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शरीर में आयरन और खून की कमी को पूरा करेगा एचएयू का बाजरा

राशन की दुकानों और मिड डे मील जैसी सार्वजनिक वितरण योजनाओं में ज्वार, बाजरा और रागी जैसे छोटे दाने वाले अनाज वितरित करने की तैयारी कर रही सरकार के साथ-साथ किसानों के लिए यह भी किस्म बेहद लाभदायक साबित होगी।

By JagranEdited By: Published: Wed, 04 Apr 2018 02:15 PM (IST)Updated: Wed, 04 Apr 2018 02:15 PM (IST)
शरीर में आयरन और खून की कमी को पूरा करेगा एचएयू का बाजरा
शरीर में आयरन और खून की कमी को पूरा करेगा एचएयू का बाजरा

संदीप बिश्नोई, हिसार

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बाजरे को सार्वजनिक वितरण प्रणाली में शामिल करने की योजना बना रही सरकार को हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने बड़ा तोहफा दिया है। विश्वविद्यालय ने बाजरे की एक ऐसी किस्म विकसित करने में सफलता हासिल की है, जिसमें आयरन की मात्रा साधारण बाजरे से कहीं अधिक है। जिसके कारण यह बाजरा (एचएचबी 311 किस्म) मनुष्य के शरीर में रक्त की कमी को दूर करने में बेहद प्रभावशाली साबित होगा।

राशन की दुकानों और मिड डे मील जैसी सार्वजनिक वितरण योजनाओं में ज्वार, बाजरा और रागी जैसे छोटे दाने वाले अनाज वितरित करने की तैयारी कर रही सरकार के साथ-साथ किसानों के लिए यह भी किस्म बेहद लाभदायक साबित होगी। इस बाजरे के वितरण से देश के उन लोगों को फायदा होगा, जिनमें लौह तत्व या एनीमिया की कमी है। इससे सरकार के लौह तत्व की कमी को पूरा करने के लिए होने वाले भारी-भरकम खर्च से छुटकारा पाने में मदद मिलेगी। बाजरे की इस किस्म को हाल ही में जोधपुर में बाजरे की फसल को लेकर हुई 53वीं राष्ट्रीय वार्षिक समूह बैठक में चिन्हित किया गया है। 83 पीपीएम है लोहे की मात्रा -

अनुसंधान निदेशक डा. एसके सहरावत ने बताया कि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित की गई बाजरे की इस एचएचबी 311 किस्म में लोहे की मात्रा 83 पीपीएम (पा‌र्ट्स पर मिलियन) तक है। जबकि साधारण बाजरे में यह 50 से 60 पीपीएम तक ही होता है। हालांकि इससे पहले जनवरी में एचएयू ने देश की पहली हाई फोर्टिफाइड किस्म एचएचबी 299 को जारी किया था, जिसमें लोहे की मात्रा 73 पीपीएम तक थी। एचएचबी 311 किस्म दूसरी ऐसी हाई फोर्टिफाइड किस्म है। इसके बाजरे में लोहे की 83 पीपीएम की मात्रा अब तक की बाजरे में सबसे अधिक है। 16 क्विंटल है प्रति एकड़ उत्पादन -

विभाग के अध्यक्ष डा. एसके पाहुजा के अनुसार यह किस्म ¨सचाई वाले क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है और इसके लिए कम से कम तीन पानी की आवश्यकता होगी। इसकी फसल 75 से 80 दिन में पककर तैयार हो जाती है और इसका उत्पादन 16 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है। यह किस्म विवि के वैज्ञानिक डा. रमेश कुमार, डा. देवव्रत यादव, अनिल कुमार, एलके चुघ, नरेंद्र ¨सह, कुशल राज और आईसीआरआईएसएटी के वैज्ञानिक डा. गो¨वदाराज और आनंद कानाटी ने विकसित की है। बाजरा अनुभाग को मिला सर्वश्रेष्ठ केंद्र का अवॉर्ड -

विश्वविद्याल के आनुवांशिकी एवं पौध प्रजनन विभाग के बाजरा अनुभाग को जोधपुर में बाजरे पर हुई 53वीं राष्ट्रीय वार्षिक समुह की बैठक में पिछले पांच वर्षों में सर्वश्रेष्ठ कार्य करने के लिए उत्कृष्ट केंद्र का अवॉर्ड भी मिला है। विश्वविद्यालय को 2015 में पिछले 50 वर्षों के काम के आधार पर भी बेस्ट सेंटर का अवॉर्ड मिल चुका है। हाल ही विकसित एचएचबी 311 किस्म विभाग द्वारा विकसित की गई बाजरे की 21वीं किस्म है। हमारा विश्वविद्यालय और वैज्ञानिक किसानों के लिए लगातार बेहतर करने के लिए लगे हुए हैं। वैज्ञानिक इस तरह के कई अन्य प्रोजेक्टस पर भी काम कर रहे हैं, जिनके बेहद सकारात्मक परिणाम निकट भविष्य में जल्दी ही दिखाई देंगे। उत्कृष्ट केंद्र के अवॉर्ड के लिए सभी वैज्ञानिकों को बधाई।

- प्रो. केपी ¨सह, कुलपति, एचएयू, हिसार।


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