एचएयू विज्ञानियों ने खोजी मटर की ज्यादा रोगप्रतिरोधक क्षमता वाली किस्म, 40 क्विंटल पैदावार
इस मटर की फसल लगभग 123 दिन में तैयार हो जाती है। पंजाब हरियाणा दिल्ली सहित अन्य राज्यों में अच्छी पैदावार देगी। इसकी औसत पैदावार 26-28 क्विंटल प्रति हेक्टेयर आंकी गई है। फलियां भी लगने के बाद गिरती नहीं हैं।
हिसार, जेएनएन। चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कृषि विज्ञानियों ने इस वर्ष दाना मटर की नई रोग प्रतिरोधी किस्म एचएफपी-1428 विकिसत कर एक और उपलब्धि को विश्वविद्यालय के नाम किया है। दाना मटर की इस किस्म को विश्वविद्यालय के अनुवांशिकी एवं पौध प्रजनन विभाग के दलहन अनुभाग द्वारा विकसित किया गया है।
विश्वविद्यालय द्वारा विकसित इस किस्म को भारत सरकार के कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के कृषि एवं सहयोग विभाग की फसल मानक, अधिसूचना एवं अनुमोदन केंद्रीय उप-समिति द्वारा जारी भी कर दिया गया है। कुलपति प्रोफेसर समर सिंह ने वैज्ञानियों को बधाई देते हुए बताया कि इससे पूर्व विश्वविद्यालय के कृषि वैज्ञानिकों द्वारा दाना मटर की अपर्णा, जयंती, उत्तरा, एच.एफ.पी.-9426, हरियल, एच.एफ.पी.-529 व एच.एफ.पी.-715 किस्में विकसित की जा चुकी हैं।
इन राज्यों के लिए की गई है सिफारिश
रबी में बोई जाने वाली दाना मटर की एच.एफ.पी.-1428 किस्म को भारत के उत्तर-पश्चिम मैदानी इलाकों के सिंचित क्षेत्रों में काश्त के लिए अनुमोदित किया गया है जिसमे जम्मू और कश्मीर के मैदानी भाग, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान, पश्चिमी उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड राज्य शामिल हैं।
कम अवधि में पककर तैयार होती है किस्म
विश्वविद्यालय के अनुसंधान निदेशक डा. एसके सहरावत ने बताया कि रबी में सिंचित क्षेत्रों में काश्त की जाने वाली दाना मटर की इस किस्म की खासियत यह है कि इसकी फसल कम अवधि (लगभग 123 दिन) में पककर तैयार हो जाती है। यह हरे पत्रक एवं सफेद फूलों वाली बौनी किस्म है व इसके दाने पीले-सफेद (क्रीम) रंग के मध्यम आकार व थोड़ी झुर्रियों एवं हल्के बेलनाकार होते हैं। इसके पौधे सीधे बढऩे वाले होते हैं इसलिए फलियां लगने के बाद गिरती नहीं हैं। जिससे इसकी उत्पादकता नहीं घटती एवं कटाई भी आसान हो जाती है।
यह भी खासियत
इस किस्म की एक और खासियत यह है कि इसकी जड़ों में नाइट्रोजन स्थापित करने वाली गांठें और नाइट्रोजीनेस गतिविधि बहुत अधिक होती है। इस कारण इसकी पर्यावरण से नाइट्रोजन स्थापित करने की क्षमता अत्यधिक है। यह इसके बाद ली जाने वाली फसलों के लिए भी लाभदायक है। इसकी औसत पैदावार 26-28 क्विंटल प्रति हेक्टेयर एवं अधिकतम पैदावार 40 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक आंकी गई है।
रतुआ का प्रकोप भी कम
यह किस्म सफ़ेद चूर्णी, एस्कोकायटा ब्लाइट व जड़ गलन जैसे रोगों की प्रतिरोधी है एवं इसमें रतुआ का प्रकोप भी कम होता है। इसके अतिरिक्त दाना मटर की इस किस्म में एफिड जैसे रस चूसक कीट एवं फली छेदक कीटों का प्रभाव भी पहले वाली किस्मों की तुलना में बहुत कम होगा।
इन विज्ञानियों की मेहनत लाई रंग
दाना मटर की एचएफपी-1428 किस्म विश्वविद्यालय के दलहन अनुभाग के कृषि वैज्ञानिक डा. राजेश यादव के नेतृत्व में, डा. रविका, डा. नरेश कुमार और डा. एके छाबड़ा द्वारा विकसित की गई है। इस उपलब्धि को प्राप्त करने में डा. रामधन जाट, डा. तरुण वर्मा एवं डा. प्रोमिल कपूर का भी विशेष योगदान रहा है।