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नौकरी छोड़कर अपनाया बकरी पालन, अब विदेश तक छाये सिरसा के डिप्‍लोमा होल्‍डर दो भाई

दूसरे लोग जिस काम को छोटा समझते हैं दोनों भाइयों ने उसी को रोजगार का साधन मानते हुए नौकरी छोड़ बकरी पालन के व्यवसाय को अपनाया। अब विदेशों में चर्चे हैं।

By Manoj KumarEdited By: Published: Thu, 10 Sep 2020 08:02 AM (IST)Updated: Thu, 10 Sep 2020 08:02 AM (IST)
नौकरी छोड़कर अपनाया बकरी पालन, अब विदेश तक छाये सिरसा के डिप्‍लोमा होल्‍डर दो भाई
नौकरी छोड़कर अपनाया बकरी पालन, अब विदेश तक छाये सिरसा के डिप्‍लोमा होल्‍डर दो भाई

कालांवाली/सिरसा [मुकेश अरोड़ा] सिरसा के गांव तारूआना के गांव दो भाइयों ने आत्मनिर्भर बनने की इबारत अनोखे तरीके से लिखी है। दूसरे लोग जिस काम को छोटा समझते हैं, दोनों भाइयों ने उसी को रोजगार का साधन मानते हुए नौकरी छोड़ बकरी पालन के व्यवसाय को अपनाया। दोनों भाइयों के चर्चे सोशल मीडिया के जरिये विदेश तक भी पहुंचे और यहां से बकरियां विदेश भेजी गई है। वियतनाम से फार्मर यहां आकर बकरियां खरीद कर ले गया है। अब तो दूसरे प्रांतों में भी उनकी बकरियां भेजी जा रही है।

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कालांवाली क्षेत्र के गांव तारूआना के दो भाई संदीप सिंह व राजप्रीत सिंह ने उच्च शिक्षा के साथ साथ एग्रीकलचर व पीएसी का डिप्लोमा करने के बावजूद भी सरकारी नौकरी की चाहत नहीं रखी। गांव में ही बकरी फार्म खोल कर खुद को आत्मनिर्भर बनाया वही दूसरों को भी रोजगार देने के लिए प्रेरणा स्रोत बनने का काम किया। दोनो भाईयों ने शुरूआत में 20 बकरियों से बकरी पालन का कार्य शुरू किया तीन वर्ष में अब उनके पास 200 से ज्यादा बकरियां हैं और दो सौ के करीब बकरियां बेच चुके हैं।

बकरी फार्म के संचालक संदीप सिंह व राजप्रीत सिंह ने बताया कि पढ़ लिखने के बाद सरकारी नौकरी नहीं मिली। उन्होंने सोचा खुद का काम किया जाए तो पहले हमने पॉली हाउस के बारे में सोचा की सब्जी लगाने का काम किया। बाद में ऑनलाईन सर्च किया तो बकरी पालन के बारे में जानकारी मिली। 20 एकड खेती की जमीन होने के बावजूद खेती के अलावा अन्य कार्य करने की चाहत थी जिस पर उन्होंने बकरी पालन का कार्य चुना जोकि खेती से ही सबंधित है।

तीन वर्ष पूर्व मथुरा के सीआइआरजी के रिसर्च सेंटर है से सात दिनों की ट्रेनिंग लेने के बाद गांव में 20 बकरियों से काम शुरू किया। वर्तमान में हमारे पास 200 बकरियां हैं और 20 एकड़ जमीन भी है तो नौकरी से ज्यादा मुनाफा कमा रहे हैं। लोग बकरी पालन पहले छोटे लेवल का काम मानते है लेकिन आज बकरी पालन बहुत बड़ा बिजनेस बन चुका हैद्ध इसकी खरीद बेच ऑनलाइन की जाती है। वे फ ार्म पर खुद ही बिटल नस्ल की बकरियां तैयार करते हैं। पूरे भारत में ऑनलाइन खरीदा व बेचा जाता हैै।

युवाओं का रूझान इस कार्य की ओर बढ़ रहा है जिसके चलते हर दो माह बाद अलग - अलग राज्यों से 50 - 60 युवा उनके फार्म हॉऊस पर इसका प्रशिक्षण लेने के लिए आते हैं। उन्हें तीन दिन में प्रशिक्षण दिया जाता है। यही नहीं उनमें से 15 से 20 युवाओं ने बकरी फार्म का काम शुरू कर दिया है जो उनके निर्देशानुसार चल रहे हैं।

विदेश से आया फार्मर, जहाज में गई बकरियां

सोशल मीडिया पर एक्टिव रहने के चलते उनका संपर्क वियतनाम के मिस्टर लोगो नामक एक फार्मर से हुआ। भाषा समझ मेें न आने के चलते उक्त व्यक्ति अपने साथ एक ट्रांसलेटर लेकर गांव तारूआना मेंं पहुंचा। इस फार्मर ने दोनों भाईयों से न केवल प्रशिक्षण प्राप्त किया अपितु 80 बकरियां भी खरीदी। फार्मर इन बकरियों को जहाज के द्वारा अपने देश में ले गया। इस कार्य पर उसकी तकरीबन 15 लाख रुपये की राशि खर्च हुई। विदेशी फार्मर ने क्षेत्र में कई दिन तक रहकर यहां की न के वल कार्यशैली देखते हुए दोनों भाइयों के कार्य की सराहना भी की। उसने बताया कि उनके यहां इस तरह की नस्ल नहीं मिलती। नस्ल सुधार के उद्देश्य से ही वह यहां से बकरियां खरीदने आया। राजप्रीत के अनुसार उन्होंने सोशल मीडिया के सहारे तमिलनाडू, कन्याकुमारी, महाराष्ट्र सहित अन्य जगहों पर बकरियां बेची हैं। लोग दूर-दराज बैठे उनसे बकरियां खरीद रहे हैं।

- पंजाब की नस्ल है बिटल

बिटल बकरी मूल रूप से पंजाब की नस्ल है। लेकिन इसे हरियाणा व राजस्थान के लोग भी पालते हैं। हालांकि ये बकरी आम बकरियों की तरह ही है लेकिन उनमें कुछ थोड़ा बहुत अलग है। इसके अलावा नस्ल के मामले में ये बकरियां कुछ महंगी जरूर हैं लेकिन लोग इन्हें शौंक से पालते हैं। हरियाणा में लोग अपने फार्मांे पर मुख्यत: इसी नस्ल की बकरियां रखते हैं। अब इस नस्ल की विदेशों में भी मांग होने लगी है। इस बकरी की कीमत 18 से 30 हजार रुपये तक है।

- प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में सहायक होता है बकरी का दूध

बकरी के दूध में गाय व भैंस के दूध से इम्यूनो ग्लोबिन अधिक होते है। जिसकी वजह से इसमें प्रतिरोधक क्षमता अधिक होती है। लोग बकरी के दूध को प्राय: डेंगू या बच्चों की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है। बकरी का दूध आयुर्वेदिक दवाइयों में भी इस्तेमाल होता है। एक बकरी औसतन एक से दो लीटर तक दूध देती है। बिटल नस्ल उत्तर भारत के मौसम के अनुसार बेहतर नस्ल है। भारत में बकरियों की तकरीबन 40 नस्लें पाई जाती है। जिनमें मुख्यत: बिटल, जखराना व सिरोही आदि है।

विभाग ने चलाई मुख्यमंत्री भेड़-बकरी पालन योजना

बकरी पालन एक अच्छा व्यवसाय है। क्योंकि इस पर खर्च कम व आमदन अच्छी है। इस समय जिला में काफी लोग बकरी पालन का व्यवसाय कर रहे हैं। विभाग द्वारा पूर्व में बकरी पालन पर योजनाएं थी। जिसमेंं 21 बकरियों की यूनिट पर अनूसुचित जाति पर 50 प्रतिशत व सामान्य पर 25 प्रतिशत अनुदान दिया जाता था। लेकिन अब विभाग द्वारा मुख्यमंत्री भेड़-बकरी पालन योजना शुरू की गई है। जिसके तहत फार्मर को अनुदान नहीं अपितु उससे बकरियां या भेड़ वापिस ली जाएगी। प्रथम वर्ष 10 व द्वितीय वर्ष 11 बकरियां वापिस लेकर नए आवेदनकर्ता को नई यूनिट मुहैया करवाई जाएगी। इसका उद्देश्य ये है कि फार्मर वास्तविक ढंग से अपना रोजगार चला सके।

- डॉ. सुखविन्द्र चौहान, उप-निदेशक सिरसा


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