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अब किसान कमा सकेंगे दोहरा मुनाफा, धान की फसल में कर सकेंगे आलू की बिजाई, एचएयू ने खोजी तकनीक

धान के खेत को तुरंत खाली कर किसान उसमें आलू की खेती करते थे। पराली प्रबंधन की एक साथ खेती करने की इन-सीटू अवशेष प्रबंधन तकनीक को अपनाकर किसान एक ओर जहां फसल विविधिकरण को अपना सकेंगे तो दूसरी ओर भूमि की उर्वरा शक्ति भी कायम रहेगी।

By Manoj KumarEdited By: Published: Fri, 04 Dec 2020 11:30 AM (IST)Updated: Fri, 04 Dec 2020 11:30 AM (IST)
अब किसान कमा सकेंगे दोहरा मुनाफा, धान की फसल में कर सकेंगे आलू की बिजाई, एचएयू ने खोजी तकनीक
अब आलू की खेती करने के लिए किसानों को धान की फसल कटने का इंतजार नहीं करना पड़ेगा

हिसार, जेएनएन। प्रदेश में उन्नत कृषि को लेकर कई प्रयोग किए जा रहे है। इसी उद्देश्य को लेकर अब किसान धान की फसल वाले खेत में आलू की बिजाई कर सकेंगे। चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने धान की पराली के प्रबंधन का इन-सीटू अवशेष प्रबंधन तकनीक से हल निकाला है, जिसके प्रयोग से अब पराली को बिना जलाए व खेत के अंदर ही प्रयोग कर आलू की बिजाई की जा सकेगी। इस पराली प्रबंधन तकनीक को हाल ही में अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान प्रोजेक्ट (आलू) की वार्षिक वर्कशॉप में स्वीकृति मिल चुकी है। यह वर्कशॉप केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान, शिमला के निदेशक डा. मनोज कुमार की अध्यक्षता में शिमला में आयोजित हुई थी। इस तकनीक को उन क्षेत्रों के लिए सिफारिश किया गया है जहां किसान धान की फसल के बाद आलू की बिजाई करते हैं।

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सकारात्मक परिणाम आने पर किसानों के लिए की सिफारिश

पराली प्रबंधन की इन-सीटू अवशेष प्रबंधन तकनीक पर कृषि महाविद्यालय के सब्जी विज्ञान विभाग के अध्यक्ष डॉ. अरूण कुमार भाटिया के नेतृत्व में डा. विजय पाल पंघाल, डा. लीला बोरा व क्षेत्रीय अनुसंधान संस्थान उचानी(करनाल) से डा. धर्मबीर यादव के सहयोग से अनुसंधान किया गया। इस तकनीक के लिए लगातार दो वर्ष तक उचानी में ट्रायल लगाए गए और उसके बाद सकारात्मक परिणाम आने के बाद किसानों के लिए सिफारिश किया गया।

किसानों को ये आ रही थी मुख्य समस्या

पराली की कटाई की समस्या व फसल अवशेषों के पारंपरिक उपयोग की कमी के कारण आज किसान समस्याओं का सामना कर रहा। उन्होंने बताया कि अक्तूबर माह में ही धान की कटाई होती है और इसी माह में आलू की बिजाई की जाती है। ऐसे में धान के खेत को तुरंत खाली कर किसान उसमें आलू की खेती करते हैं, जिसके लिए उन्हें खेत को खाली करना पड़ता है। इसी के चलते ऐसी तकनीक विकसित करना जरूरी था जिस से किसानों को इस समस्या से निजात मिल सके।

बनी रहेगी भूमि की उर्वरा शक्ति

पराली प्रबंधन की इस इन-सीटू अवशेष प्रबंधन तकनीक को अपनाकर किसान एक ओर जहां फसल विविधिकरण को अपना सकेंगे तो दूसरी ओर भूमि की उर्वरा शक्ति भी कायम रहेगी। फसल अवशेष जलाने से पर्यावरण प्रदुषण के साथ-साथ भूमि व जन-जीवन के स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव पड़ते हैं। ऐसे में किसान आलू लगाकर फसल चक्र अपनाते हुए भूमि की उर्वरा शक्ति को बनाए रखेंगे और जमीन भी अगली फसल की बिजाई तक खाली नहीं रखनी पड़ेगी।

ऐसे कर सकते हैं किसान इस तकनीक का प्रयोग

धान की फसल की कटाई के बाद और आलू बोने से पहले धान की फसल के अवशेषों को अच्छी तरह से ट्रेक्टर चालित पैडी स्ट्रा चॉपर एवं सह स्प्रेडर के साथ खेत में फैला देना चाहिए। फिर 50 किलोग्राम यूरिया प्रति हेक्टेयर के छिडक़ाव के बाद 500 लीटर प्रति हेक्टेयर डीकंपोजर और 500 लीटर प्रति हेक्टेयर गोबर घोल का छिडक़ाव करें। इसके बाद डिस्क हैरो और रोटावेटर की सहायता से जुताई करते हुए पूरे खेत में मिला देना चाहिए। साथ ही विश्वविद्यालय की समग्र सिफारिशों का प्रयोग करते हुए आलू की बिजाई करनी चाहिए और अन्य आवश्यक पैकेजों का पालन करना चाहिए।

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यह अवशेष प्रबंधन तकनीक उन क्षेत्रों के किसानों के लिए अधिक कारगर साबित हो सकती है जहां किसान धान की फसल के तुरंत बाद आलू की बिजाई करते हैं। इससे फसल चक्र को भी मदद मिलेगी और भूमि की उर्वरा शक्ति भी कायम रहेगी। साथ ही पर्यावरण प्रदुषण से भी निजात मिलेगी। विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों का पराली प्रबंधन को लेकर यह प्रयास काफी सराहनीय है।

--------प्रो समर सिंह, कुलपति, एचएयू


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