबीर लगाकर होली की शुभकामनाएं देंगे।


फतेहाबाद में होली पूजा करती हुई महिलाएं

इस प्रकार करें पूजन
पंडित बाल कृष्ण शर्मा ने बताया कि पूजन के लिए जल में दूध और अबीर गुलाल डालकर होलिका का पूजन करना चाहिए। जहां पर होली का डांडा गढ़ा गया हो या फिर जिस स्थान पर होलिका दहन किया जाता है। उस स्थान गोबर से बनाई गई बडगुल्लक, अनाज की बालियां, गुड़, आटा से पूजन करें। इसके पश्चात होलिका दहन के बाद अपने घर में नए अनाज की भुनी बालियां घर पर लाकर रखना शुभ माना जाता है।

ये हाेली का इतिहास, इसलिए मनाते हैं लोग खुशी
पुराणों के अनुसार हिरण्यकश्यप प्राचीन भारत का एक राजा था जो कि राक्षस की तरह था। वह अपने छोटे भाई की मौत का बदला लेना चाहता था जिसे भगवान विष्णु ने मारा था। इसलिए अपने आप को शक्तिशाली बनाने के लिए उसने सालों तक प्रार्थना की। आखिरकार उसे वरदान मिला। लेकिन इससे हिरण्यकश्यप खुद को भगवान समझने लगा और लोगों से खुद की भगवान की तरह पूजा करने को कहने लगा। इस दुष्ट राजा का एक बेटा था जिसका नाम प्रहलाद था और वह भगवान विष्णु का परम भक्त था। प्रहलाद ने अपने पिता का कहना कभी नहीं माना और वह भगवान विष्णु की पूजा करता रहा। बेटे द्वारा अपनी पूजा ना करने से नाराज उस राजा ने अपने बेटे को मारने का निर्णय किया।

उसने अपनी बहन होलिका से कहा कि वो प्रहलाद को गोद में लेकर आग में बैठ जाए क्योंकि होलिका आग में जल नहीं सकती थी। उनकी योजना प्रहलाद को जलाने की थी, लेकिन उनकी योजना सफल नहीं हो सकी क्योंकि प्रहलाद सारा समय भगवान विष्णु का नाम लेता रहा और बच गया पर होलिका जलकर राख हो गई। होलिका की ये हार बुराई के नष्ट होने का प्रतीक है। इसके बाद भगवान विष्णु ने हिरण्यकश्यप का वध कर दिया, इसलिए होली का त्योहार, होलिका की मौत की कहानी से जुड़ा हुआ है। इसके चलते भारत के कुछ राज्यों में होली से एक दिन पहले बुराई के अंत के प्रतीक के तौर पर होली जलाई जाती है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.