कोरोना काल में बढ़ रहा इंडोर पौधों का महत्व, घरों से लेकर अस्पताल तक में सहेजी जा रही हरियाली
प्राकृतिक आक्सीजन का स्त्रोत ये पेड़-पौधे अगर न हो तो जीवन भी संभव न हो। मगर जब-तब इंसान इस हकीकत को भूलता है तो प्रकृति भी उसे यह याद दिला देती है। अब कोरोना काल में पेड़-पौधों का मर्म भी खूब समझ आया। पेड़-पौधों से इंसानी नजदीकी बढ़ रही है
जागरण संवाददाता, बहादुरगढ़ : यूं तो मानव जीवन पेड़-पौधों पर ही टिका है। प्राकृतिक आक्सीजन का स्त्रोत ये पेड़-पौधे अगर न हो तो जीवन भी संभव न हो। मगर जब-तब इंसान इस हकीकत को भूलता है तो प्रकृति भी उसे यह याद दिला देती है। अब कोरोना काल में पेड़-पौधों का मर्म भी खूब समझ आया। खासकर ऐसे पेड़-पौधों से इंसानी नजदीकी बढ़ रही है, जो आक्सीजन का भंडार होते हैं।
नतीजा यह है कि घर को या आफिस या फिर अस्पताल सभी जगहों पर ऐसे पौधों को भवनों की चारदीवारी के अंदर सहेजा जा रहा है, जो हवा काे इंसान के लिए शुद्ध बनाते हैं। दिल्ली से सटे शहरों में जहां खाली जमीनें सिकुड़ रही हैं अौर उन पर बनी हरियाली गायब हो रही है, वहां पर अब हरियाली काे दूसरे रूप में सहेजने की जरूरत आन पड़ी है। ऐसे में शहरों में बहादुरगढ़ भी शामिल है।
यहां पर बने 200 बिस्तरों के सरकारी अस्पताल में कुछ दिनों पहले तक किसी अधिकारी के कमरे, गैलरी, कर्मचारियों के सीटिंग एरिया में कहीं पौधे नहीं दिखते थे, मगर अब कदम-कदम पर ऐसे इंडाेर पौधे नजर आ रहे हैं, जिनका हवा को शुद्ध करने में अहम याेगदान रहता है। यहां पर कर्मचारी अब हरियाली के साये में काम करते दिखते हैं। डाक्टर भी मानते हैं कि आसपास में हरियाली हो तो उसका तन-मन पर सकारात्मक असर पड़ता है। हवा को शुद्ध करने के ही लिए तो पौधे होते ही हैं।
अस्पताल में तो ऐसे पौधों की जरूरत और भी ज्यादा है क्योंकि वहां पर तो तरह-तरह के मरीजों की आवाजाही से हवा में न जाने कितने तरह के संक्रमण तैरने लगते हैं। प्रकृति प्रेमी एवं शिक्षाविद्ध डा. आशा शर्मा कहती हैं कि प्रकृृति को बचाए रखना और उसे सहेजना आज सबसे ज्यादा जरूरी है। पर्यावरण जब स्वच्छ होगा तभी हम बीमारियों और महामारियों से बच सकेंगे।