मतदान करने में सामान्य वर्ग से भी आगे अनुसूचित वर्ग, मगर राजनीति में कम भागीदारी
प्रदेश की कुल आबादी में 20 फीसद एससी मतदाताओं का बड़ा वोट बैंक है और गत तीन आम चुनावों से प्रदेश के अनुसूचित मतदाताओं की चुनावों में भागीदारी सामान्य वर्ग से अधिक रही है
हांसी/हिसार [मनप्रीत सिंह] सूबे में आबादी के लिहाज से अधिक होने के बावजूद अनुसूचित की राजनीतिक भागीदारी बेहद कम है। लोकसभा चुनाव हों या विधानसभा इस समुदाय के प्रतिनिधि सुरक्षित सीटों से ही चुने गए। हालांकि प्रदेश की कुल आबादी में 20 फीसद एससी मतदाताओं का बड़ा वोट बैंक है और गत तीन आम चुनावों से प्रदेश के अनुसूचित मतदाताओं की चुनावों में भागीदारी सामान्य वर्ग से अधिक रही है। 2014 के आम चुनावों में सामान्य वर्ग का मतदान 71 फीसद था वहीं एससी वर्ग का मतदान 75 फीसद रहा था।
हरियाणा गठन के बाद प्रदेश के पहले उप मुख्यमंत्री की गद्दी अनुसूचित नेता चौधरी चांदराम को मिली थी। चांद राम 1977 तक सक्रिय रहे व कई आन्दोलन किए। लेकिन पिछले 25 सालों की प्रदेश की राजनीति में धरातल से निकला राष्ट्रीय स्तर का कोई बड़ा अनुसूचित नेता भी नहीं उभरा है। 1967 से लेकर अभी तक प्रदेश में सबसे अधिक 14 सांसद एससी वर्ग के सांसद कांग्रेस पार्टी की टिकट पर जीते हैं।
उत्तर भारत में पंजाब, यूपी व हरियाणा ये तीन ऐसे राज्य हैं जहां अनुसूचितों की आबादी 20 फीसद से अधिक है और सत्ता के निर्धारण में अनुसूचितों का वोट बैंक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। प्रदेश के एससी वर्ग के वोटर मतदान के मामले में दोनों ही राज्यों से कहीं आगे हैं।
हरियाणा में कभी मुखर नहीं हुआ अनुसूचित आन्दोलन
प्रदेश के राजनीतिक इतिहास पर गौर करे तो अब तक के सबसे बड़े अनुसूचित नेता पहले उप मुख्यमंत्री चांद राम हुए हैं। उन्होंने 1975 के दौर में बंसीलाल की सरकार के खिलाफ झज्जर में अनुसूचितों से जमीन छीने जाने पर आन्दोलन किया था। इस आन्दोलन की चिंगारी प्रदेश भर में फैली थी। लेकिन इसके बाद प्रदेश में कोई बड़ा अनुसूचित आन्दोलन नहीं हुआ व इस वर्ग से जो सांसद व विधायक वो केवल अपनी पार्टी के दायते तक सीमित रहे। प्रदेश में अब तक हुए जातिय हिंसा के मामलों को उठाने में हांसी निवासी अनुसूचित एक्टिविस्ट व अधिवक्ता रजत कल्सन व उनके पिता रिखिराम कल्सन की अहम भूमिका रही।
सामान्य सीट से आज तक नहीं बना अनुसूचित वर्ग का सांसद
अनुसूचितों के 20 फीसद वोटों की हिस्सेदारी वाले प्रदेश में प्रदेश की 10 सामान्य सीटों पर कभी कोई एससी वर्ग का उम्मीदवार सफल नहीं हो पाया। यहां तक की अनुसूचितों की राजनीति करने का दावा करने वाली मुख्यधारा की राजनीतिक पार्टियों ने भी केवल आरक्षित सीटों से ही एससी वर्ग के उम्मीदवारों को मौके दिए। सामान्य सीटों पर जो भी अनुसूचित वर्ग से निर्दलीय उम्मीदवार मैदान में उतरे उन्हें मुंह की खानी पड़ी है।
प्रदेश में सोशल इंजीनियरिंग के फार्मूले फेल
बसपा पार्टी ने प्रदेश की राजनीति में अपनी पैठ बनाने के लिए 1998 में पार्टी ने इनेलो के साथ लोकसभा चुनावों एक साथ लड़े व इनेलो ने पांच सींटे जीती जबकि बसपा केवल रिजर्व सीट पर ही जीत हासिल कर पाई। चुनाव होते ही यह बेमेल गठबंधन टूट गया। इसके बाद बीते वर्ष 2019 के आमचुनावों के लिए फिर इनेलो व बसपा एक साथ आए लेकिन कुछ महीने में ही ये गठबंधन धराशाई हो गया।
अनुसूचितों के खिलाफ नहीं थमी जातीय हिंसा
प्रदेश में अनुसूचितों के खिलाफ जातीय हिंसा साल दर साल बढ़ी है। एनसीआर की आंकड़े बताते हैं कि प्रदेश में 2016 की तुलना में 2017 में 30 फीसद अधिक एससी एसटी एक्ट के मुकदमें दर्ज हुए। 2012 में कांग्रेस शासन काल में अनुसूचित महिलाओं के खिलाफ दुष्कर्म के एक ही वर्ष में रिकार्ड 25 मामले दर्ज किए गए। हिसार के भगाना गांव के अनुसूचित पिछले कई सालों से जातीय उत्पीडऩ के चलते हिसार में धरने पर बैठे हैं। वहीं 2010 में हिसार के ही मिर्चपुर गांव में भी सवर्णों ने अनुसूचितों की पूरी बस्ती में आग लगा दी। इसके अलावा 2007 का गोहाना कांड हुई जिसमें 55-60 अनुसूचितों के घरों को जला दिया गया। इसके अलावा हरसोल, दुलिना, सागा कांड, मदीना व पबनामा आदि घटनाएं हुई जिससे साफ पता चलता है कि प्रदेश में एससी वर्ग के उत्पीडऩ रुका नहीं हैं।
प्रदेश की अनुसूचित राजनीति के खास चेहरे
चौ. चांद राम
अनुसूचित राजनीति के मुख्य चेहरों में सबसे बड़ा नाम प्रदेश के पहले उप मुख्यमंत्री रहे स्व. चौ. चांद राम का आता है। संयुक्त पंजाब के समय से ही वह कांग्रेस पार्टी जुड़े थे व डॉ आम्बेडकर के बेहद करीबी रहे थे। हरियाणा प्रदेश की स्थापना में भी इनका अहम योगदान रहा। 1974 के बाद वह चौ. देवीलाल की हरियाणा जनता पार्टी से जुड़े गए। 2015 में उनका देहांत हो गया।
चौधरी दलबीर सिंह
चौ. दलबीर सिंह का जन्म प्रभुवाला में एक किसान मजदूर परिवार में हुआ था। शुरुआत से ही कांग्रेस की विचारधारा से प्रभावित थे व शुरुआत दिनों में सरकारी नौकरी। 1967 में सिरसा की आरक्षित सीट पर कांग्रेस की टिकट से जीतकर चौधरी दलबीर सिंह सांसद बने। एससी वर्ग की राजनीति की व चार बार सिरसा की सीट से ही लोकसभा पहुंचे व केंद्रीय मंत्री भी बने। वह ताउम्र कांग्रेस पार्टी में रहे लेकिन सिरसा की आरक्षित सीट से बाहर कभी चुनाव नहीं लड़ा। इसके बाद उनकी पुत्री कुमारी शैलजा ने अपने पिता की राजनीति को आगे बढ़ाया।
सूरजभान
7वें लोकसभा चुनावों में भाजपा पार्टी को देश में केवल दो सीटें मिली थी। जिसमें से एक सीट हरियाणा के अनुसूचित नेता सुरजभान ने अंबाला से जीती थी। उन्होंने पूरा जीवन बीजेपी की राजनीति की और चार बार अंबाला से सांसद बने व एक बार विधानसभा चुनाव जीतकर मंत्री बने। 2000 में उन्हें हिमाचल प्रदेश का गवर्नर नियुक्ति किया गया था।
कुमारी शैलजा
कुमारी शैलजा ने महिला कांग्रेस से राजनीतिक करियर की शुरुआत की और पहली बार 1991 में सिरसा की आरक्षित सीट से जीतकर केंद्र सरकार में मंत्री बनी। इस सीट पर उनके पिता चौ. दलबीर सिंह चार बार सांसद रह चुके थे। वर्तमान में राज्यसभा सांसद कुमारी शैलजा चार बार सांसद व दो बार केंद्रीय मंत्री रही। राजनीति उन्हें अपने पिता दलबीर सिंह से विरासत में मिली। लेकिन प्रदेश में अनुसूचितों की आवाज उठाने के मामले में वह बहुत कम नजर आती है। प्रदेश की राजनीति के बजाए केंद्रीय राजनीति में अधिक सक्रिय रही हैं।
अशोक तंवर
कांग्रसे पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष अशोक तंवर ने तंवर ने यूथ कांग्रेस से राजनीति की शुरुआत की थी। सिरसा लोकसभा सीट से एक बार 2009 में जीतकर संसद पहुंचे। इनके नेतृत्व में दो बार एनएसयूआई ने डीयू में जीत दर्ज की। यह प्रदेश में अनुसूचित राजनीति के एक युवा चेहरा हैं। तंवर पर कांग्रेस पार्टी की गुटबाजी में शामिल होने के आरोप लगते रहे हैं।
हरियाणा प्रदेश में पिछले 3 आम चुनावों में एससी व सामान्य वर्ग के मतदान में अंतर
वर्ष सामान्य वर्ग एससी वर्ग अंतर
2014 71 75 4
2009 66.35 71.79 5.44
2004 64.71 69.83 5.12
2014 के आम चुनावों में केवल 5 राज्यों में एससी वर्ग की मतदान में भागीदारी सामान्य से अधिक
राज्य सामान्य वर्ग(फीसद) एससी वर्ग(फीसद)
आंध्रप्रदेश 74 77
हरियाणा 71 75
महाराष्ट्र 59 61
ओडिशा 72 75
तमिलनाडू 73 76
सामान्य वर्ग की महिला मतदाता(फीसद) एससी महिला मतदाता (फीसद)
2009 64 71
2004 61 67
2014 68 73