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Guru Parva 2020: गुरुनानक देव की तपोभूमि रहा हरियाणा का सिरसा, यहां की 40 दिन तक तपस्या

Guru Parva 2020 सिरसा में वर्तमान में गुरुनानक देव जी की तपस्थली पर गुरुद्वारा चिल्ला साहिब बना हुआ है। ऐतिहासिक गुरुद्वारा श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है। गुरुपर्व के अवसर पर यहीं से नगर कीर्तन की शुरूआत होती है।

By Manoj KumarEdited By: Published: Mon, 30 Nov 2020 03:42 PM (IST)Updated: Mon, 30 Nov 2020 03:42 PM (IST)
Guru Parva 2020: गुरुनानक देव की तपोभूमि रहा हरियाणा का सिरसा, यहां की 40 दिन तक तपस्या
विक्रमी संवत 1567 को गुरुनानक देव सिरसा पधारे थे, अब यहां गुरुद्वारा बनाया गया है

सिरसा, जेएनएन। धर्मनगरी सिरसा गुरुनानक देवजी की तपस्थली भी रही है। यहां गुरुजी ने 40 दिनों का चिल्ला काटा था यानि 40 दिनों तक तपस्या की। वर्तमान में गुरुनानक देव जी की तपस्थली पर गुरुद्वारा चिल्ला साहिब बना हुआ है। ऐतिहासिक गुरुद्वारा श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है। गुरुपर्व के अवसर पर यहीं से नगर कीर्तन की शुरूआत होती है। आज गुरु पर्व है और इस बार भी श्रद्धालु यहां पहुंचे हैं। अपना शीश गुरु चरणों में झुकाया। हालांकि कोरोना के कारण इस बार गुरु पर्व पर पहले जैसी रौनक देखने को नहीं मिली है।

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विक्रमी संवत 1567 को सिरसा पधारे थे गुरुनानक देव

रानियां रोड स्थित गुरुद्वारा चिल्ला साहिब की पवित्र जगह पर गुरुनानक देव जी ने तपस्या की थी। गुरुद्वारे के इतिहास के अनुसार दूसरी उदासी के समय बङ्क्षठडा, भटनेर होते हुए विक्रमी संवत 1567 को गुरुनानक देव अपने शिष्य मरदाना के साथ सिरसा पधारे । उस समय सिरसा में मुस्लिम फकीरों द्वारा मेले का आयोजन किया गया था। जिस समय गुरुजी सिरसा पधारे, उनका अनोखा पहनावा था। पांवों में खड़ाऊं, हाथ में आसा, सिरसा पर रस्सी बंधी थी और माथे पर तिलक लगा रखा था। पीर बहावल और ख्वाजा अब्दुल शकुर नामक फकीर खुद को करामाती बताते थे और धागे तबीज करते थे। उन दोनों ने गुरुनानक देव के साथ गोष्ठी की, जिसमें गुरुजी ने उनका अंहकार दूर किया। वहां मौजूद पीरों ने कहा कि तुम्हें परखना चाहते हैं। 40 दिन कोठरी में रहना होगा। रोजाना एक जौ का दाना और पानी पीना होगा। गुरुनानक देव के साथ तीन मुसलमान फकीर भी पानी लेकर बैठ गए, जबकि गुरुनानक देव बिना जौ व पानी के बैठे। कुछ दिनों बाद ही मुस्लिम फकीर बाहर आ गए और गुरुनानक के चरणों में गिर गए कि वाकई तुम खुदा के बंदे हो। गुरुनानक देव ने यहां चिल्ला काटा यानि चालीस दिनों की तपस्या की। गुरुनानक देव जी सिरसा में चार महीने और 13 दिन रहे।

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इस ऐतिहासिक गुरुद्वारे में बड़ा लंगर हाल है जहां सालाना कार्यक्रम के लिए एक लाख से अधिक श्रद्धालुओं के लिए लंगर तैयार होता है। बाबा अजीत ङ्क्षसह बताते हैं कि गुरुद्वारे में एक बड़े भाग को लंगर तैयार करने व बांटने के लिए बनाया गया है। रोजाना पकने वाला लंगर पुरातन विधि से चूल्हे पर लकडिय़ों से तैयार होता है। तांबे की बड़ी बड़ी देगों में दाल व चावल पकाए जाते हैं। लंगर हाल में दो मशीनें भी है जिनमें एक घंटे में दो हजार से अधिक रोटियां तैयार होती है। लंगर तैयार करने के लिए बड़े कड़ाहे, पतीले है। लंगर हाल में इतना बड़ा कड़ाहा है कि एक बार में 10 क्विंटल दूध उबाला जा सकता है। गुरु साहिबानों की पावन शिक्षाओं के साथ-साथ बाबा बघेल ङ्क्षसह व बाबा प्रीतम ङ्क्षसह के मार्ग दर्शन में गुरुद्वारे ने सेवा कार्यों में विशेष पहचान बनाई है। कोविड के दौरान भी गुरुद्वारे द्वारा सराहनीय कार्य किया गया।


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