नई कृषि तकनीक से देश में ऐसे अव्वल बना हरियाणा, 177 लाख टन के पार खाद्यान्न उत्पादन
एचएयू की किस्मों की बदौलत हरियाणा बाजरे व सरसों में प्रति एकड़ सर्वाधिक उत्पादकता वाला प्रदेश है। देश का 60 फीसद बासमती चावल हरियाणा से निर्यात होता है। एचएयू को 16 पेटेंट मिले हैं
हिसार [संदीप बिश्नोई] जब हरियाणा बना था तो 1966-67 में हरियाणा का खाद्यान्न उत्पादन 25.92 लाख टन था। बहुत कम क्षेत्र में खेती होती थी। आज खाद्यान्न उत्पादन का आंकड़ा 177 लाख टन के पार हो गया है। किसानों ने बेजोड़ मेहनत कर यह मुकाम पाया है इसमें कोई संदेह नहीं। मगर 1970 में स्थापित चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय द्वारा किसानों को दी गई तकनीक व किस्मों के कारण भी हरियाणा का आधा हिस्सा रेत के धोरों से हरित प्रदेश में तब्दील हो गया।
एचएयू द्वारा दी गई किस्मों की बदौलत ही आज हमारा हरियाणा बाजरे और सरसों में प्रति एकड़ सर्वाधिक उत्पादकता देने वाला प्रदेश है। देश का 60 फीसद बासमती चावल हरियाणा द्वारा निर्यात किया जाता है। एचएयू से निकले विद्यार्थी देश के कृषि संस्थानों के अलावा दूसरे देशों आस्ट्रेलिया, इंग्लैंड, अमेरिका आदि विश्वविद्यालयों में भी बतौर वैज्ञानिक अपनी सेवाएं दे रहे हैं। यही नहीं, इस विश्वविद्यालय से निकले विद्यार्थी बड़ी संख्या में सेना में मेजर जनरल रैंक तक के अधिकारी, आइएएस, एचसीएस के अलावा नेता भी बन चुके हैं। एचएयू अब अपने स्वर्ण जयंती वर्ष में प्रवेश कर गई है। आइए जानें इसके निर्माण से लेकर उत्थान होने तक की कहानी।
ये नेता भी एचएयू से कर चुके पढ़ाई
केंद्रीय मंत्री - संजीव बाल्यान
पूर्व एमएलए - देवेंद्र शौकीन
पूर्व मंत्री - रघुबीर कादयान
पूर्व मंत्री - सुखबीर कटारिया
एमएलए - औमप्रकाश यादव
विपक्ष के नेता - अभय चौटाला
अटेली के एमएलए - नरेश यादव
सीपीआइएम नेता - कामरेड इंद्रजीत
ये उपलब्धियां एचएचू के नाम
- एचएयू की स्थापना - सन 1970 (हालांकि एग्रीकल्चर कालेज 1962 में ही बन गया था), अब 6483 एकड़ में फैली (केवीके में भी 1451 एकड़)
- एचएयू ने किस्में विकसित की - 235 (जिनमें गेहूं की 20, धान की 9, मक्का की 15, कपास की 22, चारा फसलों की 32 किस्में, आदि )
- एचएयू को मिले 16 पेंटेंट - स्थापना के बाद एचएयू ने शोध करके 16 पैटेंट हासिल किए। अब भी 41 पेटेंट फाइल किए हुए हैं।
- एचएयू के कृषि विज्ञान केंद्र - प्रदेश के अलग-अलग क्षेत्रों 19 कृषि विज्ञान केंद्र, जो किसानों की बेहतरी के काम करते हैं।
- एचएयू में अब तक 11302 ग्रेजुएट और 6553 विद्यार्थी पोस्ट ग्रेजुएट कर चुके हैं। 6000 से अधिक विदेशी विद्यार्थी भी यहां से शिक्षा ग्रहण कर चुके हैं। - एचएयू 53 टेक्नोलॉजी कॉमर्शियलाइज कर चुकी है।
- 274 पब्लिक व प्राइवेट संस्थानों से 520 एमओयू हो चुके। 6 देशों के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों से स्टूडेंट एक्सचेंज सहित अन्य प्रोग्राम शुरू किए।
ऐसी बनी थी एचएयू, ऐसे होते गए बदलाव
1948 - आजादी के बाद पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी से संबद्ध लाहौर में स्थित वेटरिनरी कालेज को हिसार स्थानांतरित किया गया था। शुरुआती दिनों में गवर्नमेंट पीजी कालेज में वेटरनरी की कक्षाएं लगी थी। इसके बाद यहां वेटरिनरी कालेज का निर्माण हुआ।
1962 - वेटरनरी कालेज के साथ ही पंजाब के हरियाणा वाले हिस्से के कृषि विकास के लिए यहां पर कालेज ऑफ एग्रीकल्चर बनाया गया।
1964 - यहां बेसिक साइंस कालेज की स्थापना की गई।
1966 - कालेज ऑफ एनीमल साइंस की स्थापना हुई।
1970 - 2 फरवरी को इन कालेजों को मिलाकर हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय की स्थापना की गई।
1972 - एचएयू में कालेज ऑफ स्पोट्र्स बनाया गया, जो सन 2000 में बंद हो गया।
1973 - आइसी कॉलेज ऑफ होम साइंस का निर्माण करवाया गया।
1974 - कैथल के कौल में एग्रीकल्चर कालेज की स्थापना।
1991 - एचएयू का नाम बदलकर चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय रखा गया।
1992 - कालेज ऑफ एग्रीकल्चर इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी की स्थापना।
2016 - रेवाड़ी के बावल में एग्रीकल्चर कालेज की स्थापना।
भारत सहित 6 देशों के वैज्ञानिक आज करेंगे मंथन
एचएयू में 2 फरवरी को स्थापना दिवस के अवसर पर आंत्रप्रिन्योरशिप: सतत कृषि की आवश्यकता विषय पर दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन होगा। जिससे सतत विकास के लिए मुख्य चुनौतियों, अवसरों और प्रमुख मुद्दों का पता लगाने में मदद मिलेगी। संगोष्ठी में देश-विदेश से करीब 700 प्रतिष्ठित वैज्ञानिक, नवप्रवर्तक, एग्रीप्रिन्योर, किसान और विद्यार्थी भाग लेंगे। संगोष्ठी में स्मार्ट खेती की तकनीक, ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के लिए नवीन तकनीकें, कृषि में आटोमेशन प्रौद्योगिकी, जियोमैपिंग और सेंसर डेटा, कटाई और खाद्य प्रसंस्करण में प्रोटोटाइप विकास, कृषि मशीनीकरण में नवाचार आदि कुल 10 विषयों पर तकनीकी सत्र आयोजित किए जाएंगे।