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विश्व में अफ्रीका के बाद भारत सबसे अधिक वर्षा वाला दूसरा देश, लेकिन नहीं हो रहा जल संरक्षण : डा. सेतिया

जागरण संवाददाता हिसार गुरु जम्भेश्वर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय में पर्यावरण विज्ञान एव

By JagranEdited By: Published: Sun, 22 Sep 2019 01:43 AM (IST)Updated: Mon, 23 Sep 2019 06:36 AM (IST)
विश्व में अफ्रीका के बाद भारत सबसे अधिक वर्षा वाला दूसरा देश, लेकिन नहीं हो रहा जल संरक्षण : डा. सेतिया
विश्व में अफ्रीका के बाद भारत सबसे अधिक वर्षा वाला दूसरा देश, लेकिन नहीं हो रहा जल संरक्षण : डा. सेतिया

जागरण संवाददाता, हिसार:

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गुरु जम्भेश्वर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय में पर्यावरण विज्ञान एवं अभियांत्रिकी विभाग की ओर से 'पर्यावरण विज्ञान एवं अभियांत्रिकी के आधुनिक ट्रेंड्स' विषय पर शुरू हुई दो दिवसीय नेशनल कांफ्रेस का समापन शनिवार को हुआ। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि एनआइटी कुरुक्षेत्र के सिविल इंजीनियरिग डिपार्टमेंट से प्रो. बलदेव सेतिया रहे। मुख्य अतिथि डा. बलदेव सेतिया ने जल की आवश्यकताओं एवं संरक्षण के महत्वपूर्ण तथ्यों को दर्शाया। उन्होंने कहा कि विश्व में अफ्रीका के बाद भारत दूसरा ऐसा देश है, जहां पर वर्षा सबसे अधिक होती है, लेकिन सही प्रकार से व्यवस्था नहीं होने के कारण जल संरक्षण नहीं हो पाता तथा काफी हद तक पानी व्यर्थ बह जाता है। चेरापूंजी में लोग अधिक वर्षा से आहत हैं तो राजस्थान के जैसलमेर में पानी को तरस रहे हैं। इस दिशा में सार्थक कदम उठाने की जरूरत है।

मुख्य अतिथि ने कहा कि जल किस तरह से जैव विविधता और जीवन के लिए आवश्यक है। डा. सेतिया ने जल के विभिन्न उपयोगों के बारे में चर्चा करते हुए कहा कि जल के बिना जीवन संभव नहीं। संपूर्ण जल का 97.5 प्रतिशत लवण्य अर्थात खारा है, जो कि समुद्र में विद्यमान है। यानि पीने योग्य पानी की मात्रा बहुत कम है। जल की गुणवत्ता एवं मात्रा दोनों ही समान महत्व रखती है। 86 प्रतिशत जल को खेती में तथा 4 से 5 प्रतिशत घरेलू कामों में प्रयोग होता है। लेकिन घरेलू कामों में जो प्रयोग होता है, उसे हम काफी हद तक नियंत्रित कर सकते हैं। उन्होंने जल संरक्षण के लिए विभिन्न उपायों को अपने रोजमर्रा के जीवन में प्रयोग करने पर जोर दिया। नहाने के समय फव्वारा की जगह बाल्टी का उपयोग, ब्रश के समय टोंटी का जरूरत के हिसाब से प्रयोग तथा कार वॉशिग के समय पौंचे का उपयोग से जल को बचाया जा सकता है। टेक्निकल सत्र में एमडीयू रोहतक की प्रोफेसर विनीता शुक्ला ने केचुआ पद्वति के माध्यम से बताया कि किस प्रकार जैव प्रबंधन दक्षता से कैसे विषाक्त पदार्थों को दूर किया जा सकता है। डा. निशिकांत भारद्वाज ने पेपर एवं लुगदी इंडस्ट्री पर अपना वक्तव्य रखा।

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70 पोस्टर प्रेजेंटेशन -

सेमिनार में चार टेक्निकल सत्र हुए, जिनमें ओरल प्रेजेंटेशन के दौरान स्कॉलर्स, अंडरग्रेजुएट स्टूडेंट्स एवं प्रोफेसर्स ने अपने-अपने व्याख्यान दिए। इस दौरान स्कॉलर्स ने पर्यावरण पर करीब 70 पोस्टर प्रजेंटेशन के माध्यम से जानकारी दी। सत्र के दौरान विद्यार्थी सुष्मिता देव, सौरव, ममता, जसवीर सिंह आदि ने विभिन्न विषयों पर प्रजेंटेशन देकर अपनी प्रतिभा का परिचय दिया।

कार्यक्रम के संयोजक प्रो. नरसी राम बिश्नोई ने कहा कि इस संगोष्ठी के माध्यम से वैज्ञानिकों, शोधार्थियों को पर्यावरण एवं जलवायु प्रदूषण जैसे ज्वलंतशील मुद्दों पर अपने विचारों को आदान-प्रदान करने का अवसर मिला। संयोजक आशा गुप्ता ने बताया कि पिछले दो दशकों से जलवायु परिवर्तन से हो रहे दुष्परिणामों का सामना करना पड़ रहा है, इसलिए हमें ऐसी कांफ्रेस के माध्यम से दिए गए सुझावों पर अमल कर इनका समाधान करना होगा। मंच संचालन नेहा ने किया। इस अवसर पर निशा मुदिल, निशा सेठी नेहा सैनी, मुकेश कुमार, जयपाल, पुष्पा, दीपक यादव, श्वेता, सुभाष, सलोनी, संगीता, नीतिश, सुनीता आदि उपस्थित रहे।


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