मोहन के मन में बसा ऐसा देश प्रेम, चीन की लाखों की फेलोशिप छोड़ लौटे वतन, बने शिक्षक
रोहतक के ककराना निवासी मनमोहन वशिष्ठ बीजिंग से गणित विषय में पोस्ट डॉक्टर फेलो प्रोग्राम कर रहे थे। लेकिन अब आइआइटी में अध्यापन से भारतीयों का गणित कौशल तराशेंगे। मनमोहन का कहना है कि बाहर देश की बजाय अपना टेलेंट लोगों को देश में लगाना चाहिए।
रोहतक [केएस मोबिन] मेरे पिता कहते हैं दूसरों के साथ ज्ञान साझा करने से खुद का ज्ञान बढ़ता है। इस सीख से प्रेरित होकर ही अध्यापन का रास्ता चुना। दुनियाभर में भारतवासियों का डंका है। लेकिन, विदेशों में काम रहे भारतीयों का स्वदेश से मोह भंग मन को खिन्न करता है। चीन में रिसर्च प्रोजेक्ट पर काम करते हुए जब वहीं पर जॉब का ऑफर आया तो तुरंत रिजेक्ट कर दिया। विभिन्न देशों से अर्जित ज्ञान को भारतीय के कौशल सुधार में लगाना चाहता हूं। यह कहना है 29 वर्षीय मनमोहन वशिष्ठ का। चीन से लाखों की फेलोशिप छोड़ वतन लौटे आए। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (आइआइटी) जम्मू में बतौर असिस्टेंट प्रोफेसर हाल ही में ज्वाइन किया है।
ककराना निवासी मनमोहन भारतवर्ष के उस ग्रामीण परिवेश की प्रतिभा के परिचायक भी हैं, जिन्होंने सही अवसर मिलने पर दुनिया के हर कोने में देश का नाम बुलंद किया है। गांव के सरकारी स्कूल से 10वीं की परीक्षा पास की। विज्ञान संकाय की सुविधा न होने पर गांव से 17 किलोमीटर दूर शहर के एक सरकारी स्कूल में 12वीं नॉन मेडिकल की बोर्ड परीक्षा पास की। मेरिट में आने से शहर के टॉप पंडित नेकीराम शर्मा राजकीय कालेज में बीएससी मैथेमेटिक्स ऑनर्स में दाखिला मिल गया। यहीं से उनके जीवन का दूसरा अध्याय शुरू हुआ। ग्रेजुएशन के बाद राष्ट्रीय स्तर की प्रवेश परीक्षा पास कर टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च (टीआइएफआर) के बेंगलुरु स्थित सेंटर फॉर अप्लीकेबल मैथेमेटिक्स में इंटीग्रेटेड पीएचडी प्रोग्राम में दाखिला लिया। बेहतरीन शोध कार्य से चीन में पोस्ट डॉक्टरल फेलो के लिए चयनित हुए।
एक्स-रे, सीटी स्कैन की समस्याओं पर चीन में कर रहे थे गणितीय शोध
टीआइएफआर के बेंगलुरु सेंटर से पीएचडी के बाद चीन के बीङ्क्षजग कंप्युटेशनल साइंस रिसर्च सेंटर (सीएसआरसी) के पोस्ट डॉक्टरल फेलो प्रोग्राम का हिस्सा बने। यहां गणित के उन सिद्धांतों पर शोध किया जोकि एक्स-रे, सीटी स्कैन, कॉस्मिक किरणें, मेडिकल इमेङ्क्षजग आदि में आने वाली समस्याओं के समाधान के लिए प्रयोग किए जाते हैं। उन्हें मेडिकल केयर, निशुल्क आवास के साथ ही प्रतिमाह एक लाख 10 हजार रुपये बतौर फेलोशिप मिलते थे। इस दौरान जापान, रूस, सिंगापुर, टर्की, यूएसए आदि देशों में होने वाली गणितीय सेमिनार और सभाओं में उन्हें लेक्चर के लिए बुलाया जाता रहा।
कालेज शिक्षक ने पहचानी प्रतिभा, बीएससी मैथेमेटिक्स के लिए किया प्रेरित
मनमोहन के शिक्षक व नेकीराम कालेज में असिस्टेंट प्रोफेसर डा. अमित सहगल बताते हैं कि मनमोहन ने बीएससी पास कोर्स (फिजिक्स, मैथ, इलेक्ट्रॉनिक्स) में दाखिला लिया था। गणित में उसकी बेहतरीन पकड़ थी। गणित विभागाध्यक्ष प्रो. रणबीर कादयान ने मनमोहन की प्रतिभा को देखते हुए पास कोर्स के बजाय बीएससी मैथ ऑनर्स में शिफ्ट होने के लिए प्रेरित किया। ग्रेजुएशन के दूसरे वर्ष शिक्षकों के मार्गदर्शन में गणित के एक समर प्रोजेक्ट पर किए उनके कार्य से किशोर वैज्ञानिक प्रोत्साहन योजना के तहत फेलोशिप प्राप्त हुई।
जब सवाल सुनने से पहले ही दे दिए सारे जवाब
नेकीराम शर्मा कालेज के पूर्व गणित विभागाध्यक्ष प्रो. रणबीर कादयान बताते हैं कि कालेज में एक मैथ क्विज के दौरान एक अन्य कालेज की प्रतिभागी टीम की शिक्षिका ने आरोप लगाया कि मनमोहन को पहले ही सारे जवाब बता दिए गए हैं। क्विज के बाद शिक्षिका ने खुद से तैयार किए पांच सवाल पूछे। मनमोहन ने चिर-परिचित अंदाज में स्टेटमेंट पूरी होने से पहले ही पांचों सवालों के जवाब दे दिए। जिसके बाद शिक्षिका ने भी प्रतिभा की तारीफ की।
-----मनमोहन अपनी सादगी और ज्ञान की जिज्ञासा से ही इतनी ऊंचाइयों तक पहुंचा है। वह अन्य विद्यार्थियों से अलग था। झिझक नाम की चीज उसके आस-पास नहीं थी। किसी तथ्य को जब तक पूरी तरह से समझ नहीं लेता था सवाल पर सवाल करता रहता। यही वजह है कि मैथेमेटिक्स जीनियस बना।
- डा. अमित सहगल, असिस्टेंट प्रोफेसर, पंडित नेकीराम शर्मा राजकीय कालेज, रोहतक।