आजादी को सौंपी जवानी, 4 साल काटी जेल, दस्तावेजों में गुम हुआ 95 वर्षीय नादर सिंह का त्याग
आजादी मिलने पर पूर्व पीएम नेहरू और इंदिरा की सरकार ने कई प्रमाण व सम्मान-पत्र दिये।1955 में बाढ़ आई तो कुछ कागजात खराब हो गए। सालों से पेंशन बनवाने को दर-दर भटक रहे हैं नादर सिंह
फतेहाबाद [मणिकांत मयंक] आजादी के लिए बहुत से लोगों ने अपनी जिंदगी कुर्बान कर दी, कुछ के बारे में हर कोई जानता है तो कुछ के बारे में महज चंद लोग। इनमें से ही एक हैं फतेहाबाद जिले के 95 वर्षीय नादर सिंह। जिन्होंने अपनी जवानी देश की आजादी के नाम कुर्बान कर दी, मगर आज उनका बुढ़ापा आंख भर-भर के रो रहा है। इसके पीछे कारण देश के लिए किया गया त्याग नहीं बल्कि सिस्टम की उनके प्रति उदासीनता है।
दैनिक जागरण संवाददाता ने उनके घर जाकर हालचाल जाना तो तस्वीर कुछ इस तरह से थी। हरियाणा के फतेहाबाद जिला मुख्यालय से करीब 15 किलोमीटर दूर गांव हिजरावां। गांव के एक हिस्से में छोटा-सा घर। इस घर में चारपाई पर बैठे तकरीबन 95 साल का बुजुर्ग नादर सिंह। बूढ़ी आंखें यकायक चमक उठती हैं। उपेक्षित आंखों में उम्मीदों की चमक...। पूछ बैठते हैं- 'मीडिया से हो? जवाब में दैनिक जागरण संवाददाता ने अपना परिचय देते हुए कहा 'जी हां'। इतना सुनते ही कभी देश की आजादी के लिए अपनी जवानी समर्पित करने वाले बुजुर्ग नादर सिंह की उम्मीदें मानो सातवें आसमान पर जा पहुंची हो। बोले- 'युवावस्था आते ही दिल देश की आजादी के लिए धड़कने लगा। जवानी दीवानी हो गई ...। अंग्रेजों को भारत से खदेड़ा ...। बौखलाई ब्रिटिश हुकूमत ने लाहौर व अन्य जेलों में बंद कर दिया ...। देश आजाद हुआ ...। अरसा बाद तत्कालीन सरकार ने कई प्रमाण-पत्र, सम्मान पत्र भी दिये ...। पर ...। 'इतना कहते हुए बुजुर्ग की आंसू भरी आखें शून्य में जाकर टिक गई...।
टोकने पर नादर सिंह सहज भाव से बताते हैं कि वो भी क्या दिन थे...। उनकी महज 19 साल उम्र थी। देश आजादी की जंग के जुनून में था। सो, वह भी जंग-ए-आजादी में कूद पड़े। आजादी के दीवानों की टोली में शामिल हो गए। खूब छका-छकाकर लड़ा अंग्रेजों से। साल 1942 के फरवरी महीने में अंग्रेजों के खिलाफ निर्णायक जंग के लिए जब नेताजी सुभाष चंद्र बोस की अगुवाई में आजाद सिंह फौज का गठन हुआ तो उसमें शामिल हो गए। खूब लड़े। मगर अंग्रेजों को यह रास न आया। जाते-जाते उन्होंने चार साल तक लाहौर जेल में बंद रखा। आजादी मिलने के बाद पहले नेहरू और फिर इंदिरा की सरकार ने कई प्रमाण व सम्मान-पत्र दिये। लेकिन वर्ष 1955 में बाढ़ आई तो कुछ कागजात खराब हो गए थे।
जितने कागज थे, लेकर हर दफ्तर की खाक छानी। अब सरकार के अधिकारी कहते हैं, तेरे नाम की पेंशन कोई और ले रहा है। पेंशन कोई दूसरा नादर सिंह सन आफ रतन सिंह उठा रहा है। स्वतंत्रता सेनानी की पेंशन नहीं बन रही है। मेरी आंखें यह सोच-सोचकर रो रही हैं कि क्या यही दिन देखने के लिए आजादी की लड़ाई लड़ी? क्या आजादी उपरांत यही व्यवस्था होनी थी देश की? क्या बुढ़ापे में रोने के लिए जवानी देश को सौंपी थी? कौन देगा मेरे इन सवालों के जवाब?
गौरव पट्ट पर भी नादर का नाम
पंचायती राज विभाग की ओर से गांव की यश-गाथा बताकर नई पीढ़ी को अतीत से जोडऩे वाले गौरव पट्ट की व्यवस्था की गई थी। इस सरकारी पट्ट पर भी स्वतंत्रता सेनानी नादर सिंह का नाम अंकित किया गया है।
---मेरी जानकारी में यह मामला नहीं आया है। रही बात मदद की, तो अगर वह कोई एविडेंस लाकर दिखाएगा तो हरसंभव सहायता की जाएगी। जिला प्रशासन प्राथमिकता देते हुए हर स्तर पर मदद करने को तैयार है।
- डा. जेके आभीर, डीसी फतेहाबाद
--जालंधर में स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान जेल गए लोगों का पूरा रिकार्ड है। वहां से जानकारी मिल जाएगी। वैसे वह हिसार स्थित मेरे कार्यालय में आएं, उनकी पूरी मदद की जाएगी। यह भी साफ हो जाएगा कि कौन सही और कौन गलत है।
- जगदीश बब्बर, महासचिव स्वतंत्रता सेनानी सम्मान समिति