शोध : पांच साल में नहीं, नर्सरी अवस्था में ही जानें खजूर का पौधा नर है या मादा
खजूर नर है या मादा पौधा है इसकी पहचान चार से पांच साल बाद हो पाती थी परंतु (स्कार मारकर) से नर्सरी अवस्था में ही इसका पता किया जा सकेगा। शोध पेटेंट हुआ है विश्वभर में इसका फायदा होगा
जेएनएन, हिसार। चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा खजूर के नर एवं मादा पौधों की पहचान करने के लिए विकसित तकनीक को भारत सरकार के पेटैंट ऑफिस द्वारा पेटैंट प्रदान किया गया है। यह जानकारी आज यहां विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. केपी सिंह ने दी।
प्रो. सिंह ने बताया कि खजूर में नर एवं मादा पौधे अलग-अलग होते हैं जिनकी बीज से अंकुरित होने के चार से पांच साल बाद, जब उन पर पहली बार फूल खिलते हैं, पहचान हो पाती है। परंतु उक्त तकनीक (स्कार मारकर) से खजूर के नर और मादा पौधों की पहचान अब फूल खिलने की अवस्था की अपेक्षा नर्सरी अवस्था पर ही की जा सकेगी।
एक नर पौधा 50 से 60 मादा पौधों को देता है परागकण
कुलपति ने कहा कि यह तकनीक विश्वभर के खजूर उत्पादकों के लिए उपयोगी होगी क्योंकि एक नर पौधा 50 से 60 मादा पौधों को परागकण देने के लिए पर्याप्त रहता है। उनके अनुसार यह अब तक इस विश्वविद्यालय को प्रदान किया गया 16वां पेटैंट है, जबकि इसके द्वारा यहां विकसित की गई 43 तकनीकों को पेटैंट कराने के लिए आवेदन किया गया है।
भारत में यहां खूजर की खेती
उन्होंने बताया देश में खजूर की खेती राजस्थान, गुजरात व अन्य शुष्क क्षेत्रों में होती है। उपरोक्त तकनीक खजूर उत्पादक किसानों के लिए बहुत लाभकारी साबित होगी क्योंकि इस तकनीक से समय, जमीन, लागत एवं मेहनत सभी क्षेत्रों में लाभ होगा। इस तकनीक को प्रो. पुष्पा खरब जोकि वर्तमान में विश्वविद्यालय के मोलीक्यूलर बायोलोजी, बायोटेक्रोलोजी एडं बायो इन्फरमैटिकस विभाग की अध्यक्ष हैं, उन्होंने भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा प्रदान की गई परियोजना के तहत विकसित किया है। इस तकनीक के विकास में उनकी पीएचडी की छात्रा चारू मिश्रा ने भी कार्य किया है।
बीज उगाने पर नर और मादा पौधे का अनुपात होता है बराबर
प्रो. खरब ने बताया कि बीज से उगाए जाने पर नर एवं मादा पौधों का अनुपात लगभग बराबर होता है। क्योंकि फल केवल मादा पौधे पर लगते हैं, जबकि नर पौधों की आवश्यकता केवल परागकण देने के लिए होती है, इसलिए मादा पौधे अधिक संख्या में उगाने की जरूरत होती है। इस उपलब्धि पर खुशी जताते हुए विश्वविद्यालय के अनुसंधान निदेशक डॉ. एसके सहरावत और मौलिक विज्ञान एवं मानविकी महाविद्यालय के अधिष्ठाता डॉ. राजवीर सिंह ने दावा किया है कि खजूर में लिंग की नर्सरी स्तर पर पहचान करने की यह विश्व में पहली तकनीक है।