दर्द सबका अपना-अपना, सुलगती रेत पर पानी की अब तलाश नहीं, पढें... हरियाणा की और भी रोचक खबरें
राजनीति में कई ऐसी खबरें होती हैं जो अक्सर मीडिया में सुर्खियां नहीं बन पाती। आइए बाजण दो चिमटा साप्ताहिक कॉलम में कुछ ऐसी खबरों पर नजर डालते हैं...
हिसार [राकेश क्रांति]। राजस्थारन के पायलट और हरियाणा के कैप्टन का दर्द जुदा नहीं। पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट की उड़ान और पर कतरने की सीरीज देख कैप्टन अजय सिंह के जख्म हरे हो गए हैं। भूपेंद्र सिंह हुड्डा की कांग्रेस सरकार-पार्ट 1 में कैप्टक का कद बड़ा था मगर पार्ट-2 में घट गया था। शायद तभी पायलट की कहानी में खुद की कहानी देखते हैं और ट्वीट करते हैं-सचिन पायलट जी, मैं इस दौर से गुजरा हूं। जब सरकार में रहकर नहीं चलती तो दिल पर क्या बीतती है।
बिहार के पूर्व मुख्यममंत्री लालू प्रसाद यादव के समधी कैप्टन अजय के ट्वीट के कई मायने हैं। अपने इलाके के गुर्जर वोट से लेकर बिहार के चुनाव तक मायने जुड़े हैं। दक्षिण हरियाणा में चौधर की कुर्सी नहीं ला पाने का पुराना दर्द भी है। किसी ने सच कहा है- सुलगती रेत पर पानी की अब तलाश नहीं, मगर ये मैंने कब कहा कि मुझे प्यास नहीं।
फार्मूलों में उलझी भाजपा
लंबे अर्से से हरियाणा के राजनीतिक दल एक पुराने फार्मूले पर सियासी बिसात बिछाते आए हैं। अगर मुख्यमंत्री जाट है तो पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष नॉन जाट। अगर मुख्यमंत्री नॉन जाट है तो प्रदेश अध्यक्ष जाट। पहले कांग्रेस ने इस फार्मूले पर दस साल राज किया और अब भाजपा के छह साल पूरे होने वाले हैं। अब लगता है कि भाजपा नए फार्मूले पर खेलना चाहती है। तभी दिल्ली- दरबार से अभी तक प्रदेश अध्यक्ष को लेकर हरी झंडी नहीं मिली है। हरियाणा के कुछ नेता नहीं चाहते कि फार्मूले के साथ छेड़छाड़ न हो। दूसरी तरफ प्रयोगधर्मी विचार वाले नेता नए फार्मूले को आजमाने पर जोर देने में लगे हैं। पिछले विधानसभा चुनाव के नतीजे को देखकर भाजपा जातीय आधार पर वोट बैंक का गणित भली-भांति समझ चुकी है। अब देखना यह है कि नए प्रयोग पर फोकस करेगी या परंपरांगत वाले पर।
खत्म हुए किस्सों के लिए खामोशी ही बेहतर
राजस्थान की कांग्रेस सरकार में संग्राम के बहाने कांग्रेस के वर्तमान और पूर्व नेता अपनी पीड़ा उजागर करने से नहीं चूक रहे। अब देखिए। विधानसभा चुनाव के बाद से राजनीतिक अज्ञातवास में चल रहे कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अशोक तंवर बाहर निकल आए हैं। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा को लेकर पुराना राग अलपाने लगे हैं। उनकी पीड़ा वाजिब भी है। कांग्रेस में तंवर का राजनीतिक ग्राफ तेजी से बढ़ रहा था, मगर हुड्डा से राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता के कारण विराम लग गया। दिल्ली रैली में उन पर हमला हुआ था, उसका दर्द अभी तक नहीं गया है। हर सुबह उनकी आंख अब भी ठीक से नहीं खुलती। योग के जरिए काफी हद तक ठीक हुए हैं। दूसरी तरफ हुड्डा अब उनकी बातों को तवज्जो भी नहीं देते। शायद उन्होंने इन पंक्तियों को समझ लिया है-चलती हुई कहानियों के जवाब तो बहुत हैं मेरे पास, लेकिन खत्म हुए किस्सों के लिए खामोशी ही बेहतर।
भैंस के दूध के सहारे कब तक
साधु और चेला जंगल में रास्ता भटक गए। आश्रय तलाशते हुए एक झोपड़ी में पहुंचे। एक परिवार मिला। साधु ने परिवार के मुखिया से खाने और ठहराने का निवेदन किया। खाने के बाद साधु ने पूछा-घर कैसे चलता है? जवाब मिला-एक भैंस है। दूध बेचकर गुजर-बसर होता है। साधु ने पूछा- ये सामने जमीन किसकी? मुखिया बोला-मेरी। वार्तालाप के बाद सब सो गए। तड़के साधु उठा। चेले को बोला-भैंस खोल लो, चलो। रास्ते में खाई देख साधु ने कहा-भैंस को गिरा दो। इस घटना के कुछ साल बाद चेला अकेले उस जगह लौटा। हतप्रभ हुआ-झोपड़ी की जगह शानदार हवेली। दरवाजा खटखटाया तो मुखिया निकला। खुश होकर बोला-उस दिन आप दोनों के चरण ऐसे पड़े, किस्मत बदल गई। भैंस खूंटा तोड़कर खाई में गिरकर मर गई। फिर जमीन साफ कर खेती शुरू की। अब खुशहाली है। निष्कर्ष-हर शख्स की जिंदगी में एक भैंस बंधी है। वह उसे अलग नहीं सोचता। जब सोचता है तो नया सफर खुलता है।