हरियाणा से गायब हो रही हरियाली, 3.59 फीसद बचा वन क्षेत्र, हवा हो रही जहरीली
कृषि भूमि की बात करें तो 80 फीसद क्षेत्र में खेती होती है। बारिश की कमी व फर्टिलाइजरों के बढ़ते इस्तेमाल से कृषि भूमि की सेहत दिनों दिन बिगड़ती जा रही है।
हिसार/हांसी [मनप्रीत सिंह] पृथ्वी के पारिस्थितिक तंत्र का दुरुस्त रहना मनुष्य जीवन के लिए सबसे जरूरी है। लेकिन विकास की अंधी दौड़ में मनुष्य के लिए पर्यावरण के साथ संतुलन रिश्ते को बनाए रखना मुश्किल हो गया है। बिगड़ते पर्यावरण का असर हरियाणा प्रदेश की सेहत पर भी साफ दिखने लगा है। बीते पांच सालों से मानसून लगातार प्रदेश के साथ धोखा कर रहा है व बारिश अनुमान से कम हो रही है। कृषि भूमि से पोषक तत्व खत्म होते जा रहे हैं और प्रदेश की धरती से वनों का क्षेत्र व पेड़-पौधे लगातार कम हो रहे हैं।
प्राकृतिक संसाधनों के अत्याधिक दोहन के कारण प्रदेश के बिगड़ते पर्यावरण के परिणाम अब धीरे-धीरे सामने आने लगे हैं। हालात ये हैं कि पिछले 5 सालों से प्रदेश में सामान्य वर्षा नहीं हुई है। भारत सरकार की पर्यावरण रिपोर्ट 2019 के अनुसार 2018 में 466.3 मिलीमीटर सामान्य वर्षा का अनुमान था जबकि वास्तविक वर्षा महज 423 मिलीमीटर ही हुई। वहीं वन क्षेत्र व पेड़-पौधों की संख्या भी घटती जा रही है।
44212 स्क्वेयर किमी में फैले प्रदेश में महज 3.59 फीसद भूमि पर ही वन क्षेत्र है। कृषि भूमि की बात करें तो 80 फीसद क्षेत्र में खेती होती है। बारिश की कमी व फर्टिलाइजरों के बढ़ते इस्तेमाल से कृषि भूमि की सेहत दिनों दिन बिगड़ती जा रही है। हरियाणा प्रदेश की आबो- हवा भी प्रदूषित होती जा रही है और लोग जहरीली हवा में सांस ले रहे हैं। पर्यावरण के बिगडऩे का सबसे ज्यादा असर कृषि सेक्टर पर दिख रहा है।
प्रदेश के विकास व पर्यावरण के बीच संतुलन कायम करने के लिए प्रदेश में कोई ठोस सरकारी नीति का अभाव है। पर्यावरण को बचाने के मुद्दे न ही तो चुनावी मुद्दा बन पाते हैं और न ही सरकार में आने के बाद राजनीतिक पार्टियां इसे लेकर आवाज उठाती हैं। परिणामस्वरूप विभिन्न प्रकार की प्राकृतिक आपदाएं जैसे बाढ़, अकाल, भूकंप, भूस्खलन, मृदा अपरदन आदि के प्रकोप में वृद्धि होती जा रही है और साथ ही विभिन्न प्रकार के प्रदूषणों का विस्तार हो रहा है।
प्रदेश में 4 सालों से मानसून का मिजाज असामान्य (मिलीमीटर) में
वर्ष वास्तविक वर्षा सामान्य वर्षा
2015 437.3 562.8
2016 398.7 562.8
2017 359.4 466.3
2018 423.1 466.3
फर्टिलाइजरों के प्रयोग से बढ़ रहा उत्पादन
प्रदेश में 85 लाख टन से अधिक गेहूं प्रति वर्ष किसान पैदा करते हैं। कृषि भूमि से पोषक तत्व कम होते जा रहे और दूसरी तरफ उत्पादन में वृद्धि हो रही है। ऐसे उर्वरकों के अत्याधिक प्रयोग के कारण हो रहा है। जिसके नकारात्मक परिणाम देरी से मिलेंगे। खेतों को उपजाऊ बनाए रखने के लिए किसान प्रति हेक्टेयर 218 किलोग्राम फर्टिलाइजर का उपयोग कर रहे हैं।
वन क्षेत्र में प्रदेश सबसे निचले पायदान पर
वन क्षेत्र की स्थिति के मामले में हरियाणा प्रदेश का स्थान देश में सबसे निचले पायदान है। प्रदेश के मात्र 1588 स्क्वेयर किमी इलाके में ही वन क्षेत्र है। निराशाजनक बात ये है कि प्रदेश में वन क्षेत्र पिछले दस सालों से 1550.80 स्क्वेयर किमी के आसपास ही बना हुआ है जबकि प्रदेश सरकार ने प्रदेश की कुल क्षेत्रफल के 10 फीसद इलाके में वन क्षेत्र के विस्तार करने का लक्ष्य निर्धारित कर रखा है। लेकिन सरकार को इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए कोई ठोस रणनीति नजर नहीं आ रही है। वनों में आग लगने की घटनों में भी इजाफा हुआ है। 2016 में 43 दावानल की घटनाएं हुई जबकि 2017 में इनकी 185 दावानल की घटनाएं हुई।
कृषि भूमि से खत्म हो रहे पोषक तत्व
भूमि प्रतिशत पोषक तत्व
99 नाइट्रोजन
55 फास्फोरस
30 पॉटाशियम
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