हरियाणवी संस्कृति को सहेजकर नए कलाकार तैयार कर रहे हैं बहादुरगढ़ के गणेश नूनवाल
30 साल पहले पैदा हुआ जुनून आज हरियाणवीं संस्कृति की पहचान बन रहा है। फूहड़ता से इतर हरियाणवीं रंगमंच को चार चांद लगाने वाले गणेश नूनवाल इस पहचान का दूसरा नाम है। पेशे से तो वे सरकारी कर्मचारी हैं लेकिन मिजाज से हरियाणवीं अभिनेता।
जागरण संवाददाता, बहादुरगढ़ : अभिनय के क्षेत्र में 30 साल पहले पैदा हुआ जुनून आज हरियाणवीं संस्कृति की पहचान बन रहा है। फूहड़ता से इतर हरियाणवीं रंगमंच को चार चांद लगाने वाले गणेश नूनवाल इस पहचान का दूसरा नाम है। पेशे से तो वे सरकारी कर्मचारी हैं, लेकिन मिजाज से हरियाणवीं अभिनेता। कालेज समय से अभिनय की शुरूआत करने वाले गणेश नूनवाल की यह जद्दोजहद आधुनिक अंदाज में हरियाणवीं संस्कृति को न केवल सहेज रही है, बल्कि अगली पीढ़ी के लिए विरासत के रूप में भी विकसित हो रही है। तीन दशकों की उनकी कोशिशाें ने अनेक कलाकार पैदा कर दिए हैं।
दरअसल, किसी भी संस्कृति को जीवंत रखने में फिल्म-नाटकों और अभिनय से जुड़ी दूसरी प्रस्तुतियों की भी अहम भूमिका होती है। गणेश ननूवाल इसी रूप में संस्कृति को बल देते हैं। आज उनके कंधों पर पारिवारिक-सामाजिक जिम्मेदारियां भी हैं। बहादुरगढ़ में राजस्व विभाग में तैनात हैं, इसलिए ड्यूटी करना तो प्राथमिकता है। इसके बावजूद उनके अंदर एक कलाकार पूरी शिद्दत के साथ बसा है।
इस तरह दिला रहे संस्कृति को पहचान :
हरियाणवीं फिल्म चंद्रावल तो सभी को याद होगी। वर्ष 2010 में इसका सिक्वल भी बना। चंद्रावल-दो। इसमें उन्होंने फिल्म की नायिका रही चंद्रावल के पिता का किरदार निभाया था। मगर इससे कई साल पहले से वे हरियाणवीं रंगमंच पर अदाकारी करते आ रहे हैं। संगीत नाटक अकादमी से ट्रेनिंंग लेेने के बाद उन्होंने अपने साथ कई कलाकार जोड़े। जो आज मंझे हुए साबित हो रहे हैं। वे अनेक नए कलाकार भी तैयार कर रहे हैं, ताकि हरियाणवीं संस्कृति की माला में नए-नए मोती पिरो सके।
1992 से की अभिनय की शुरूआत :
करीब 46 वर्षीय गणेश नूनवाल का परिवार मूल रूप से रोहतक के खरावड़ का निवासी है। अब बहादुरगढ़ के आर्य नगर में रहते हैं। कालेज समय में 1992 में गणेश ने अभिनय की शुरूआत की। वर्ष 1996 और 99 में राज्य स्तर पर कालेज समारोह में बेस्ट एक्टर का अवार्ड जीता। कालेज में चर्चित चेहरा रहे। उन्होंने कई हरियाणवीं एलबम में काम किया है। यू ट्यूब पर आंगण सुरते का नाम से उनकी कामेडी सीरीज भी चलती है। माटी की लुगाई, नाचूंगी पिया जी डीजे पै, बालम शर्मिला और लट्ठ जैसे हरियाणवीं गीतों में उन्होंने अभिनय किया है। उच्च शिक्षित गणेश नूनवाल खेलों से भी जुड़े रहे हैं। वे कहते हैं कि गीत-संगीत, नाटक और फिल्म ही संस्कृति को जिंदा रखते हैं। साथ ही समाज को दिशा भी देते हैं इसलिए इनमें संजीदगी के साथ सकारात्मकता और शालीनता भी जरूरी है। इसी को उन्होंने प्राथमिकता दी है।